शनिवार, 30 अप्रैल 2016
गुरुवार, 28 अप्रैल 2016
गीतिकालोक काव्य संग्रह- अद्वितीय संदर्भ काव्यानुभूतियाँ व अद्भुत गीतिका व छंद विधान
मंगलवार, 26 अप्रैल 2016
हिंदी गौरव को प्रतिपादित करती व्यवस्थित कृति
समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – श्री ओम नीरव जी
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802)
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या कहूँ गागर में सागर भर दिया.
बातों -बातों में लगे है हाथ में,
ज्ञान का अनुपम खजाना धर दिया.
गीतिका विधा के शिल्पविधान और छंदों का वृहद् निरूपक ग्रन्थ
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802)
गीतिका विधा एवं गीतिका संकलन का अद्भुत संगम--'गीतिकालोक'
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802)
हिंदी व्याकरण और मापनी का तकनीकी आधार संकलन-'गीतिकालोक'
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802)
साहित्यिक अभिरुचि का संवर्द्धक-'गीतिकालोक'
समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – ओम नीरव
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802)
समीक्षक-- Uddhav Deoli
सम्मानित मित्रो नमस्कार।
*गीतिकालोक* की प्रतियाँ प्राप्त हुयी | अति प्रसन्नता का आभास हुआ| यह ग्रन्थ कवितालोक के संस्थापक एवं मार्गदर्शक परम आदरणीय Om Neerav जी की मेहनत व शोध का फल है| हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए गुरुदेव सदा ही प्रयत्नशील रहे हैं,इसी कड़ी में यह ग्रन्थ हमारे हाथों में है| गीतिका का जन्म नीरव जी के ही गुरुकुल में हुआ है|हमनें देखा कि लगातार हम जैसे सीखनें वालों को गुरुदेव अपनी टिप्पणियों के माध्यम से हमें समझाते रहे हैं|आज उसी का परिणाम है कि हम दो शब्द लिख पा रहे हैं|यह पुस्तक हमारे लिए वरदान स्वरूप है|
१-- पुस्तक में *अपनी बात* में ही गुरुदेव ने हिन्दी भाषा की विशिष्टता,इसकी मिठास ,लोकप्रियता व सहित्य के संम्बंध में भरपूर प्रकाश डाला है|
२--पुस्तक के भाग-१ में वे सभी अध्याय प्रदान किये गए हैं जो कि साहित्यकारों केलिए आवश्यक होते हैं| ऐसी पुस्तकें मिलनी कठिन होती हैं तथा इन्हें पानें के लिए साहित्यकार/ रचनाकार /काव्यसृजन करनेंवालों को जगह-जगह घूमना पड़ता है परन्तु उन्हें वांछित पुस्तक प्राप्त नहीं होती है| आज नवोदित साहित्यकार/छात्र/शोधार्थी इस पुस्तक से भरपूर लाभ उठा सकते हैं|
३-इस ग्रन्थ के भाग-२ में ८७ साहित्यकारों/गीतिककारों की १६१ गीतिकाओं का संकलन शिल्प सहित उदारहण/सन्दर्भ हेतु दिया गया हैजोकि गुरुदेव व कवितालोक के असंख्य साहित्यकारों के द्वारा अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से संम्पादित हैं|इन गीतिकाओं में प्रकृति,आध्यात्म,भौतिक ,समसामयिक तथा सभी रसों की रचनाओं को आपको सीखनें व रसास्वादन करनें का अवसर मिलेगा|
