ओम नीरव

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

हिन्दी कविता किधर चली

     ग्राम या नगर में सक्रिय कवियों, कवि गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों, पत्र-पत्रिकाओं और फेसबुक में दृष्टव्य कविताओं, प्रकाशित और लोकार्पित होने वाली काव्यकृतियों का परिमाणात्मक आकलन किया जाये तो निस्संदेह आजकल हिन्दी कविता अपने शिखर पर है। यह स्थिति अत्यंत सुखद है लेकिन यदि हिन्दी कविता का गुणात्मक आकलन किया जाये और विशेषतः उसकी लोकप्रियता पर दृष्टि डाली जाये तो वस्तुस्थिति चिंताजनक प्रतीत होती है। आजकल कतिपय अपवादों को छोडकर कवि सम्मेलन व्यावसायिक केंद्र बन गये हैं जहाँ से लोकलुभावन चुट्कुले, अश्लील द्विअर्थी संवाद, फूहड़ हास्य, ओज के नाम पर चीख-चिल्लाहट और काव्याभिव्यक्ति के नाम पर नाटकीय अभिनय परोसा जाता है और इस सबके बीच अपने अस्तित्व की खोज करती कविता कहीं उपेक्षित स्थिति में असहाय दिखाई देती है। सामान्यतः आदान-प्रदान की परंपरा में कविसम्मेलन अखाड़े बन गये हैं जिनके संयोजक मठाधीश की भूमिका में दिखाई देते हैं। जाने कितने कवि या मंचीय कलाकार हैं जो केवल धनार्जन के लिए ही कविता के अखाड़े में उतरते हैं। धन्य हैं वे जो इस परिवेश में भी मंचों से सार्थक कविता का रसपान कराने के लिए प्रयत्नशील हैं और कविता के अस्तित्व की रक्षा के लिए घोर संघर्ष कर रहे हैं। 

 साहित्यिक कविता के नाम पर ऐसी रचनाओं का सृजन बहुलता से देखने को मिलता है जो केवल पुस्तकालयों की शोभा बढ़ाने के लिए होती हैं, सामान्य जन-मानस से उनका दूर का भी संबंध नहीं होता है। इनमें से कुछ कृतियाँ ऐसी होती हैं जो किसी विशेष वाद का पोषण करने लिए रची जाती हैं और कुछ ऐसी होती हैं जो किसी सम्मान या पुरस्कार को दृष्टि में रखकर रची जाती हैं। कुछ तथाकथित साहित्यकार परिष्कृत भाषा के नाम पर ऐसी क्लिष्ट शब्दावली का प्रयोग करते हैं जिसे किसी वृहत शब्दकोश की सहायता के बिना समझा नहीं जा सकता है और कुछ नव प्रतीक-विधान और नव बिम्ब-योजना के नाम पर खंडित बिम्बों का ऐसा चक्रव्यूह प्रस्तुत करते है जिसका भेदन करने में पाठक और स्वयं रचनाकार भी असमर्थ रहता है। ऐसे तथाकथित साहित्यिक सृजन ने कविता को जनमानस से कोसों दूर कर दिया है। 

