ओम नीरव

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

गीतिकालोक काव्य संग्रह- अद्वितीय संदर्भ काव्यानुभूतियाँ व अद्भुत गीतिका व छंद विधान

गीतिकालोक काव्य संग्रह- अद्वितीय संदर्भ काव्यानुभूतियाँ व अद्भुत गीतिका व छंद विधान
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समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – ओम नीरव

(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802)
7 अप्रैल 2016 को सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश में अवनीश त्रिपाठी जी द्वारा आयोजित कवितालोक के सार्द्धशतकीय महाकुम्भ में 'गीतिकालोक' का लोकार्पण हुआ।
सार्द्धशतकीय अखिल भारतीय कविता लोक के महाकुम्भ का हिस्सा बनना मेरे लिये परम सौभाग्य का विषय है । इस अवसर पर लोकार्पण हुये गीतिकालोक संग्रह में मेरी भी दो गीतिकाओं व एक मुकतक को स्थान मिलने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

माननीय ओम नीरव जी के कुशल मार्गदर्शन में प्रकाशित हुआ यह संकलन हिंदी साहित्य में एक भावी मील का पत्थर प्रमाणित होगा ।
यह मात्र एक गीतिका संग्रह न हो कर गीतिका , छंद विधान व गजल की अनुपम निर्देशिका है जिसे हम जैसे नवोदित आवश्यकता पड़ने पर प्रयुक्त कर सकते हैं । 
अभी पिछले दिनों एक छंद विशेष के बारे में कुछ संशय हुआ तुरंत गीतिकालोक संग्रह से संबंधित जानकारी उपलब्ध हो गई ।
यह संग्रह अपने आप में संपूर्ण निर्देशिका है जिसे आने वाले समय में गीतिका सृजन के लिये सहितयकारों को आवश्यक मार्गदर्शन व जानकारी सहज ही उपलब्ध हो सकेगी।

माननीय ओम नीरव जी ने उपयुक्त उदाहरणों द्वारा छंदों के विधान की जो जानकारी दी है वह भी अपने आप में अद्वितीय है । उनकी कर्मठता ,सृजन शीतला , रचनाधर्मिता को हृदय से नमनहै ।
अविभूत हूँ कि इस महान गीतिका संग्रह में मुझे भी इस ऐतिहासिक प्रयास का हिस्सा बनने 
का सुअवसर मिला।

कवितालोक परिवार के संरक्षक माननीय ओमनीरव जी को इस अद्वितीय सृजन व सभी रचनाकारों को इस महान संग्रह का हिस्सा बनने के लिये कोटि कोटि अभिनंदन व बधाई।
यह समर्पण भाव ही है जो इस तरह के भव्य आयोजन को ऊँचाई के शिखर तक पहुँचाता है ।
सादर नमन व आभार इस अदभुत अनुष्ठान के लिये माननीय ओम नीरव जी। 

        

                                                                                                                                                          सूक्षम लता महाजन 
                                                                                                                                                                         नोएडा 

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

हिंदी गौरव को प्रतिपादित करती व्यवस्थित कृति

भारती जैन ‘दिव्यांशी’  
समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – श्री ओम नीरव जी
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802) 

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क्या कहूँ कोई करिश्मा कर दिया.
या कहूँ गागर में सागर भर दिया.
बातों -बातों में लगे है हाथ में,
ज्ञान का अनुपम खजाना धर दिया.
       आ.ओम नीरव जी द्वारा संकलित 'गीतिकालोक' अनुपम कृति गीतिका विधा एवं गीतिका संकलन पढ़ती जा रही हूँ लेकिन हाल ये है कि, आस बढ़ती जा रही है, प्यास बुझती ही नहीं.भारत जैसे अखंड राष्ट्र में हिंदी को बढावा देने हेतु आपने जो अभिनव प्रयोग किया है निश्चित रूप से अभिनंदनीय है एवं यह संकलन हिन्दुस्तान में हिंदी के गौरव को प्रतिपादित करेगा ऐसा मेरा विश्वास है.
             87 गीतिकाकारों की 161 गीतिकाओं को एक माला में पिरोकर हिन्दी साहित्य के विकास और सम्वर्धन के इस महत्वपूर्ण उपक्रम के पीछे आपका अदम्य साहस, अकूत क्षमता एवं तप स्पष्ट परिलक्षित है.
            कृति के प्रथम भाग में गीतिका विधा नाम से दी गयी व्याकरण सम्बन्धी जानकारी का अनुशीलन कर वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ी इस युग की काव्यगत प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं से सहज ही सुपरिचित हो सकेंगी.
     इस अनुपम कृति में पेज न. 122,123 पर मेरी भी दो रचनाओं को स्थान दिया गया है ,जिसके लिए मैं आत्मिक आभार प्रकट करती हूँ..मैं आपकी इस महत्वपूर्ण उपलब्धि का हार्दिक स्वागत करती हूँ एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ आपको नमन करती हूँ .
जय हिन्द ! जय हिन्दी !