अंत में ,मैं यही कहना चाहूँगा कि यह ग्रन्थ विद्यार्थियों/ नवोदित साहित्यकारों/ शोधार्थियों/अध्यापक वर्ग/ साहित्य में रूचि रखनें वालों को वरदान स्वरूप है|
इति शुभम्!😊
उद्धव देवली, कर्णप्रयाग, उत्तराखण्ड
गीतिका विधा एव गीतिका संकलन – (एक शोध परक ग्रन्थ)
समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – ओम नीरव
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802)
Laxman Raamaanuj Ladiwala
कवितालोक के संस्थापक, श्री ओम नीरव जी द्वारा प्रतिपादित गीतिकालोक के नाम से संकलन जब मिला तो प्रथम पृष्ठ पर माँ शारदा के दर्शन के साथ ही द्वित्तीय पृष्ठ पर “सरसों फली सी गीतिका” की चार पंक्तियों ने ही मन मोह लिया और देर रात तक पढने का मोह नहीं छोड़ पाया | मै छन्दों का प्रेमी रहा हूँ मगर इस पुस्तक से यह जान पाया कि हिंदी विश्व में क्यों विशेष पहचान रखती है | इसका कारण इस भाषा की मिठास है | आज जितने भी चलचित्र में मिठास लिए गाने गाये जाते है वे हिंदी के छन्दों के सटीक स्वर, शिल्प और लय के कारण है, जो चाहे संतोषानंद, गोपाल दास नीरज या दुष्यंत कुमार जैसे किसी भी कवि गीतकार ने रचे हो |
इस कृति के लेखक व सम्पादक श्री ओम नीरव जी ने गीतिका नाम की सार्थकता जताते हुए गीतिका को ऐसी ग़ज़ल बताया है जिसमें हिंदी भाषा की प्रधानता, हिंदी व्याकरण की अनिवार्यता और पारस्परिक मापनी के साथ हिंदी छन्दों का समादर हो और इसीलिये मापनी और छंद दोनों को आधार बनाया है | दो वर्षों के निरंतर प्रयास और सभी छन्दों का बारीकी से अध्ययन कर उन छन्दों की मापनी, लय, तुकांत और आधार को लेकर गीतिका का विस्तृत और सटीक विधान बनाकर गीतिका को सर्वमान्य रूप से प्रतिष्ठित करने में आदरणीय ओम नीरव जी ने सफल प्रयास किया है |
संकलन के प्रथम खंड में गीतिका के लिए तकनिकी शब्दावली यथा : पद, युग्म, मुखड़ा, मनका, तुकांत, पूर्व पद, पूरक पद, समान्त, पदांत, मात्रा भार जैसी जानकारियों के साथ ही सभी छन्दों के आधार पर गीतिका के लिए मापनी युक्त, मापनी मुक्तक छंद, उनकी धुन आदि का सटीक और विस्तृत वर्णन इस पुस्तिका को विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए शोध परक बना दिया है | विश्व विद्यालयों में एवं सम्बद्ध कालेजों में हिंदी के विभागाध्यक्षों से मेरा निवेदन है कि इस पुस्तक का अवलोकन अवश्य करे और हिंदी साहित्य के विकास में अपना योगदान देने हेतु चिंतन जरूर करे |
कवितालोक के माध्यम से इन्हें सभी विद्वजन कवियों का सहयोग व सर्थन मिला है और पृथक पृथक छंद आधारित 87 रचनाकारों की 161 गीतिकाओं को संग्रह में सम्मिलित किया है| साथ में हर गीतिका का आधार छंद और मापनी का उल्लेख कर इसे रोचक और पठनीय बना दिया है | जो इसे पूर्णतः शोध परक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित करने में सक्षम है | मुझ जैसे अदने से अकिंचन की भी दो गीतिका और एक मुक्तक को सम्मिलित कर मेरा उत्साह् वर्धन किया है, जिसके लिए मैं आदरणीय ओम नीरव जी का तहे दिल से आभारी हूँ |
