ओम नीरव

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

'गीतिकालोक'-- छन्द व उर्दू बहरों का विस्तृत शोध

Rahul Dwivedi Smit , Lucknow

        पुस्तक 'गीतिकालोक' जब प्राप्त हुई तो उस समय मन में पुस्तक को लेकर कई प्रकार की परिकल्पनाएं जीवंत थीं । पुस्तक का सम्पादन व लेखन कवितालोक ऑनलाइन महाविद्यालय के संस्थापक एवं संरक्षक गुरु परम आदरणीय Om Neerav जी ने किया है । 
              पुस्तक में कई श्रेष्ठ रचनाकारों की गीतिका व मुक्तको का संकलन है । यह कोई विशेष तो नहीं आज कल हर महीने साझा संकलन निकल रहे हैं । तो विशिष्ट क्या है?
            यह जानने के लिए जब पुस्तक खोल कर देखा तो आश्चर्य व गर्व से अभिभूत हो उठा । पुस्तक में मात्र आनंद हेतु कविता रूपी व्यंजन ही नहीं परोसे गये अपितु उन व्यंजनों को बनाने की विधि का भी वर्णन बहुत श्रेष्ठतम रूप में किया गया है । पुस्तक को जैसे-जैसे आगे पढ़ा तो लगा जैसे पुस्तक के रूप में कोई खजाना सा हाथ लग गया हो ।हम सभी गजल तो जानते हैं और छंदों से भी कम या ज्यादा परिचित होंगे किन्तु आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि उर्दू की कई बहरें हिंदी छंदों पर सटीक बैठती हैं और बहरों से आगे भी आ जाएँ क्यों कि बहर तो सीमित हैं तो कई हिंदी छंदों की लय इतनी प्यारी और सुलभ है जिनपर हम अनुपम हिंदी गजलों का निर्माण कर सकते हैं ।
            पुस्तक में एक एक बहर को दर्शाया गया है और यह भी बताया गया है कि अमुक बहर किस छंद पर आधारित है अर्थात हम किस बहर पर लिखें तो कौन सा छंद बन जाएगा और किस छंद की लय में लिखें तो कौन सी बहर बन जायेगी । साथ ही साथ कई अन्य छंदों व उनकी लय का भी उल्लेख है जो किसी उर्दू बहर को उल्लेखित तो नहीं करतीं मगर यदि उनकी लय पर लिखें तो अनुपम हिंदी गजलों का सृजन किया जा सकता है ।
           पुस्तक में मात्राभार/पदांत(रदीफ़) /समांत (काफिया)/ मुखड़ा(मतला) /मनका (मकता) आदि शब्दों व उनके प्रयोग सम्बन्धी व्याकरण की भी सुंदर व सरल शब्दों में व्याख्या उदाहरण सहित की गयी है । गीतिका/गजल लिखते समय कई प्रकार के दोष भी प्रायः युवा ध्यान में नही रखते पुस्तक में उन दोषों का भी उल्लेख किया गया है ताकि शुद्ध व श्रेष्ठ गीतिका सृजित की जा सकें ।साथ ही पुस्तक में जिन भी गीतिकाओं को स्थान दिया गया है उनका शिल्प भी नीचे दिया है कि उनका आधार छंद कौन सा है व मापनी क्या है ।
           अब बात यह है कि हिंदी गजल हुई तो गजल ही अतः इसे सीमित बहर से भिन्न किसी अन्य पैमाने पर सृजित नहीं किया जा सकता तो इसका भी उपाय नीरव जी ने कब का कर लिया था हिंदी गजल जैसे इस स्वरूप को गीतिका का नाम देकर । गीतिका पर विवाद भी कम न हुए क्यों कि जब कुछ नया होता है आसानी से पचता थोड़े है तो उन सभी प्रश्नों व विवादों का व्यावहारिक मनोवैज्ञानिक तार्किक हल इस गीतिका लोक पुस्तक में सभी पाठकों को आसानी से मिल जाएगा ।
           इस साझा संकलन में मुझ अल्पज्ञ कलमकार की भी 2 गीतिका व एक मुक्तक को स्थान दिया गया है । सच मानिए ऐसी ऐतिहासिक पुस्तक का अंग बनकर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ एवं सत-सत वन्दन भी प्रेषित करता हूँ गुरु नीरव जी को जिन्होंने नवोदितों के लिए इस अनुपम अद्वितीय पुस्तक का सम्पादन व लेखन किया तथा अपने छंद व उर्दू बहरों के विस्तृत शोध को इसमें सम्मिलित कर पुस्तक को गागर में सागर का स्वरूप दे डाला और हाँ मुझे भी इस अविस्मरणीय उपलब्धि में हिस्सा दिया इसके लिए भी हृदय की गहराई से आभार व सादर वन्दन।
      
           समीक्षक:- राहुल द्विवेदी स्मित
                           लखनऊ,उ. प्र.

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