भारती जैन ‘दिव्यांशी’  

गीतिका विधा के शिल्पविधान और छंदों का वृहद् निरूपक ग्रन्थ

समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – ओम नीरव
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802) 
Lokendra Mishra , Lucknow 
           7 अप्रैल 2016 को सुलतानपुर उत्तर प्रदेश में 'गीतिकालोक' का विमोचन हुआ। मेरा सौभाग्य था की मैं भी वहाँ उपस्थित था। आदरणीय ओम नीरव सर के गीतिका पर व्याख्यान से शुरू होकर 70 कवियों तक के काव्यपाठ तक का मजा सिर्फ वही जान सकता है जो वहां मौजूद रहा हो। धीरज श्रीवास्तव सर की कृति मेरे "गाँव की चिनमुनकी" का भी लोकार्पण हुआ। अवनीश त्रिपाठी सर के द्वारा आयोजित यह कवितालोक का सार्धशतकीय महाकुम्भ बहुत ही मजेदार व सफल रहा।
              गीतिकालोक दो भागों में है पहला भाग गीतिका विधा व् छंदों का परिचय है इस खण्ड में नीरव सर ने बहुत ही सरल ढंग से छंदों के बारे में समझाया है । जो की निश्चित ही मुझ जैसे कई नवोदितों के लिए एक विशेष महत्व रखता है। यह खण्ड अपने आप में गीतिका के लय और शिल्प के साधको के लिए किसी वरदान से कम नही है।
              दूसरा खण्ड है गीतिका संकलन इसमें कवितालोक परिवार के 87 कवियों की गीतिकाओं का संकलन है। सब एक से बढ़कर एक उम्दा भाव तथा शिल्प में बद्ध। प्रत्येक गीतिका के नीचे उसका शिल्पविधान और छंद जिसपर की गीतिका आधारित है का परिचय। निश्चित ही यह संपादक के लिए काफी संघर्षपूर्ण रहा होगा । इस कृति के बारे में जितना भी कहे वो कम होगा या यूँ कहे की सूरज को दीपक दिखाने के जैसा होगा।
        यह नीरव सर की ही देन है की गीतिकालोक के रूप में हिंदी साहित्य की को एक अनमोल हीरा प्राप्त हुआ है। मुझे पूरा विश्वास है की हिंदी के क्षेत्र में जिस क्रान्ति के लिए कवितालोक का जन्म हुआ है उसके लिए गीतिकालोक का लोकार्पण एक मील पत्थर साबित होगा।
धन्यवाद।

लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
    लखनऊ, उत्तर प्रदेश

गीतिका विधा एवं गीतिका संकलन का अद्भुत संगम--'गीतिकालोक'

समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – ओम नीरव
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802) 
Anmol Shukl Anmol
गीतिका विधा एवं गीतिका संकलन का अद्भुत संगम 
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      सिद्धहस्त प्रतिष्ठित कवि ओम नीरव जी द्वारा संपादित काव्य संकलन "गीतिकालोक" अपनी एक विशिष्टता के कारण हिन्दी रचनाकारों एवं प्रबुद्ध पाठकों के बीच शनैः शनैः लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है और उसका ये विशिष्ट पक्ष है कि हिन्दी की परिपाटी लिए रचनाकारों को छन्दानुशासन की सूक्ष्मतम जानकारियाँ पहुँचाना।
         श्री ओम नीरव जी ने इस श्रमसाध्य कार्य को जिस कुशलता से किया है उससे निश्चित ही आने वाले समय में कुछ श्रेष्ठ रचनाकार फलीभूत होंगे ऐसा मेरा मानना है।अपने में 280 पृष्ठों को समाहित करते हुए मनमोहक कलेवर युक्त ये संकलन दो खंडों में विभक्त है जिसके प्रथम खंड में लय को मापनी एवं आधारछंद की कसौटी पर कसते हुए गीतिका विधा की सांगोपांग व्याख्या को क्रमबद्ध रूप से नवोदितों को अत्यंत सरल एवं हृदयग्राही भाषा में व्याख्यायित किया गया है। श्री नीरव जी ने गीतिका विधा को आत्मसात करने के लिए तकनीकी शब्दावली,तुकांत विधान,मात्रा भार, मापनी, आधार छंद तथा मापनीयुक्त एवं मापनीमुक्त मात्रिक व वर्णिक छंद भेद प्रस्तुत कर जो संसार "गीतिका" के लिए परिकल्पित किया है,उसे सही अर्थों में "गीतिकालोक" के अतिरिक्त कोई अन्य नाम दिया ही नहीं जा सकता।मातृ भाषा हिन्दी को पल्लवित एवं पुष्पित करने हेतु वाणीपुत्र श्री ओम नीरव जी के इस समर्पण को ये संकलन एक "मील के पत्थर" की भाँति सुशोभित करेगा ऐसा मुझे विश्वास है।
             दूसरे खंड में 87 रचनाकारों की प्रतिनिधि गीतिकाओं के साथ साथ एक एक मुक्तक भी संकलित किया गया है।फेस बुक की आभासी दुनिया से प्रकाश में आए इन नये पुराने रचनाकारों की ये गीतिकाएं सुधी पाठकों को कितना आनन्दित कर पाएंगी इसका अनुमान लगाना तो किसी के लिए भी कठिन हो सकता है परन्तु ये निश्चित है कि ये रचनाएँ आनन्दित करेंगी अवश्य। फेस बुक पर छांदसिक रचनाओं एवं गीतिका विधा को समर्पित ग्रुप "कवितालोक" से जुड़े अधिकांश युवा रचनाकार इस ग्रुप को अपनी प्रारंभिक पाठशाला मानते हैं और प्रतिदिन भिन्न भिन्न छांदसिक जानकारियाँ देने वाले गुरुवर श्री ओम नीरव जी ने गुरु के रूप में कार्य करते हुए इन्हें कितना सक्षम बनाया है,इसकी झाँकी इस संकलन में स्पष्ट दिखाई देती है।मैं इन सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ तथा साथ ही साथ श्री ओम नीरव जी के इस भगीरथ प्रयास को जनमानस में प्रतिष्ठित स्थान मिलने हेतु शुभाकांक्षी हूँ।
इति शुभम् 