अंत में माँ शारदा को नमन करते हूँ मेरी गजलकार शायर से और गीतिका को जो अभी तक स्वीकार नहीं कर पाए उनसे भी विनम्र निवेदन है कि इस पुस्तक का अवलोकन कर चिंतन अवश्य करे क्योंकि यह विधा किसी भी अन्य विधा का विरोध नहीं करती वरन उसको परमोन्नत ही करती है | इति शुभम
- लक्ष्मण रामानुज लडीवाल ,जयपुर,राजस्थान
बरसों सहेजकर रखने योग्य उत्कृष्ट ग्रन्थ-'गीतिकालोक'
Mamta Ladiwal
संकलन-गीतिकालोक कृतिकार-ओम नीरव
पेज-280 मूल्य-₹300
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कवितालोक समूह के साझा संकलन "गीतिकालोक" का 07 अप्रैल 2016 को सुलतानपुर उत्तर प्रदेश में अवनीश त्रिपाठी जी के संयोजन में भव्य विमोचन समारोह हुआ। परिस्थितिवश मेरा जाना तो संभव नहीं हुआ वहां लेकिन जब ये संकलन मेरे हाथों में आया तो उस ख़ुशी को मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती ।
आदरणीय ओम नीरव जी जिस पुस्तक का सम्पादन करें उसे तो ख़ास होना ही था लेकिन ये मेरी सोच और उम्मीद से भी कहीं ज्यादा ख़ास और महत्वपूर्ण है। प्रचलित मापनियां और आधार छंद , तुकांत विधान और तकनीकी शब्दावली जैसे विषयों को इतने विस्तार और सरलता से पुस्तक में बताया गया है कि बरसों बरस इस कृति को हर कोई सहेज कर रखना चाहेगा और इतनी मेहनत अगर कोई साहित्यकार कर सकता है तो वो सिर्फ और सिर्फ आदरणीय ओम नीरव जी ही हो सकते हैं।
'गीतिकालोक' में संकलित सभी रचनाएँ श्रेष्ठ हैं और सुखद ये है कि हर गीतिका और मुक्तक का शिल्प भी साथ में दिया गया है। ऐसी अद्भुत और अनमोल कृति का मैं भी हिस्सा बनी इसके लिए मैं अपने आप को बहुत सौभाग्यशाली मानती हूँ । कवितालोक सही मायनों में साहित्य के प्रति समर्पित समूह है और ये कृति 'गीतिकालोक' स्वयं इस बात का प्रमाण है ।
साथ ही मेरी ख़ुशी की वजह तो एक और भी है...पुस्तक के आखिर में हिसार में हुए कवि सम्मलेन की चंद तस्वीरों में आदरणीय ओम नीरव जी के हाथों सम्मान प्राप्त करते हुए मेरी तस्वीर को भी स्थान दिया गया है ।
सभी रचनाकारों के साथ साथ कवितालोक के सभी सदस्यों को बहुत बहुत बधाई ।
ममता लडीवाल
नई दिल्ली
गीतिका का एक वृहद् शोध ग्रन्थ-'गीतिकालोक'
मनोज मानव
गीतिका विधा एवं गीतिका संकलन गीतिकालोक
कृतिकार--ओम नीरव
मैं इतना सक्षम तो नहीं हूँ कि मैं पुस्तक की समीक्षा करूँ लेकिन जब पूरी पुस्तक पढ़ी तो दो शब्द कहने से स्वंय को रोक पाना असम्भव महसूस कर रहा हूँ पुस्तक को पढ़ने के बाद मालूम चला कि नीरव सर ने इतने दिन क्यों लगा दिए इस संकलन को पाठको के सामने लाने में , पुस्तक का प्रथम चरण उनका शोध कार्य है और सच पूछिए तो हिन्दी की असली सेवा की है उन्होंने इस शोध कार्य को पढ़ने के बाद पाठको के दिमाग से गीतिका के प्रति चले आ रहे दुराग्रह खुद खत्म हो जाएंगे
नवरचनाकारों के लिए तो ये पुस्तक एक वरदान है मात्रा भार , तुकान्त विधान , छंदों की विस्तृत जानकारी , मापनी विज्ञानं , क्या नही है इस पुस्तक में