 कविता को जनमानस से दूर करने में बड़ी भूमिका छंद मुक्त कविता की रही है। यदि निरपेक्ष भाव से देखा जाये तो छंदबद्ध और छंदमुक्त दोनों काव्य-विधाएँ सम्माननीय हैं। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो छंदमुक्त कविता में छंदानुबंध और गेयता का अभाव होने के बाद भी उसमें काव्य-सौन्दर्य और संप्रेषणीयता उत्पन्न करना एक ऐसा कार्य है जो विशिष्ट काव्य-कौशल की अपेक्षा रखता है जबकि छंदबद्ध कविता में किसी सार्थक कथ्य को कविता बनाने के लिए छंदबद्धता ही पर्याप्त होती है। निश्चित रूप से छंदमुक्त कविता का सृजन अपेक्षाकृत एक बड़ी चुनौती है। छंदमुक्त सृजन के लिए यह जानना आवश्यक है कि छंदबद्धता के अतिरिक्त और कौन से तत्व हैं जो कविता को कविता बनाने के किए आवश्यक हैं। कथ्य की सार्थक नव्यता, अभिव्यक्ति की प्रखरता, उपमान-विधान, प्रतीक-विधान, बिम्ब-योजना, भावानुकूल शब्द-संयोजन, यथारूचि तुकांतता, भावप्रवणता, मारक क्षमता आदि ऐसे तत्व हैं जिनका न्यूनाधिक मात्रा में प्रयोग छंदमुक्त कविता की प्राणप्रतिष्ठा के लिए अनिवार्य प्रतीत होता है। वस्तुस्थिति इससे भिन्न है। जाने कितने ऐसे रचनाकार हैं जो किसी गद्य-खंड को छोटी-बड़ी पंक्तियों में विभाजित कर कुछ शब्दों को इधर-उधर कर देते हैं और उसे छंदमुक्त कविता का नाम दे देते हैं। आश्चर्य यह देखकर होता है कि ऐसी रचनाओं को पत्र-पत्रिकाओं में भी वरीयता के साथ स्थान दिया जाता है जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे छंदबद्ध कविता के विरुद्ध कोई आंदोलन चल रहा हो। यह आंदोलनकारी स्थिति तब और भी उभर कर सामने आ जाती है जब छंदमुक्त रचनाकार छंदबद्ध कविता के अवगुण गिनाकर उसे उपेक्षित और अपवर्जित करने का प्रयास करते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि छंदबद्ध कविता के दो विशेष लक्षण हैं- गेयता और तुकांतता, जिनके कारण वह जन-जन के मन में सहज ही रच-बस जाती है और चिरकाल तक अविस्मरणीय बनी रहती है। यही कारण है कि तुलसी, सूर, मीरा, रसखान, महादेवी वर्मा आदि की छंदबद्ध काव्य-पंक्तियाँ जन-साधारण के ओठों पर अनायास ही थिरक जाती है जबकि अछन्द कविता अपेक्षित काव्यसौंदर्य के साथ श्रेष्ठ विचारों की संवाहक होने के बाद भी जनमानस में अपना ऐसा स्थान बनाने में असफल रहती है। उल्लेखनीय है कि कुशल संगीतज्ञ किसी गद्य को संगीतबद्ध कर गा सकते हैं जैसाकि दूरदर्शन के विज्ञापनों में प्रायः देखा जाता है लेकिन इससे वह गद्य पद्य नहीं हो जाता है जबकि छंदबद्ध कविता में लघु-गुरु वर्णों का संयोजन इसप्रकार किया जाता है कि उसे पढ़ने पर एक लय सहज ही पाठक के मन में स्थापित हो जाती है जिसे लयात्मकता या गेयता कहते हैं। दूसरे शब्दों में छंद लय का व्याकरण है। लय प्रायः अनुकरण से ग्रहण की जाती है किन्तु उसकी सटीकता का परीक्षण छंद की कसौटी पर होता है। लयात्मकता के कारण ही छंदबद्ध कविता को पढ़ने पर एक विशेष आनंद का अनुभव होता है जो छंदमुक्त कविता से प्राप्त नहीं हो पाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी काव्य-तत्व छंदमुक्त कविता में भी समान रूप से समाहित हो सकते है और उसे उत्कृष्टता प्रदान कर सकते हैं। वस्तुतः विभिन्न काव्य-तत्वों के समावेश से रचना को उत्कृष्टता प्रदान करना रचनाकार की व्यक्तिगत अभिरुचि और क्षमता पर निर्भर करता है, चाहे कविता छंदबद्ध हो या छंदमुक्त। 

 विचारणीय प्रश्न यह भी है कि कविता किस के लिए लिखी जाती है- जन-साधारण के लिए या विद्वानों के लिए? पुस्तकालयों के लिए या समाज के लिए? स्पष्ट है कि सत्यं-शिवं-सुंदरम् को साकार करने वाली लोकमंगलकारी कविता सदैव जन-साधारण और समाज के लिए लिखी जाती है। वह कविता कविता क्या, जो जन-मानस को भाव-विभोर न कर सके। गीत के विषय में कही गयी मेरी यह उक्ति दृष्टव्य है- 