अनमोल शुक्ल 'अनमोल'
17 प्रोजेक्ट कालोनी
मायापुर हरिद्वार (उत्तराखंड)

हिंदी व्याकरण और मापनी का तकनीकी आधार संकलन-'गीतिकालोक'

समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – ओम नीरव
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802) 
Suresh Goswami Sureshji 
आध्यात्मिक ग्रंथों सा सम्मान प्राप्त "गीतिकालोक" संकलन
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        कवितालोक के दो अमूल्य संकलन, प्रथम "कविता लोक प्रथम उद्भास" और द्वितीय "गीतिकालोक" । प्रथम संकलन, जो शिल्प विधान सहित एक काव्य संकलन है, में गीत, गीतिका,ग़ज़ल और विभिन्न छंदों पर आधारित रचनाओं के खंड तो हैं हीं साथ ही एक खंड पूरकलोक भी सम्मिलित है। प्रत्येक खंड में उस विधा विशेष का वर्णन करते हुए कविता लोक के विद्वतजनों की शिल्प विधान सहित रचनाएँ प्रस्तुत की गई हैं। पूरक लोक में काव्य रचना में काम आने वाले प्रारंभिक विषयों का वर्णन है। कहना न होगा एक ऐसा संकलन जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है, अपने ज्ञान, प्रतिभा को निखारा जा सकता है, विशेषकर नवरचनाकारों के लिए कवितालोक और आदरणीय गुरुदेव ओम नीरव जी की एक अनुपम और उत्कृष्ट भेंट।
            कवितालोक द्वारा अवनीश त्रिपाठी के संयोजन में दि. 07.04.2016 को सुलतानपुर (उ.प्र.) में संपन्न हुए अखिल भारतीय काव्य सम्मलेन, भारतीय काव्य इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने योग्य बन गया, जब विमोचन हुआ काव्य इतिहास के एक ऐसेे महान ग्रन्थ का,जिसका काव्य और साहित्य प्रेमियों के मन में वही आदर है, जो एक आम हिन्दू भारतीय के मन में अपने किसी पवित्र आध्यात्मिक ग्रंथ का हो सकता है। आदरणीय गुरुदेव ओम नीरव जी द्वारा विरचित और सम्पादित "गीतिकालोक" एक गीतिका विधा एवं गीतिका संकलन है। पूर्व संकलन से एक क़दम आगे इस संकलन में गुरुदेव ने मातृभाषा हिंदी को मान सम्मान दिलाने के अपने अनवरत प्रयास को पंख लगाए हैं,हिंदी और हिंदी व्याकरण को प्रमुखता से उपयोग में लेकर चलने वाली अपनी विधा, "गीतिका" को काव्य संसार में स्थापित कर समुचित स्थान दिलाने के अपने प्रयासों के क्रम में।
          ग़ज़ल का पूर्ण सम्मान करते हुए मातृभाषा हिंदी में कही जाने वाली रचना गीतिका, अब किसी परिचय की मोहताज नहीं है। पुस्तक के प्रथम भाग में इसी विधा की विस्तृत रूप से विवेचना की गई है, परन्तु साथ ही काव्य संसार में प्रयुक्त तकनीकी भाषा और शिल्प को भी समझाया गया है। तकनीकी शब्दावली, मात्रा भार, तुकांत विधान, मापनी, आधार छंद, विभिन्न छंदों के प्रकार, गीतिका का तानाबाना, गीतिका और उर्दू ग़ज़ल, गीतिका की भाषा आदि आदि विषय पूर्ण सक्षम हैं, इस विधा को समझ कर रचनाकर्म आरम्भ करने के लिए, अपने पूर्व ज्ञान, समझ को निखारने के लिए। नवांकुरों के लिए तो वरदान है ही, वरिष्ठ कविजन, गुणीजन भी बहुत कुछ पा सकते हैं इस ख़ज़ाने से।
           द्वितीय भाग, गीतिका संकलन है, कविता लोक से जुड़े और इस गुरुकुल में पढ़े 87 रचनाकारों की एक से बढ़ कर एक रचनाएँ,परिचय और शिल्प विधान सहित। यह ग्रन्थ एक बार नहीं दसियों बार पढ़ने और गुनने की इच्छा होती है, जो ख़त्म नहीं होती। संकलन के पृष्ठ 256, 257 पर मुझ अकिंचन की भी रचनाएँ, दो गीतिकाएं व एक मुक्तक को सम्मिलित कर मुझे अनुगृहीत किया है आदरणीय ओम नीरव जी ने, मौका दिया है गौरवान्वित होने का, उन वरिष्ठ कवियों, साहित्यकारों और गुणीजनों के बीच सम्मिलित कर जो मेरे लिए सम्मानीय हैं,उनके सानिध्य में, क़दमों पर चल कर बहुत कुछ सीखा है और सीखता रहूँगा।
      आभार कविता लोक, आदरणीय ओम नीरव जी सर इस अनुपम, उत्कृष्ट, बेमिसाल और पवित्र ग्रन्थ, संकलन के लिए। माँ शारदे को कोटि कोटि नमन, बिना जिनके आशीर्वाद और कृपा से इन उपलब्धियों की कल्पना नामुमकिन थी।