दुसरे भाग में 87 रचनाकारों की छंदों और मापनी पर आधारित शुद्ध गीतिकाये पूर्ण शिल्प विधान सहित किसी भी नवरचनाकार के लिए एक पाठशाला से कम नहीं हैं ।
इस पूरी पुस्तक का अवलोकन कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि ये पुस्तक हर हिन्दी प्रेमी के पास संग्रहित होनी चाहिए जिसको पढ़कर छंद , मुक्तक और गीतिका लिखना सीखना बेहद आसान हो जाएगा ।
इस अद्भुत संग्रह को पाठको तक पहुँचाने के लिए नीरव सर को मेरा बारम्बार नमन ।
मनोज मानव
बिजनौर, उत्तर प्रदेश
हिंदी छंदों का समादर करता एक दुर्लभ सन्दर्भ ग्रन्थ-'गीतिकालोक'
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दिनांक ०७ अप्रैल २०१६ का दिवस मेरे लिए एक अविस्मरणीय दिवस बन गया है. इस दिन मुझे सुलतानपुर उत्तर प्रदेश में भाई अवनीश त्रिपाठी जी के संयोजन में कवितालोक सर्द्धशतकीय महाकुम्भ में स्नान का पावन अवसर मिला. अनेक साहित्य मनीषियों के दिव्य दर्शन के साथ साथ उनके काव्य सुधा पान का भी अवसर प्राप्त हुआ. इसी अवसर पर साक्षात्कार हुआ हिंदी साहित्य की गीता "गीतिकालोक " से .
"गीतिकालोक " परम श्रद्धेय ओम नीरव जी द्वारा सम्पादित एक दुर्लभ ग्रन्थ है. जो मेरे अनुसार प्रत्येक साहित्यकार के पास सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में होना ही चाहिए.इस ग्रन्थ में गुरुदेव नीरव जी ने बड़े ही सरल व स्पष्ट शैली में सनातनी हिंदी छन्दों को समझाया है, और बड़े ही सुन्दर व मनमोहक उदाहरणों से छन्दों से परिचय कराया है.इस ग्रन्थ का सबसे महत्वपूर्ण सोपान है "गीतिका" जो एक नई विधा है,यह पारम्परिक उर्दू ग़ज़ल को कुछ नए आयाम के द्वारा उसमें हिंदी की सोंधी सुगंध भर कर स्थापित की गई है. गुरूवर ओम नीरव जी के शब्दों में -
"गीतिका एक ऐसी ग़ज़ल है जिसमें हिंदी भाषा की प्रधानता है,हिंदी व्याकरण की अनिवार्यता है और पारम्परिक मापनियों के साथ हिंदी छन्दों का समादर है "
गुरुवर ने पिछले लगभग दो वर्षोंं से "फेसबुक " सोशल मीडिया के माध्यम से अपने सुप्रसिद्ध समूहों "कवितालोक" व "गीतिकालोक " के द्वारा गीतिका को हिंदी साहित्य में एक अलग विधा के रूप में स्थापित करने का पूर्ण रूपेण सफल प्रयास किया है. आदरणीय नीरव जी व उनके मुझ जैसे अनेक शिष्यों के अनवरत श्रम की परिणीति ही इस "गीतिकालोक " ग्रन्थ के रूप में प्रकट हुई है.
"गीतिकलोक" ग्रन्थ दो भागों में विभाजित है . भाग-१ :गीतिका विधा भाग-२ : गीतिका संकलन . गुरुवर ने प्रथम भाग में १९ बिंदुओं द्वारा गीतिका विधा के, तकनीकी शब्दावली ,मात्रा भार, तुकांत विधान, मापनी, आधार छन्द , छन्दों का वर्गीकरण व परिचय , गीतिका का ताना बाना, गीतिका और उर्दू ग़ज़ल में तुलना , गीतिका की भाषा आदि के द्वारा गीतिका विधा को समझाया है. इसके अतिरिक्त यह भी बताया है की इसका गीतिका नाम ही क्यों रखा गया है,गीतिका कैसे रची जाय. मुक्तक का मर्म बिंदु के अंतर्गत मुक्तक विधा पर भी प्रकाश डाला है.