प्रत्येक गीत का है सर्वोच्च पारितोषिक, 

एकांत में किसी का वह गीत गुनगुनाना। 

 इस कसौटी पर वही कविता खरी उतर सकती है जो छंदबद्ध हो, तुकांत हो और सहज संप्रेषणीय हो। छंदमुक्त कविता एक सुविधाजनक विकल्प के रूप में ग्राह्य हो सकती है किन्तु वैसी लोकमंगलकारी, लोकरंजक और लोकप्रिय नहीं हो सकती है जैसी छंदबद्ध कविता सदैव से रही है। कुछ लोग समीक्षा से बचने के लिए अपनी कविता को ‘स्वांतः सुखाय’ कह देते हैं और तुलसी दास का उदाहरण प्रस्तुत कर देते हैं। उन्हें आत्म-निरीक्षण करना चाहिए कि उनके कथन में कितनी सत्यता है और इस बात का भी आकलन करना चाहिए कि क्या उनका ‘स्व’ तुलसी के ‘स्व’ से समानता रखता है। ध्यातव्य है कि तुलसी का स्व राममय होने के कारण इतना विस्तार पा चुका था कि उसमें ही ‘पर’ भी समाहित हो चुका था और वह अंततः ‘सर्व’ हो गया था। इसके विपरीत आजकल देखा तो यह जाता है कि प्रायः जो अपनी रचना को स्वांतः सुखाय बताते हैं वही वाह-वाही, सम्मान और पुरस्कार प्राप्त करने की दौड़ में सबसे आगे दिखाई देते हैं। 

 कवि और कविता के प्रति जनभावना में अरुचि का एक कारण कवियों का चरित्र भी है जो मंच पर कुछ होता है जबकि मंच के पीछे कुछ और होता है। आवश्यक नहीं है कि रचनाकार सदैव वही लिखे जिसे वह जिये किन्तु उसका चरित्र उसकी कविता से संप्रेषित संदेश के ठीक विपरीत भी नहीं होना चाहिए। किसी ने सच ही कहा है कि एक अच्छा कवि होने के किए एक अच्छा व्यक्ति होना आवश्यक है। यह कटु सत्य है कि आज का समाज कवि और कविता को गंभीरता से नहीं ले रहा है और कवि के पास वह आत्मगौरव नहीं रहा है कि वह गर्व से कह सके -‘मैं कवि हूँ’। इस आत्मगौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए मेरी दृष्टि में आवश्यक है- (1) छंदमुक्त कविता का उचित सम्मान करते हुए छंदबद्ध कविता को वरीयता दी जाये (2) कविता का सृजन पूस्तकालयों की शोभा और पुरस्कारों-सम्मानों के लिए नहीं अपितु जन-साधारण के लिए किया जाये (3) गंभीर बात को सरल शब्दों में व्यक्त करने का अभ्यास किया जाये (4) प्रतीकों और बिम्बों का प्रयोग अभिव्यक्ति और संप्रेषणीयता बढ़ाने के लिए ही किया जाये (5) कवि सम्मेलन के मंच से सत्यं-शिवं-सुंदरम् को साकार करने वाली सुबोध लोकप्रिय रचनाओं को प्रस्तुत किया जाये और उच्छृंखल-अमर्यादित संवादों को अपवर्जित किया जाये (6) कवियों द्वारा आचरण में अपनी गरिमा को ध्यान में रखा जाये।

 कवि-समाज को मिलकर आज स्वयं आत्म-मंथन करना होगा और चिंतन करना होगा कि कविता को किस प्रकार उसकी खोयी हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाई जा सकती है। 

- ओम नीरव 

अध्यक्ष, कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ। 

चलभाष- 8299034545

रविवार, 2 दिसंबर 2018

कवितालोक: पीरनगर सीतापुर में विराट कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह

कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ के तत्वाधान में संस्था के संरक्षक छन्दाचार्य ओम नीरव की अध्यक्षता में एवम कवि सुनील त्रिपाठी के संयोजन में तृतीय विराट कवि सम्मेलन का आयोजन 31वें श्री शतचण्डी महायज्ञ के अवसर पर श्री साठिका देवी मंदिर परिसर ,पीरनगर, कमलापुर, सीतापुर में किया गया।

आयोजक श्री शतचण्डी सामाजिक सेवा समिति के प्रबन्धक अनिल त्रिपाठी थे।इस अवसर पर सीतापुर जनपद के वरेण्य ओज के कवि केदारनाथ शुक्ल जी के प्रबंध काव्य 'प्रताप' का लोकार्पण भी हुआ । पद्मकान्त शर्मा 'प्रभात' ने आये हुए अतिथियों को स्वागत अभिनंदन किया

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि क्षेत्रीय भाजपा विधायक महेंद्र प्रताप सिंह यादव 

व विशिष्ट अतिथियों में सुरेश तिवारी प्रधानाचार्य रा०ब०सू०ब०सि०इंटर कालेज कमलापुर, रमेश चंद्र पांडेय पू०प्रधानाचार्य बमहेरा, अवधेश कुमार अवस्थी पू०उपप्रधानाचार्य,चंद्र देव दीक्षित