सुरेश गोस्वामी 'सुरेशजी', जयपुर राजस्थान

साहित्यिक अभिरुचि का संवर्द्धक-'गीतिकालोक'

समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – ओम नीरव 
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802) 

समीक्षक-- Uddhav Deoli 

सम्मानित मित्रो नमस्कार।
          *गीतिकालोक* की प्रतियाँ प्राप्त हुयी | अति प्रसन्नता का आभास हुआ| यह ग्रन्थ कवितालोक के संस्थापक एवं मार्गदर्शक परम आदरणीय Om Neerav जी की मेहनत व शोध का फल है| हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए गुरुदेव सदा ही प्रयत्नशील रहे हैं,इसी कड़ी में यह ग्रन्थ हमारे हाथों में है| गीतिका का जन्म नीरव जी के ही गुरुकुल में हुआ है|हमनें देखा कि लगातार हम जैसे सीखनें वालों को गुरुदेव अपनी टिप्पणियों के माध्यम से हमें समझाते रहे हैं|आज उसी का परिणाम है कि हम दो शब्द लिख पा रहे हैं|यह पुस्तक हमारे लिए वरदान स्वरूप है|

१-- पुस्तक में *अपनी बात* में ही गुरुदेव ने हिन्दी भाषा की विशिष्टता,इसकी मिठास ,लोकप्रियता व सहित्य के संम्बंध में भरपूर प्रकाश डाला है|

२--पुस्तक के भाग-१ में वे सभी अध्याय प्रदान किये गए हैं जो कि साहित्यकारों केलिए आवश्यक होते हैं| ऐसी पुस्तकें मिलनी कठिन होती हैं तथा इन्हें पानें के लिए साहित्यकार/ रचनाकार /काव्यसृजन करनेंवालों को जगह-जगह घूमना पड़ता है परन्तु उन्हें वांछित पुस्तक प्राप्त नहीं होती है| आज नवोदित साहित्यकार/छात्र/शोधार्थी इस पुस्तक से भरपूर लाभ उठा सकते हैं| 

३-इस ग्रन्थ के भाग-२ में ८७ साहित्यकारों/गीतिककारों की १६१ गीतिकाओं का संकलन शिल्प सहित उदारहण/सन्दर्भ हेतु दिया गया हैजोकि गुरुदेव व कवितालोक के असंख्य साहित्यकारों के द्वारा अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से संम्पादित हैं|इन गीतिकाओं में प्रकृति,आध्यात्म,भौतिक ,समसामयिक तथा सभी रसों की रचनाओं को आपको सीखनें व रसास्वादन करनें का अवसर मिलेगा| 
              अंत में ,मैं यही कहना चाहूँगा कि यह ग्रन्थ विद्यार्थियों/ नवोदित साहित्यकारों/ शोधार्थियों/अध्यापक वर्ग/ साहित्य में रूचि रखनें वालों को वरदान स्वरूप है|
इति शुभम्!😊

उद्धव देवली, कर्णप्रयाग, उत्तराखण्ड

गीतिका विधा एव गीतिका संकलन –  (एक शोध परक ग्रन्थ)

समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – ओम नीरव 
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802) 

Laxman Raamaanuj Ladiwala 

            कवितालोक के संस्थापक, श्री ओम नीरव जी द्वारा प्रतिपादित गीतिकालोक के नाम से संकलन जब मिला तो प्रथम पृष्ठ पर माँ शारदा के दर्शन के साथ ही द्वित्तीय पृष्ठ पर “सरसों फली सी गीतिका” की चार पंक्तियों ने ही मन मोह लिया और देर रात तक पढने का मोह नहीं छोड़ पाया | मै छन्दों का प्रेमी रहा हूँ मगर इस पुस्तक से यह जान पाया कि हिंदी विश्व में क्यों विशेष पहचान रखती है | इसका कारण इस भाषा की मिठास है | आज जितने भी चलचित्र में मिठास लिए गाने गाये जाते है वे हिंदी के छन्दों के सटीक स्वर, शिल्प और लय के कारण है, जो चाहे संतोषानंद, गोपाल दास नीरज या दुष्यंत कुमार जैसे किसी भी कवि गीतकार ने रचे हो |
             इस कृति के लेखक व सम्पादक श्री ओम नीरव जी ने गीतिका नाम की सार्थकता जताते हुए गीतिका को ऐसी ग़ज़ल बताया है जिसमें हिंदी भाषा की प्रधानता, हिंदी व्याकरण की अनिवार्यता और पारस्परिक मापनी के साथ हिंदी छन्दों का समादर हो और इसीलिये मापनी और छंद दोनों को आधार बनाया है | दो वर्षों के निरंतर प्रयास और सभी छन्दों का बारीकी से अध्ययन कर उन छन्दों की मापनी, लय, तुकांत और आधार को लेकर गीतिका का विस्तृत और सटीक विधान बनाकर गीतिका को सर्वमान्य रूप से प्रतिष्ठित करने में आदरणीय ओम नीरव जी ने सफल प्रयास किया है |
            संकलन के प्रथम खंड में गीतिका के लिए तकनिकी शब्दावली यथा : पद, युग्म, मुखड़ा, मनका, तुकांत, पूर्व पद, पूरक पद, समान्त, पदांत, मात्रा भार जैसी जानकारियों के साथ ही सभी छन्दों के आधार पर गीतिका के लिए मापनी युक्त, मापनी मुक्तक छंद, उनकी धुन आदि का सटीक और विस्तृत वर्णन इस पुस्तिका को विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए शोध परक बना दिया है | विश्व विद्यालयों में एवं सम्बद्ध कालेजों में हिंदी के विभागाध्यक्षों से मेरा निवेदन है कि इस पुस्तक का अवलोकन अवश्य करे और हिंदी साहित्य के विकास में अपना योगदान देने हेतु चिंतन जरूर करे | 
          कवितालोक के माध्यम से इन्हें सभी विद्वजन कवियों का सहयोग व सर्थन मिला है और पृथक पृथक छंद आधारित 87 रचनाकारों की 161 गीतिकाओं को संग्रह में सम्मिलित किया है| साथ में हर गीतिका का आधार छंद और मापनी का उल्लेख कर इसे रोचक और पठनीय बना दिया है | जो इसे पूर्णतः शोध परक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित करने में सक्षम है | मुझ जैसे अदने से अकिंचन की भी दो गीतिका और एक मुक्तक को सम्मिलित कर मेरा उत्साह् वर्धन किया है, जिसके लिए मैं आदरणीय ओम नीरव जी का तहे दिल से आभारी हूँ |
            अंत में माँ शारदा को नमन करते हूँ मेरी गजलकार शायर से और गीतिका को जो अभी तक स्वीकार नहीं कर पाए उनसे भी विनम्र निवेदन है कि इस पुस्तक का अवलोकन कर चिंतन अवश्य करे क्योंकि यह विधा किसी भी अन्य विधा का विरोध नहीं करती वरन उसको परमोन्नत ही करती है | इति शुभम