इस ग्रन्थ के दूसरे भाग में सत्तासी (८७) गीतिकाकारों की १६१ श्रेष्ठ गीतिकाओं का संकलन प्रकाशित है,जिसमें प्रत्येक गीतिका के साथ संक्षिप्त शिल्पविधान व रचनाकार का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है. यह मेरा भी परम सौभाग्य है कि मुझ अल्पज्ञ की भी दो गीतिकाओं को पृष्ठ संख्या २२६-२२७ पर स्थान दिया गया है कुल मिला कर यह ग्रन्थ गीतिकालोक हिंदी साहित्य के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा. मैं अपने एक मुक्तक द्वारा परम आदरणीय गुरुवर ओम नीरव जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए लेखनी को विराम दूंगा।
जय मां शारदे.
बहजोई,मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
नवीनता के कलेवर में शिल्पबद्ध गीतिका का संकलन--'गीतिकालोक'
मिलन चौरसिया ‘मिलन’
गीतिकालोक:-
परम आदरणीय श्री ओम नीरव जी द्वारा सृजित एवं सम्पादित पुस्तक गीतिकालोक इस समय मेरे हाथों में है।इसके प्रथम अर्द्धांश में गीतिका विधा के बारे में सम्यक जानकारी दी गयी है।इस पुस्तक को पढ़कर अबतक मैं जो समझ सका वो ये कि परम सनेही, सरल हृदय श्री ओम नीरव जी द्वारा नवीन विधा गीतिका का सृजन ग़ज़ल को आधार बनाकर किया गया है।
गीतिका में ग़ज़ल के शब्दों यथा मिसरे को पद,शेर को युग्म,उला मिसरे को पूर्व पद,सानी मिसरे को पूरक पद,मतला को मुखड़ा,मक्ता को मनका और हुस्ने मतला को रूप मुखड़ा नाम दिया गया है।हुस्ने मतला से एक रोचक संस्मरण याद आया, कवितालोक की एक पोस्ट पर किसी ने कमेन्ट में पूछा कि मुख्य मुखड़े के अलावा यदि कोई और मुखड़ा होता है तो उसे क्या कहा जाएगा? प्रत्युत्तर में मैंने लिखा था, " सह मुखड़ा"। तब तक रुप मुखड़ा नाम न मिला था या मैं ही अनभिज्ञ था। खैर आगे- ग़ज़ल के सारे ऐब/ दोष गीतिका में भी हैं।हाँ ग़ज़ल के एक गुण अलिफ़वस्ल / अकारयोग को गीतिका में दोष/ ऐब माना गया है जो इसे ग़ज़ल से अलग करता है।
गीतिका का सारा ताना बाना हिन्दी शब्दों, छन्दों, अलंकारो और व्याकरण से बुना गया है।
गीतिका नवीनता के कलेवर में शिल्पबद्धता के साथ परम्परागत विधाओं को सहेजते हुए आगे निकल पड़ी है।
इसमें मात्राभार,तुकान्त विधान,छन्द विधान,आधार छन्द,मापनीयुक्त,मापनीमुक्त,वर्णिक मापनी,वाचिक मापनी,मात्रिक मापनी आदि से सुसज्जित है।
जहाँ ग़ज़ल में मात्रापतन इंगित न होने से कई बार बह्र निर्धारण के साथ लय निर्धारण कठिन व जटिल हो जाता है वहीं गीतिका में मात्रापतन इंगित होने से मापनी व लय निर्धारण सुगम हो जाता है।
इस प्रकार हम पाते हैं कि गीतिका; ग़ज़ल से इतर स्वरूप में ग़ज़ल के समकक्ष खड़ी नजर आती है।
प्रस्तुत पुस्तक गीतिकालोक के दूसरे अर्द्धांश में देशभर के विभिन्न रचनाकारों द्वारा सृजित उत्कृष्ट गीतिकाएँ संकलित हैं जो नये सीखने वालों के लिए जहाँ मील का पत्थर साबित होंगी वहीं शेष के लिए आनन्द का अविरल स्रोत।पुस्तक में मुझ अकिंचन की भी दो गीतिकाओं को स्थान मिला है। इस पुस्तक से जुड़कर मैं स्वयं को गौरान्वित महसूस कर रहा हूँ।
