ओम नीरव

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

हिंदी गौरव को प्रतिपादित करती व्यवस्थित कृति

भारती जैन ‘दिव्यांशी’  
समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – श्री ओम नीरव जी
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802) 

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क्या कहूँ कोई करिश्मा कर दिया.
या कहूँ गागर में सागर भर दिया.
बातों -बातों में लगे है हाथ में,
ज्ञान का अनुपम खजाना धर दिया.
       आ.ओम नीरव जी द्वारा संकलित 'गीतिकालोक' अनुपम कृति गीतिका विधा एवं गीतिका संकलन पढ़ती जा रही हूँ लेकिन हाल ये है कि, आस बढ़ती जा रही है, प्यास बुझती ही नहीं.भारत जैसे अखंड राष्ट्र में हिंदी को बढावा देने हेतु आपने जो अभिनव प्रयोग किया है निश्चित रूप से अभिनंदनीय है एवं यह संकलन हिन्दुस्तान में हिंदी के गौरव को प्रतिपादित करेगा ऐसा मेरा विश्वास है.
             87 गीतिकाकारों की 161 गीतिकाओं को एक माला में पिरोकर हिन्दी साहित्य के विकास और सम्वर्धन के इस महत्वपूर्ण उपक्रम के पीछे आपका अदम्य साहस, अकूत क्षमता एवं तप स्पष्ट परिलक्षित है.
            कृति के प्रथम भाग में गीतिका विधा नाम से दी गयी व्याकरण सम्बन्धी जानकारी का अनुशीलन कर वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ी इस युग की काव्यगत प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं से सहज ही सुपरिचित हो सकेंगी.
     इस अनुपम कृति में पेज न. 122,123 पर मेरी भी दो रचनाओं को स्थान दिया गया है ,जिसके लिए मैं आत्मिक आभार प्रकट करती हूँ..मैं आपकी इस महत्वपूर्ण उपलब्धि का हार्दिक स्वागत करती हूँ एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ आपको नमन करती हूँ .
जय हिन्द ! जय हिन्दी !

भारती जैन ‘दिव्यांशी’  

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