लक्ष्मण रामानुज लडीवाल ,जयपुर,राजस्थान

बरसों सहेजकर रखने योग्य उत्कृष्ट ग्रन्थ-'गीतिकालोक'

Mamta Ladiwal 

संकलन-गीतिकालोक          कृतिकार-ओम नीरव
पेज-280                            मूल्य-₹300
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        कवितालोक समूह के साझा संकलन "गीतिकालोक" का 07 अप्रैल 2016 को सुलतानपुर उत्तर प्रदेश में अवनीश त्रिपाठी जी के संयोजन में भव्य विमोचन समारोह हुआ। परिस्थितिवश मेरा जाना तो संभव नहीं हुआ वहां लेकिन जब ये संकलन मेरे हाथों में आया तो उस ख़ुशी को मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती ।
              आदरणीय ओम नीरव जी जिस पुस्तक का सम्पादन करें उसे तो ख़ास होना ही था लेकिन ये मेरी सोच और उम्मीद से भी कहीं ज्यादा ख़ास और महत्वपूर्ण है। प्रचलित मापनियां और आधार छंद , तुकांत विधान और तकनीकी शब्दावली जैसे विषयों को इतने विस्तार और सरलता से पुस्तक में बताया गया है कि बरसों बरस इस कृति को हर कोई सहेज कर रखना चाहेगा और इतनी मेहनत अगर कोई साहित्यकार कर सकता है तो वो सिर्फ और सिर्फ आदरणीय ओम नीरव जी ही हो सकते हैं।
         'गीतिकालोक' में संकलित सभी रचनाएँ श्रेष्ठ हैं और सुखद ये है कि हर गीतिका और मुक्तक का शिल्प भी साथ में दिया गया है। ऐसी अद्भुत और अनमोल कृति का मैं भी हिस्सा बनी इसके लिए मैं अपने आप को बहुत सौभाग्यशाली मानती हूँ । कवितालोक सही मायनों में साहित्य के प्रति समर्पित समूह है और ये कृति 'गीतिकालोक' स्वयं इस बात का प्रमाण है ।
       साथ ही मेरी ख़ुशी की वजह तो एक और भी है...पुस्तक के आखिर में हिसार में हुए कवि सम्मलेन की चंद तस्वीरों में आदरणीय ओम नीरव जी के हाथों सम्मान प्राप्त करते हुए मेरी तस्वीर को भी स्थान दिया गया है ।
      सभी रचनाकारों के साथ साथ कवितालोक के सभी सदस्यों को बहुत बहुत बधाई ।

ममता लडीवाल
नई दिल्ली

गीतिका का एक वृहद् शोध ग्रन्थ-'गीतिकालोक'