अधिकारी पुलिस वायरलेस उ०प्र०, गिरीश चंद्र मिश्र क्षेत्रीय संगठन मंत्री ,संस्कार भारती उ०प्र०

प्रमुख थे।कार्यक्रम के संयोजक सुनील त्रिपाठी व आयोजक अनिल त्रिपाठी द्वारा मुख्य अतिथि विशिष्ट अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत ,अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इसके उपरान्त त्रिपाठी बंधुओं द्वारा अपने पितामह की स्मृति में घोषित स्व०पं०मथुरा दत्त त्रिपाठी 'शास्त्री' स्मृति काव्य -कौस्तुभ 2018 सारस्वत सम्मान से वरेण्य कवि केदारनाथ शुक्ल को उनके खण्ड काव्य 'प्रताप' के लोकार्पण के अवसर पर सम्मानित किया गया। विशिष्ट अतिथि सुरेश तिवारी ने खण्ड काव्य 'प्रताप' पर बोलते हुए कहा कि यह खण्ड काव्य खण्ड काव्य हल्दीघाटी की याद दिलाता है ।विधायक महेंद्र यादव ने कहा कि हम सभी ने अपने बचपन में महाराणा प्रताप की शौर्य गाथाएं पढ़ी थी। आज की पीढ़ी को ऐसी पुस्तकें निश्चित तौर पर त्याग और बलिदान का संदेश देगीं कवि सम्मेलन में देश की विभिन्न हिस्सों से पधारे दो दर्जन कवियों को पं०चन्द्र दत्त त्रिपाठी स्मृति काव्य-भारती 2018 सारस्वत सम्मान व अंगवस्त्रम से मुख्य अतिथि विधायक महेंद्र प्रताप सिंह यादव व कवितालोक के संरक्षक आचार्य ओम नीरव ने सम्मानित किया ।अंत में श्री शतचण्डी सेवा समिति द्वारा समारोह के अध्यक्ष ओम नीरव ,व संयोजक सुनील त्रिपाठी को सम्मानित किया गया सम्मान समारोह का संचालन कवि उमाकान्त पांडे ने किया।समारोह के द्वितीय सत्र में सभी कवियों ने देश के जाने माने आशु कवि कमलेश मौर्य मृदु के संचालन में देर रात 3 बजे तक काव्य पाठ किया। कवि सम्मेलन का प्रारंभ कवयित्री सोनी मिश्रा की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ।


गीतिकाकार मनोज मानव बिजनौर ने किसानों को शंकर की तरह लोक कल्याणकारी कहा तो ग्रामीण श्रोता भाव विभोर हो गए ,

जगत भलाई की खातिर जो, करते हैं विषपान सदा,

इस धरती पर कृषक रूप में , मैंने शंकर देखे हैं।


ग़ज़लकार डॉ॰ शोभा दीक्षित 'भावना'लखनऊ ने भी अपनी ग़ज़लों से खूब वआआह वाही लूटी

,

संयोजक सुनील त्रिपाठी ने अपने काव्यपाठ में बताया कि कविता किन परिस्थितियों में जन्म लेती,

उमढ़ता जब हृदय में ज्वार, कविता जन्म लेती है।

बढ़े जब जुल्म अत्याचार, कविता जन्म लेती है।

कराकर बन्द घाटी में, किसी बुरहान की बरसी,

मनाएं देश के गद्दार, कविता जन्म लेती है।

ग़ज़लकार शायर मंजुल मिश्र मंज़र लखनऊ ने जब अपना कलाम कुछ यूँ पढ़ा तो श्रोता वाह वाह कर उठे,

ज़माने भर के ग़म काफ़ूर हो जाते हैं इक पल में,

लपककर गोद में बेटी को जैसे ही उठाता हूँ।

संजीव मिश्र पीलीभीत को भी अपने इस गीत पर भरपूर वाहवाही मिली, 

"पूरा प्रेम किया मैंने फिर,

क्यों पूरा अधिकार नहीं।

हे मोहन फिर से मुझको,

राधा बनना स्वीकार नहीं।।"