गीतिकालोक का लोकार्पण सुल्तानों की धरती सुल्तानपुर में ७अप्रैल २०१६ को रामनरेश त्रिपाठी सभागार में किया गया , जहाँ परम सनेही ,सहृदय श्री ओम नीरव जी से रूबरू मिलने का परमसुख प्राप्त हुआ वहीं सृजन के कई सुल्तानो से भी मिलने का सुअवसर रहा ,जिसमें विशेष रूप से भाई अवनीश त्रिपाठी जी, सौरभ पाण्डेयजी, श्याम फत्तनपुरी जी, डॉ.कैलाश मिश्र जी, मनोज मानव जी,समीर परिमल जी, कालीचरण सिंह राजपूत जी,नागाइच रोशन जी, गोप कुमार मिश्र जी,प्रमिला आर्य जी,रामनरेश यादव जी,कन्हैया लखीमपुर खीरी जी,उमाकान्त पाण्डेय जी,शिवनारायण यादव जी,हेमन्त कुमार कीर्ण जी,धीरज श्रीवास्तव जी आदि। धीरज श्रीवास्तव जी का उल्लेख विशेष रूप से समीचीन है क्योंकि इसीदिन "मेरे गाँव की चिनमुनकी" ,(मनोहारी गीतों का संकलन) पुस्तक का भी लोकार्पण किया गया जो भाई धीरज श्रीवास्तव जी द्वारा सृजित है।
मेरा परम सौभाग्य कि मैं इन पुस्तकों गीतिकालोक व मेरे गाँव की चिनमुनकी के लोकार्पण का साक्षी रहा। हिन्दी रचनाकारों को इस पुस्तक गीतिकालोक से जहाँ विभिन्न छन्दों व गितिका विधा के सृजन में संपूर्णता प्राप्त होगी वहीं ग़ज़ल की रचना में भी समान उपयोगी है। इस प्रकार यह पुस्तक सभी के लिए संग्रहणीय ही नहीं अपितु हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर है।।
पुस्तक के साथ सभी मित्रों को समर्पित शेर-
सुकून उनको मिले दिल को मेरे चैन मिले।
ख़ुदा करे कि हो ऐसा जब उनसे नैन मिले।।
------मिलन चौरसिया मिलन
मऊ, उत्तर प्रदेश
गीतिका का वैज्ञानिक आधार-गीतिकालोक
Chhaya Shukla
मित्रों !
अभिवादन
आपको बताते हुए अपार हर्ष का अनुभव कर रही हूँ कि बहु प्रतीक्षित "गीतिकालोक" पुस्तक अब मेरे हाथ में है | इसे पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई | जितना कुछ अभी तकपढ़ पाई हूँ | आप सब से साँझा करने जा रही हूँ।
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बड़े ही हर्ष की बात है कि हिन्दी गज़ल को अब अपने व्याकरण और मान्यताओं के आधार पर एक अपना नाम मिल गया है | इसका श्रेय जाता है आदरणीय ओम नीरव जी को | जी हाँ , आपकी वर्षों की साधना और विशद विमर्श की देन है -पुस्तक “गीतिका लोक” |
इसके दो भाग हैं -
प्रथम भाग -
तकनीकी शब्दावली,मात्राभार,तुकांत विधान,मापनी-विज्ञान,आधार छंद आदि ; सभी सम्भाव्य दृष्टि से इस भाग को तराशा गया है |
द्वितीय भाग -
गीतिका संकलन -
इस भाग में कुल 87 श्रेष्ठ गीतिकाओं को शामिल किया गया है |जिसके रचयिता साहित्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर हैं | इन महान साहित्य कारों के बीच अपनी गीतिका को पाकर मन प्रसन्न है |
सीखने वाले सभी काव्य अनुरागियों के लिए यह पुस्तक एक पाठशाला से कम नहीं |
आदरणीय ओम नीरव जी की सतत निष्काम साहित्य साधना को नमन !