मनोज मानव

गीतिका विधा एवं गीतिका संकलन गीतिकालोक
              कृतिकार--ओम नीरव

             मैं इतना सक्षम तो नहीं हूँ कि मैं पुस्तक की समीक्षा करूँ लेकिन जब पूरी पुस्तक पढ़ी तो दो शब्द कहने से स्वंय को रोक पाना असम्भव महसूस कर रहा हूँ पुस्तक को पढ़ने के बाद मालूम चला कि नीरव सर ने इतने दिन क्यों लगा दिए इस संकलन को पाठको के सामने लाने में , पुस्तक का प्रथम चरण उनका शोध कार्य है और सच पूछिए तो हिन्दी की असली सेवा की है उन्होंने इस शोध कार्य को पढ़ने के बाद पाठको के दिमाग से गीतिका के प्रति चले आ रहे दुराग्रह खुद खत्म हो जाएंगे 
            नवरचनाकारों के लिए तो ये पुस्तक एक वरदान है मात्रा भार , तुकान्त विधान , छंदों की विस्तृत जानकारी , मापनी विज्ञानं , क्या नही है इस पुस्तक में 
दुसरे भाग में 87 रचनाकारों की छंदों और मापनी पर आधारित शुद्ध गीतिकाये पूर्ण शिल्प विधान सहित किसी भी नवरचनाकार के लिए एक पाठशाला से कम नहीं हैं ।
        इस पूरी पुस्तक का अवलोकन कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि ये पुस्तक हर हिन्दी प्रेमी के पास संग्रहित होनी चाहिए जिसको पढ़कर छंद , मुक्तक और गीतिका लिखना सीखना बेहद आसान हो जाएगा ।
       इस अद्भुत संग्रह को पाठको तक पहुँचाने के लिए नीरव सर को मेरा बारम्बार नमन ।

मनोज मानव
बिजनौर, उत्तर प्रदेश

हिंदी छंदों का समादर करता एक दुर्लभ सन्दर्भ ग्रन्थ-'गीतिकालोक'

Deepak Goswami 
गीतिकालोक समीक्षा
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                दिनांक ०७ अप्रैल २०१६ का दिवस मेरे लिए एक अविस्मरणीय दिवस बन गया है. इस दिन मुझे सुलतानपुर उत्तर प्रदेश में भाई अवनीश त्रिपाठी जी के संयोजन में कवितालोक सर्द्धशतकीय महाकुम्भ में स्नान का पावन अवसर मिला. अनेक साहित्य मनीषियों के दिव्य दर्शन के साथ साथ उनके काव्य सुधा पान का भी अवसर प्राप्त हुआ. इसी अवसर पर साक्षात्कार हुआ हिंदी साहित्य की गीता  "गीतिकालोक " से .
            "गीतिकालोक " परम श्रद्धेय ओम नीरव जी द्वारा सम्पादित एक दुर्लभ ग्रन्थ है. जो मेरे अनुसार प्रत्येक साहित्यकार के पास सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में होना ही चाहिए.इस ग्रन्थ में गुरुदेव नीरव जी ने बड़े ही सरल व स्पष्ट शैली में सनातनी हिंदी छन्दों को समझाया है, और बड़े ही सुन्दर व मनमोहक उदाहरणों से छन्दों से परिचय कराया है.इस ग्रन्थ का सबसे महत्वपूर्ण सोपान है "गीतिका" जो एक नई विधा है,यह पारम्परिक उर्दू ग़ज़ल को कुछ नए आयाम के द्वारा उसमें हिंदी की सोंधी सुगंध भर कर स्थापित की गई है. गुरूवर ओम नीरव जी के शब्दों में -
"गीतिका एक ऐसी ग़ज़ल है जिसमें हिंदी भाषा की प्रधानता है,हिंदी व्याकरण की अनिवार्यता है और पारम्परिक मापनियों के साथ हिंदी छन्दों का समादर है "
                गुरुवर ने पिछले लगभग दो वर्षोंं से "फेसबुक " सोशल मीडिया के माध्यम से अपने सुप्रसिद्ध समूहों "कवितालोक" व "गीतिकालोक " के द्वारा गीतिका को हिंदी साहित्य में एक अलग विधा के रूप में स्थापित करने का पूर्ण रूपेण सफल प्रयास किया है. आदरणीय नीरव जी व उनके मुझ जैसे अनेक शिष्यों के अनवरत श्रम की परिणीति ही इस "गीतिकालोक " ग्रन्थ के रूप में प्रकट हुई है.
            "गीतिकलोक" ग्रन्थ दो भागों में विभाजित है . भाग-१ :गीतिका विधा भाग-२ : गीतिका संकलन . गुरुवर ने प्रथम भाग में १९ बिंदुओं द्वारा गीतिका विधा के, तकनीकी शब्दावली ,मात्रा भार, तुकांत विधान, मापनी, आधार छन्द , छन्दों का वर्गीकरण व परिचय , गीतिका का ताना बाना, गीतिका और उर्दू ग़ज़ल में तुलना , गीतिका की भाषा आदि के द्वारा गीतिका विधा को समझाया है. इसके अतिरिक्त यह भी बताया है की इसका गीतिका नाम ही क्यों रखा गया है,गीतिका कैसे रची जाय. मुक्तक का मर्म बिंदु के अंतर्गत मुक्तक विधा पर भी प्रकाश डाला है.
             इस ग्रन्थ के दूसरे भाग में सत्तासी (८७) गीतिकाकारों की १६१ श्रेष्ठ गीतिकाओं का संकलन प्रकाशित है,जिसमें प्रत्येक गीतिका के साथ संक्षिप्त शिल्पविधान व रचनाकार का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है. यह मेरा भी परम सौभाग्य है कि मुझ अल्पज्ञ की भी दो गीतिकाओं को पृष्ठ संख्या २२६-२२७ पर स्थान दिया गया है कुल मिला कर यह ग्रन्थ गीतिकालोक हिंदी साहित्य के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा. मैं अपने एक मुक्तक द्वारा परम आदरणीय गुरुवर ओम नीरव जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए लेखनी को विराम दूंगा।

जय मां शारदे.
दीपक गोस्वामी
बहजोई,मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

नवीनता के कलेवर में शिल्पबद्ध गीतिका का संकलन--'गीतिकालोक'