गीतकार धीरज श्रीवास्तव मनकापुर गोण्डा

के गीत,

बीत गया है एक महीना लिया न उसने हाल

बैठ रमलिया मार रही है झल्लर को मिसकाल

पर गांव के लोगों ने भरपूर स्नेह लुटाया

कवयित्री सोनी मिश्रा हरदोई ने नारियों की बात कुछ इस तरह उठायी,

घर घर में नारी सीता है नारी ही भगवद गीता है 

पर कहने वाले क्या जाने नारी पर क्या - क्या बीता है 

रवीन्द्र पांडेय निर्झर प्रतापगढ़ ने अपनी इन पंक्तियों माँ के पाँवों को जन्नत की संज्ञा दी

जानता हूँ कि जन्नत मिलेगी वहीं,

पाँव माँ के दबाता हूँ मैं आज भी।


डॉ शरमेश शर्मा बाराबंकी ने यह पढ़कर खूब तालियां बटोरीं

जमाना लाख दुश्मन हो हमारा कुछ न बिगड़ेगा।

हम अपने बाप मां गुरू की दुवाएँ लेके चलते हैं।


ओज कवि अशोक अग्निपथी काकोरी, का ओजपूर्ण काव्य पाठ जबरदस्त रहा

गीतकार संजय सांवरा बाराबंकी के इस मुक्तक को खूब सराहा गया।

अधरों से कोई जाम पिलाये तो क्या करें।

पानी ही स्वयं आग लगाये तो क्या करें।

नैनों के द्वार खोल कोई मन के नगर में,

आ जाये, फिर न लौट के जाये तो क्या करें।


हास्य कवि चेतराम अग्यानी की ये लाइनों ने लोगों को खूब हंसाया

बी - बी गर मीठी हवै , भौजी है नमकीन ।

सालिसि ज्यादा होति है , सरहज मा पोटीन ।।


राहुल द्विवेदी स्मित ने अपनी कलम की ताकत कुछ ऐसे बयान की।

एक कलम के बूते पर मैं, दुनिया रोज बदलता हूँ ।

ये मत सोचो कवि हूँ मैं तो बस कविता कर सकता हूँ ।।

ओज कवि उमाकान्त पांडेय,के ओजस्वी काव्यपाठ पर जनता ने खूब तालियां ठोंकी

गोप कुमार मिश्र जयपुर भी ये पंक्तियां 

बहुत सराही गयी

कृष्ण की बाँसुरी तो बजी रात दिन 

श्वाँस कब कर सकी ,प्रेम का अनुसरण।

अनिल बाँके ठहाका श्री ,हास्य कवि संदीप अनुरागी ,व्यंग्यकार अरुणेश मिश्र सीतापुर के हास्य और व्यंग्य बाणों से श्रोता घायल हुए बिना न रह सके , लोकगीतकार चंद्रगत कुमार भारती फैजाबाद ने अपने सुरीले कंठ का जादू ग्रामीण वातावरण में जमकर बिखेरा । अंत में अध्यक्ष ओम नीरव की इन पंक्तियों पर श्रोताओं जमकर तालियां बजायीं।