जय माँ शारदे !
छाया शुक्ला
वाराणसी,उत्तर प्रदेश
'गीतिकालोक'-- हिंदी छंदों का समादर
महेश जैन ‘ज्योति’
गीतिकालोक : अभिमत
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"गीतिका विधा अब किसी परिचय की मोहताज नहीं । हिन्दी के साहित्याकाश में , गीतिका अब अन्य सनातन छन्दों की भाँति नक्षत्र की तरह स्थापित हो चुकी है और इसका श्रेय जाता है श्री ओम नीरव जी को ...! "
कल ही श्री नीरव जी द्वारा रचित व सम्पादित गीतिका लोक प्राप्त हुई ,जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार था । मुखपृष्ठ को मंत्रमुग्ध सा निर्निमेष देखता रह गया । है ही इतना मनोहारी । लगा जैसे सत्य ही गीतिकालोक साकार हो गया हो । इन्द्रधनुषी आकाश में अटक सा गया मन । वाह ! मन ने कहा कि ..'ये है हमारा गीतिकालोक !'
आवरण के पृष्ठ पर बिखरीं थीं टटीरी की स्मृतियाँ । माँ वाणी को श्रद्धा सुमन और फिर शुभकामनाओँ के शब्द गुच्छ । अपनी बात में नीरव जी कहते हैं ...
"गीतिका एक ऐसी गजल है जिसमें हिन्दी भाषा की प्रधानता हो ,हिन्दी व्याकरण की अनिवार्यता हो और पारम्परिक मापनियों के साथ हिन्दी छन्दों का समादर हो । " उन्होंने यह स्पष्ट रूप से दिखा दिया है कि आज गीतिका का आँगन हिन्दी का है और इतर भाषाओँ के शब्द यहाँ सम्मानित आगंतुक हैं ।
अनेक वर्षों के श्रम और मंथन के पश्चात ,गीतिका विधा की स्थापना हेतु आपने तकनीकी शब्दावली, मात्राभार , तुकान्त विधान , मापनियों का विज्ञान , छन्दों के प्रकार , मापनीमुक्त और युक्त मात्रिक व वर्णिक छन्दों का वर्णन तो ग्रन्थ में किया ही है , गीतिका व गजल में अंतर व समानतायें तथा गीतिका नाम पर भी विस्तार से प्रकाश डाला हैऔर गीतिका को वैज्ञानिक रूप से ठोस धरातल प्रदान किया है ।
दूसरे भाग में छंदों और मापनियों पर आधारित , रचनाकारों की रचनायें हैं जो पाठक को विभिन्न रस-रंगों से सराबोर करने में सक्षम हैं । विनती , प्रार्थना , भक्ति , ममता , वात्सल्य , स्नेह , प्रेम , शृंगार ,देशभक्ति ,जीवन , जिन्दगी , आँसू और मुस्कान के भाव बिखेरती गीतिकायें पढकर मन ठगा सा रह जाता है । ऐसा कोई भाव नहीं जिसे छुआ न गया हो और ऐसा कोई रस नहीं जिसे बरसाया न गया हो ।
गीतिकालोक को प्रस्तुत करने में श्री नीरव जी के इस भगीरथ श्रम को बार-बार नमन । उनकी निष्काम साहित्य साधना को पुनि-पुनि प्रणाम ।
नमन कवितालोक ।
जय भारत ।
-महेश जैन 'ज्योति' ,
6-बैंक कालोनी , महोली रोड ,
मथुरा ।