मिलन चौरसिया ‘मिलन’ 
गीतिकालोक:-

            परम आदरणीय श्री ओम नीरव जी द्वारा सृजित एवं सम्पादित पुस्तक गीतिकालोक इस समय मेरे हाथों में है।इसके प्रथम अर्द्धांश में गीतिका विधा के बारे में सम्यक जानकारी दी गयी है।इस पुस्तक को पढ़कर अबतक मैं जो समझ सका वो ये कि परम सनेही, सरल हृदय श्री ओम नीरव जी द्वारा नवीन विधा गीतिका का सृजन ग़ज़ल को आधार बनाकर किया गया है।
              गीतिका में ग़ज़ल के शब्दों यथा मिसरे को पद,शेर को युग्म,उला मिसरे को पूर्व पद,सानी मिसरे को पूरक पद,मतला को मुखड़ा,मक्ता को मनका और हुस्ने मतला को रूप मुखड़ा नाम दिया गया है।हुस्ने मतला से एक रोचक संस्मरण याद आया, कवितालोक की एक पोस्ट पर किसी ने कमेन्ट में पूछा कि मुख्य मुखड़े के अलावा यदि कोई और मुखड़ा होता है तो उसे क्या कहा जाएगा? प्रत्युत्तर में मैंने लिखा था, " सह मुखड़ा"। तब तक रुप मुखड़ा नाम न मिला था या मैं ही अनभिज्ञ था। खैर आगे- ग़ज़ल के सारे ऐब/ दोष गीतिका में भी हैं।हाँ ग़ज़ल के एक गुण अलिफ़वस्ल / अकारयोग को गीतिका में दोष/ ऐब माना गया है जो इसे ग़ज़ल से अलग करता है।
            गीतिका का सारा ताना बाना हिन्दी शब्दों, छन्दों, अलंकारो और व्याकरण से बुना गया है।
गीतिका नवीनता के कलेवर में शिल्पबद्धता के साथ परम्परागत विधाओं को सहेजते हुए आगे निकल पड़ी है।
           इसमें मात्राभार,तुकान्त विधान,छन्द विधान,आधार छन्द,मापनीयुक्त,मापनीमुक्त,वर्णिक मापनी,वाचिक मापनी,मात्रिक मापनी आदि से सुसज्जित है।
            जहाँ ग़ज़ल में मात्रापतन इंगित न होने से कई बार बह्र निर्धारण के साथ लय निर्धारण कठिन व जटिल हो जाता है वहीं गीतिका में मात्रापतन इंगित होने से मापनी व लय निर्धारण सुगम हो जाता है।
इस प्रकार हम पाते हैं कि गीतिका; ग़ज़ल से इतर स्वरूप में ग़ज़ल के समकक्ष खड़ी नजर आती है।
              प्रस्तुत पुस्तक गीतिकालोक के दूसरे अर्द्धांश में देशभर के विभिन्न रचनाकारों द्वारा सृजित उत्कृष्ट गीतिकाएँ संकलित हैं जो नये सीखने वालों के लिए जहाँ मील का पत्थर साबित होंगी वहीं शेष के लिए आनन्द का अविरल स्रोत।पुस्तक में मुझ अकिंचन की भी दो गीतिकाओं को स्थान मिला है। इस पुस्तक से जुड़कर मैं स्वयं को गौरान्वित महसूस कर रहा हूँ।
             गीतिकालोक का लोकार्पण सुल्तानों की धरती सुल्तानपुर में ७अप्रैल २०१६ को रामनरेश त्रिपाठी सभागार में किया गया , जहाँ परम सनेही ,सहृदय श्री ओम नीरव जी से रूबरू मिलने का परमसुख प्राप्त हुआ वहीं सृजन के कई सुल्तानो से भी मिलने का सुअवसर रहा ,जिसमें विशेष रूप से भाई अवनीश त्रिपाठी जी, सौरभ पाण्डेयजी, श्याम फत्तनपुरी जी, डॉ.कैलाश मिश्र जी, मनोज मानव जी,समीर परिमल जी, कालीचरण सिंह राजपूत जी,नागाइच रोशन जी, गोप कुमार मिश्र जी,प्रमिला आर्य जी,रामनरेश यादव जी,कन्हैया लखीमपुर खीरी जी,उमाकान्त पाण्डेय जी,शिवनारायण यादव जी,हेमन्त कुमार कीर्ण जी,धीरज श्रीवास्तव जी आदि। धीरज श्रीवास्तव जी का उल्लेख विशेष रूप से समीचीन है क्योंकि इसीदिन "मेरे गाँव की चिनमुनकी" ,(मनोहारी गीतों का संकलन) पुस्तक का भी लोकार्पण किया गया जो भाई धीरज श्रीवास्तव जी द्वारा सृजित है।
         मेरा परम सौभाग्य कि मैं इन पुस्तकों गीतिकालोक व मेरे गाँव की चिनमुनकी के लोकार्पण का साक्षी रहा। हिन्दी रचनाकारों को इस पुस्तक गीतिकालोक से जहाँ विभिन्न छन्दों व गितिका विधा के सृजन में संपूर्णता प्राप्त होगी वहीं ग़ज़ल की रचना में भी समान उपयोगी है। इस प्रकार यह पुस्तक सभी के लिए संग्रहणीय ही नहीं अपितु हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर है।।
पुस्तक के साथ सभी मित्रों को समर्पित शेर-