अग्रज संग सुनील ने ज्ञान की ज्योति प्रचंड अखंड जलाई।

नीरव ज्योति जलाई जो आज सदा जलती रहे साठिका माई।

कमलेश मौर्य 'मृदु' के जादुई संचालन ने श्रोताओं

आधी रात तक अपने स्थान से हिलने नहीं दिया।

अंत में संयोजक सुनील त्रिपाठी ने सभी का आभार प्रकट कर इस समारोह को विराम दिया। 

प्रस्तुति : सुनील त्रिपाठी

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018

डॉ0 अशोक पाण्डेय का एकल काव्यपाठ एवं सम्मान-कवितालोक

        ज्योति-पर्व के उपलक्ष्य में कवितालोक की अड़तीसवीं काव्यशाला का आयोजन मुख्य अतिथि प्रख्यात छंदकार अशोक कुमार पाण्डेय 'अशोक' जी के एकल काव्य-पाठ के रूप में डॉ अजय प्रसून जी की अध्यक्षता में किया गया । विशिष्ट अतिथि के रूप में शिव नाथ सिंह जी उपस्थित रहे। काव्यशाला का संयोजन एवं संचालन संस्थाध्यक्ष ओम नीरव ने किया। इस अवसर पर अशोक कुमार पाण्डेय 'अशोक' जी को उत्तरीय और सम्मान पत्र अर्पित कर 'कवितालोक भारती' सम्मान से विभूषित किया गया। इस एकल काव्य पाठ की विशेषता यह थी कि एकल कवि अशोक जी को कई चरणों में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया गया और प्रत्येक बार उनके काव्यपाठ के सम्मान में एक कवि ने अपना काव्यपाठ प्रस्तुत किया। प्रारम्भ शिव नाथ सिंह जी कि वाणी वंदना से हुआ। काव्यशाला के मुख्य अतिथि एवं एकल कवि अशोक कुमार पाण्डेय 'अशोक' के काव्यपाठ के अंतर्गत उन्होंने भिन्न विषयों, रसों और संदर्भों से अपनी काव्य साधना के विविध आयाम प्रस्तुत किये जिसके काव्य सौन्दर्य पर विस्तार से चर्चा हुई। दीपमालिका के अनेक मनमोहक बिम्ब अपने प्रवहमान मनहर घनाक्षरी छंदों में प्रस्तुत करते हुए उन्होंने एक बिम्ब कुछ इसप्रकार उकेरा-
दुख कर्ष दिया सुख मानस को शुचि सत्या की हर्ष की पालिका को,
हर गेह के कंठ में डाल दी दीपक-मालिका दीपक मालिका ने।
विरोधाभास अलंकार की योजना से श्रोताओं को चमत्कृत करते हुए अशोक जी ने सुनाया-
रात कर देते अन्य कामिनी के केश किन्तु,
तेरे कल कुंतल प्रभात कर देते हैं।
अपह्नुति अलंकार का उदाहरण उनके उषा पर रचित छंदों में विपुलता से देखने को मिला। एक झलक-
बालारुण शोभित नहीं है भाल चन्दन है,
प्रात में उषा नहीं तपस्विनी खड़ी हुई।
श्रोताओं की जिज्ञासा पर अशोक जी ने बताया कि जब उपमेय को नकारते हुए उसके स्थान पर उपमान को स्वीकारा जाता है तो अपह्नुति अलंकार होता है जैसे यहाँ पर उपमेय बालारुण और उषा को नकारते हुए उनके स्थान पर उपमान क्रमशः चन्दन और उषा को स्वीकारा गया है।
इसीप्रकार व्याख्या के साथ प्रतीप अलंकार का उदाहरण अशोक जी ने प्रस्तुत किया-
कौन दिगरानी निज मंदिर के द्वार खड़ी,
आनन मयंक निशा सुंदरी का फीका है।
अलंकार चर्चा में भ्रांतिमान अलंकार का परिचय देते हुए अशोक जी ने बताया कि जब उपमेय में उपमान की भ्रांति हो जाती है तो यह अलंकार होता है और समर्थन में यह उदाहरण प्रस्तुत किया-
अरुण अनूप जग विदित पदों को जान,
चंचरीक पंक्ति पंकाजों से बिंध जाती है।
इसीप्रकार अशोक जी के क्रमिक एकल काव्य पाठ में उनके द्वारा प्रस्तुत छंदों के काव्य सौन्दर्य की सराहना करते हुए मानवीकरण, प्रतीक विधान, बिम्ब योजना आदि काव्य तत्वों में रोचक चर्चा होती रही।
समानान्तर काव्यपाठ के अंतर्गत युवा कवि कृष्ण कुमार मिश्र 'अशांत' जी ने दीपावली की सार्थकता पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए कहा-
दीवाली के दीपों से हैं रोशन हर कोना-कोना,
दिल को जलाकर भी हम रोशन कर न सके मन का कोना।
राहुल द्विवेदी स्मित जी की रचना ने श्रोताओं को भाव-विह्वल कर दिया-
सिसकियों से भारी हैं कई वादियाँ, फूल कलियों से आगे खिले ही नहीं,
साथ आप उन्हें है जरूरत बहुत, जो उजालों से अबतक मिले ही नहीं।
माधवी मिश्रा जी ने ज्योतिपर्व पर शक्ति का आह्वान किया-
ज्योति पुंज को इतना ढालो,
सारा जग रोशन कर डालो,
तुम ही हो विस्तार गगन के,
उठो और भुजदंड सँभालो।
गौरीशंकर वैश्य विनम्र जी ने दीप पर्व का संदेश कुछ इसप्रकार दिया-
ज्योतिपर्व की सीख है, चलो प्रकृति के साथ,
स्वच्छ स्वस्थ वातावरण, रखना अपने हाथ।
उमाकान्त पाण्डेय जी ने देश का ध्यान सीमा पर डेट जवानों कि ओर आकृष्ट किया-
उनके खातिर दीप जलाना,
खड़े हुए हैं जो सीमा पर, दीवाली में घर ना आए।
जिनके पौरुष से सीमा पर दुश्मन प्रतिदिन मुंह की खाये,
मातृभूमि की सेवा में जो रात-रात भर सो ना पाये।
भारती पायल जी ने स्नेह का दीपक जलाने की बात कुछ इसप्रकार रखी-
दीप माती का जलायें तेल कितना भी भरें,
वह बुझेगा ही कभी हम यत्न चाहे जो करें,
इसलिए आओ जलायें नेह का उर में दिया,
ज्योति से उसकी हृदय के बीच फैला तं हरें।
ओम नीरव ने सुनाया-
रोशनी में जिसे ढूँढता उम्र भर मैं भटकता रहा,
मेरे उसके मिलन में मगर बस उजाला अटकता रहा,
तम में प्रियतम हुआ वह मुखर,
मन मेरे तू न जाना उधर, रोशनी की किरण हो जिधर।
अध्यक्षीय काव्य पाठ में डॉ अजय प्रसून जी ने दीप पर्व पर शुभ संदेश देते हुए कहा-
धरती पर जलते रहें, मानवता के दीप,
आ जाएँगे और हम पावन प्रीति समीप।
संचालक ओम नीरव ने उनकी काव्य साधना का अभिनंदन करते हुए कहा कि अशोक जी के छंदों से काव्य साधकों को बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।

सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

युवा छन्दकार मुकेश मिश्र 'कवितालोक रत्न' से हुए सम्मानित

     कवितालोक सृजन संस्थान के तत्वावधान में  १० फरवरी २०१८ को एक काव्यशाला का आयोजन चन्द्र वाटिका शिक्षा निकेतन, महोना, इटौंजा, लखनऊ में व्यवस्थापक डॉ. चन्द्र कुमार मिश्र के सौजन्य से कवितालोक अध्यक्ष ओम नीरव के संरक्षण में किया गया। आयोजन की अध्यक्षता श्री सिद्धेश्वर शुक्ल 'क्रांति' जी ने की तथा संयोजन और संचालन युवा कवि राहुल द्विवेदी स्मित ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में श्री अनागत काव्य संस्थान के संरक्षक, प्रसिद्ध गीतकार डॉ० अजय प्रसून तथा विशिष्ठ अतिथि के रूप में श्री कुँवर कुसुमेश व डॉ० अशोक शर्मा जी उपस्थित रहे।
      काव्यशाला का प्रारम्भ विद्यालय की कक्षा ९ की छात्रा उन्नति मिश्रा व रिया मिश्रा की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ। इस अवसर पर अनेक कवियों ने छंद, मुक्तक, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, व्यंग्य आदि के द्वारा श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। साथ ही विद्यालय के बच्चों ने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के आधार पर मंचासीन अतिथि व विशेषज्ञों से साहित्य व कविता के सन्दर्भ में अपने प्रश्न पूछे और उनका संतुष्टि पूर्ण उत्तर प्राप्त किया । प्रश्न पूछने वाले बच्चों में जहाँ एक ओर कक्षा ९ के छात्र गुफरान ने प्रश्न किया "साहित्य क्या है ?", तो वहीं दूसरी ओर कक्षा ९ के ही छात्र गौरव चौरसिया ने "कविता लिखते समय मात्राओं की गणना क्यों कि जाती है?" पूछा; साथ ही कक्षा-८ की छात्रा शदब कुरैसी ने कविता लोक सृजन संस्थान के संरक्षक ओम नीरव से उनके द्वारा रचित कोई भी वर्णिक छंद सुनने की इच्छा प्रकट की, जिसको सहर्ष स्वीकारते हुए ओम नीरव ने स्वरचित वर्णिक छंदों को उनके शिल्प विधान सहित प्रस्तुत किया ।
कार्यक्रम के एक अन्य चरण में कविता लोक सृजन संस्थान के संरक्षक श्री ओम नीरव जी ने लखनऊ के युवा छंदकार मुकेश मिश्र को 'कवितालोक रत्न' सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया ।
काव्यपाठ करने वाले कवियों में कविता लोक सृजन संस्थान के संरक्षक ओम नीरव ने 'गुदगुदाए पवन फागुनी धूप में, खिलखिलाये बदन फागुनी धूप में । बाल-कोपल लिए गोद में डालियाँ, दादियों सी मगन फागुनी धूप में ।।' सुनाकर फाल्गुन के महीने का बहुत ही मर्मस्पर्शी विम्ब प्रस्तुत किया। अपने अध्यक्षीय काव्यपाठ में सिद्धेश्वर शुक्ल 'क्रांति' ने इन पंक्तियों में वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को दर्पण दिखाने का प्रयास किया- 'आज शिष्टाचार-भ्रष्टाचार का है अर्दली, अब मनुजता ही दनुज के हाथ से जाती छली ।' लखनऊ से पधारे व कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ० अजय प्रसून ने - 'वक़्त की अपनी मुँह जबानी है, ये ग़ज़ल आज की कहानी है । ये ग़ज़ल यूँ ही कह नहीं दी है, बस्ती-बस्ती की खाक छानी है ।।' पढ़कर अपने जीवन सफर के अनुभवों को कविता के बाने में सबके सामने रखा । इसी क्रम में लखनऊ से पधारे जाने माने शायर कुँवर कुसुमेश ने "मुहब्बत से बुलाया जा रहा है, हमें फिर आजमाया जा रहा है ।" जैसे खूबसूरत व गहरे शेर पढ़कर सभी की जोरदार तालियाँ बटोरीं । प्रसिद्ध लेखक व कवि डॉ० अशोक शर्मा ने 'रास्ते भी आप भी हम भी वहीं हैं, सब वहीं केवल समय बदला हुआ है ।' जैसी पंक्तियाँ पढ़कर सभी को आत्मचिंतन पर विवश कर दिया । वरिष्ठ कवि सम्पत्ति कुमार मिश्र 'भ्रमर बैसवारी' ने अपनी छाँदिक प्रस्तुति में सभी को आनन्दित कर दिया- 'गेट झकझोर दीन, कह बरजोर दीन, छाड़िहौं न राह तोरी, सच कहौं बावरी ।' उभरते हुए शायर सचिन मेहरोत्रा ने 'खूब सुनते हैं कम ही कहते हैं, दर्द इस दिल का गम ही कहते हैं ।' जैसे गहरे शेर व ग़ज़लें पढ़कर सभी को वाह-वाह करने पर मजबूर कर दिया । इसी क्रम में युवा शायर गौरव पाण्डे ने  'सभी के दिल मे ये मासूम ख्वाहिस पहली रहती है, जियूँ ये जिंदगी ताउम्र माँ का लाडला होकर ।' जैसे शेर पढ़कर जिंदगी के कई विषयों को शायरी में अपने ही अंदाज में सबके सामने खोल कर रख दिया । युवा छंदकार मुकेश मिश्र ने जब इन पंक्तियों में एक कडुई सच्चाई को सबने सामने पेश किया तो सदन में मौजूद सभी लोग गहन चिंतन में डूबते दिखे - 'उन्नति हमारे देश की है प्रेम के विस्तार में, तेजाब के तालाब में पंकज नहीं खिलते कभी ।'
हास्य कवि चेतराम अज्ञानी ने फागुन को अपने ही अंदाज में कुछ यों प्रस्तुत किया- 'गर्दा भरी बयार यू फागुन का असर है, मनमा उठै खुमार यू फागुन का असर है ।' इसी क्रम में उभरते हुए हास्य कवि विपिन मलीहाबादी इन पंक्तियों के माध्यम से सभी कवि पतियों को खुशहाल जीवन के कुछ टिप्स देते नजर आए- 'पत्नी पर कविता लिखो, होगी पूरी आस । वरना कोई और लिख, हो जाएगा खास ।।'  उभरते हुए गीतिकाकार मंजुल मंजर लखनवी ने 'आप शतरंज के कितने भी बिछा लो मोहरे, सारी बाजी को किसी वक़्त पलट सकता हूँ ।' पढ़कर खूब तालियाँ बटोरीं ।  इसी क्रम में युवा कवि नीरव द्विवेदी ने इन पंक्तियों में वर्तमान राजनैतिक परिवेश पर व्यंग कसा- 'घात लगाता ऊँट है, हाथी घोड़े चाल । राजनीति के खेल में, प्यादा है बेहाल ।।'
कार्यक्रम के संयोजक व संचालक राहुल द्विवेदी 'स्मित' ने टूटती सामाजिक व्यवस्था व बिखरते हुए रिश्तों पर चिंता जताते हुए जब ये पंक्तियाँ पढ़ीं तो वहाँ उपस्थित सभी की आँखें नम हो उठीं- 'अम्मा-बाबू जी के सपने अब ठोकर खाते हैं, चार कदम चलते ही बच्चे दूर चले जाते हैं । भूल चुके हैं बच्चे अम्मा-बापू के उपकार, जाने किसने बना दिया है रिश्तो को ब्यापार ।'