सुकून उनको मिले दिल को मेरे चैन मिले।
ख़ुदा करे कि हो ऐसा जब उनसे नैन मिले।।

------मिलन चौरसिया मिलन
         मऊ, उत्तर प्रदेश

गीतिका का वैज्ञानिक आधार-गीतिकालोक

Chhaya Shukla 
मित्रों !
अभिवादन
        आपको बताते हुए अपार हर्ष का अनुभव कर रही हूँ कि बहु प्रतीक्षित "गीतिकालोक" पुस्तक अब मेरे हाथ में है | इसे पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई | जितना कुछ अभी तकपढ़ पाई हूँ | आप सब से साँझा करने जा रही हूँ।
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         बड़े ही हर्ष की बात है कि हिन्दी गज़ल को अब अपने व्याकरण और मान्यताओं के आधार पर एक अपना नाम मिल गया है | इसका श्रेय जाता है आदरणीय ओम नीरव जी को | जी हाँ , आपकी वर्षों की साधना और विशद विमर्श की देन है -पुस्तक “गीतिका लोक” |
इसके दो भाग हैं -
प्रथम भाग -
तकनीकी शब्दावली,मात्राभार,तुकांत विधान,मापनी-विज्ञान,आधार छंद आदि ; सभी सम्भाव्य दृष्टि से इस भाग को तराशा गया है |
द्वितीय भाग -
गीतिका संकलन -
इस भाग में कुल 87 श्रेष्ठ गीतिकाओं को शामिल किया गया है |जिसके रचयिता साहित्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर हैं | इन महान साहित्य कारों के बीच अपनी गीतिका को पाकर मन प्रसन्न है |
सीखने वाले सभी काव्य अनुरागियों के लिए यह पुस्तक एक पाठशाला से कम नहीं |
आदरणीय ओम नीरव जी की सतत निष्काम साहित्य साधना को नमन !
जय माँ शारदे !

छाया शुक्ला
वाराणसी,उत्तर प्रदेश

'गीतिकालोक'-- हिंदी छंदों का समादर

महेश जैन ‘ज्योति’ 
गीतिकालोक : अभिमत
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"गीतिका विधा अब किसी परिचय की मोहताज नहीं । हिन्दी के साहित्याकाश में , गीतिका अब अन्य सनातन छन्दों की भाँति नक्षत्र की तरह स्थापित हो चुकी है और इसका श्रेय जाता है श्री ओम नीरव जी को ...! "
कल ही श्री नीरव जी द्वारा रचित व सम्पादित गीतिका लोक प्राप्त हुई ,जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार था । मुखपृष्ठ को मंत्रमुग्ध सा निर्निमेष देखता रह गया । है ही इतना मनोहारी । लगा जैसे सत्य ही गीतिकालोक साकार हो गया हो । इन्द्रधनुषी आकाश में अटक सा गया मन । वाह ! मन ने कहा कि ..'ये है हमारा गीतिकालोक !'
आवरण के पृष्ठ पर बिखरीं थीं टटीरी की स्मृतियाँ । माँ वाणी को श्रद्धा सुमन और फिर शुभकामनाओँ के शब्द गुच्छ । अपनी बात में नीरव जी कहते हैं ...
"गीतिका एक ऐसी गजल है जिसमें हिन्दी भाषा की प्रधानता हो ,हिन्दी व्याकरण की अनिवार्यता हो और पारम्परिक मापनियों के साथ हिन्दी छन्दों का समादर हो । " उन्होंने यह स्पष्ट रूप से दिखा दिया है कि आज गीतिका का आँगन हिन्दी का है और इतर भाषाओँ के शब्द यहाँ सम्मानित आगंतुक हैं ।
              अनेक वर्षों के श्रम और मंथन के पश्चात ,गीतिका विधा की स्थापना हेतु आपने तकनीकी शब्दावली, मात्राभार , तुकान्त विधान ,  मापनियों का विज्ञान ,  छन्दों के प्रकार ,  मापनीमुक्त और युक्त मात्रिक व वर्णिक छन्दों का वर्णन तो ग्रन्थ में किया ही है , गीतिका व गजल में अंतर व समानतायें तथा गीतिका नाम पर भी विस्तार से प्रकाश डाला हैऔर गीतिका को वैज्ञानिक रूप से ठोस धरातल प्रदान किया है ।
                दूसरे भाग में छंदों और मापनियों पर आधारित , रचनाकारों की रचनायें हैं जो पाठक को विभिन्न रस-रंगों से सराबोर करने में सक्षम हैं । विनती , प्रार्थना , भक्ति , ममता , वात्सल्य , स्नेह ,  प्रेम , शृंगार ,देशभक्ति ,जीवन , जिन्दगी , आँसू और मुस्कान के भाव बिखेरती गीतिकायें पढकर मन ठगा सा रह जाता है । ऐसा कोई भाव नहीं जिसे छुआ न गया हो और ऐसा कोई रस नहीं जिसे बरसाया न गया हो ।
          गीतिकालोक को प्रस्तुत करने में श्री नीरव जी के इस भगीरथ श्रम को बार-बार नमन । उनकी निष्काम साहित्य साधना को पुनि-पुनि प्रणाम ।
नमन कवितालोक ।
जय भारत ।

-महेश जैन 'ज्योति' ,
6-बैंक कालोनी , महोली रोड ,
मथुरा ।