ओम नीरव

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018

डॉ0 अशोक पाण्डेय का एकल काव्यपाठ एवं सम्मान-कवितालोक

        ज्योति-पर्व के उपलक्ष्य में कवितालोक की अड़तीसवीं काव्यशाला का आयोजन मुख्य अतिथि प्रख्यात छंदकार अशोक कुमार पाण्डेय 'अशोक' जी के एकल काव्य-पाठ के रूप में डॉ अजय प्रसून जी की अध्यक्षता में किया गया । विशिष्ट अतिथि के रूप में शिव नाथ सिंह जी उपस्थित रहे। काव्यशाला का संयोजन एवं संचालन संस्थाध्यक्ष ओम नीरव ने किया। इस अवसर पर अशोक कुमार पाण्डेय 'अशोक' जी को उत्तरीय और सम्मान पत्र अर्पित कर 'कवितालोक भारती' सम्मान से विभूषित किया गया। इस एकल काव्य पाठ की विशेषता यह थी कि एकल कवि अशोक जी को कई चरणों में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया गया और प्रत्येक बार उनके काव्यपाठ के सम्मान में एक कवि ने अपना काव्यपाठ प्रस्तुत किया। प्रारम्भ शिव नाथ सिंह जी कि वाणी वंदना से हुआ। काव्यशाला के मुख्य अतिथि एवं एकल कवि अशोक कुमार पाण्डेय 'अशोक' के काव्यपाठ के अंतर्गत उन्होंने भिन्न विषयों, रसों और संदर्भों से अपनी काव्य साधना के विविध आयाम प्रस्तुत किये जिसके काव्य सौन्दर्य पर विस्तार से चर्चा हुई। दीपमालिका के अनेक मनमोहक बिम्ब अपने प्रवहमान मनहर घनाक्षरी छंदों में प्रस्तुत करते हुए उन्होंने एक बिम्ब कुछ इसप्रकार उकेरा-
दुख कर्ष दिया सुख मानस को शुचि सत्या की हर्ष की पालिका को,
हर गेह के कंठ में डाल दी दीपक-मालिका दीपक मालिका ने।
विरोधाभास अलंकार की योजना से श्रोताओं को चमत्कृत करते हुए अशोक जी ने सुनाया-
रात कर देते अन्य कामिनी के केश किन्तु,
तेरे कल कुंतल प्रभात कर देते हैं।
अपह्नुति अलंकार का उदाहरण उनके उषा पर रचित छंदों में विपुलता से देखने को मिला। एक झलक-
बालारुण शोभित नहीं है भाल चन्दन है,
प्रात में उषा नहीं तपस्विनी खड़ी हुई।
श्रोताओं की जिज्ञासा पर अशोक जी ने बताया कि जब उपमेय को नकारते हुए उसके स्थान पर उपमान को स्वीकारा जाता है तो अपह्नुति अलंकार होता है जैसे यहाँ पर उपमेय बालारुण और उषा को नकारते हुए उनके स्थान पर उपमान क्रमशः चन्दन और उषा को स्वीकारा गया है।
इसीप्रकार व्याख्या के साथ प्रतीप अलंकार का उदाहरण अशोक जी ने प्रस्तुत किया-
कौन दिगरानी निज मंदिर के द्वार खड़ी,
आनन मयंक निशा सुंदरी का फीका है।
अलंकार चर्चा में भ्रांतिमान अलंकार का परिचय देते हुए अशोक जी ने बताया कि जब उपमेय में उपमान की भ्रांति हो जाती है तो यह अलंकार होता है और समर्थन में यह उदाहरण प्रस्तुत किया-
अरुण अनूप जग विदित पदों को जान,
चंचरीक पंक्ति पंकाजों से बिंध जाती है।
इसीप्रकार अशोक जी के क्रमिक एकल काव्य पाठ में उनके द्वारा प्रस्तुत छंदों के काव्य सौन्दर्य की सराहना करते हुए मानवीकरण, प्रतीक विधान, बिम्ब योजना आदि काव्य तत्वों में रोचक चर्चा होती रही।
समानान्तर काव्यपाठ के अंतर्गत युवा कवि कृष्ण कुमार मिश्र 'अशांत' जी ने दीपावली की सार्थकता पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए कहा-
दीवाली के दीपों से हैं रोशन हर कोना-कोना,
दिल को जलाकर भी हम रोशन कर न सके मन का कोना।
राहुल द्विवेदी स्मित जी की रचना ने श्रोताओं को भाव-विह्वल कर दिया-
सिसकियों से भारी हैं कई वादियाँ, फूल कलियों से आगे खिले ही नहीं,
साथ आप उन्हें है जरूरत बहुत, जो उजालों से अबतक मिले ही नहीं।
माधवी मिश्रा जी ने ज्योतिपर्व पर शक्ति का आह्वान किया-
ज्योति पुंज को इतना ढालो,
सारा जग रोशन कर डालो,
तुम ही हो विस्तार गगन के,
उठो और भुजदंड सँभालो।
गौरीशंकर वैश्य विनम्र जी ने दीप पर्व का संदेश कुछ इसप्रकार दिया-
ज्योतिपर्व की सीख है, चलो प्रकृति के साथ,
स्वच्छ स्वस्थ वातावरण, रखना अपने हाथ।
उमाकान्त पाण्डेय जी ने देश का ध्यान सीमा पर डेट जवानों कि ओर आकृष्ट किया-
उनके खातिर दीप जलाना,
खड़े हुए हैं जो सीमा पर, दीवाली में घर ना आए।
जिनके पौरुष से सीमा पर दुश्मन प्रतिदिन मुंह की खाये,
मातृभूमि की सेवा में जो रात-रात भर सो ना पाये।
भारती पायल जी ने स्नेह का दीपक जलाने की बात कुछ इसप्रकार रखी-
दीप माती का जलायें तेल कितना भी भरें,
वह बुझेगा ही कभी हम यत्न चाहे जो करें,
इसलिए आओ जलायें नेह का उर में दिया,
ज्योति से उसकी हृदय के बीच फैला तं हरें।
ओम नीरव ने सुनाया-
रोशनी में जिसे ढूँढता उम्र भर मैं भटकता रहा,
मेरे उसके मिलन में मगर बस उजाला अटकता रहा,
तम में प्रियतम हुआ वह मुखर,
मन मेरे तू न जाना उधर, रोशनी की किरण हो जिधर।
अध्यक्षीय काव्य पाठ में डॉ अजय प्रसून जी ने दीप पर्व पर शुभ संदेश देते हुए कहा-
धरती पर जलते रहें, मानवता के दीप,
आ जाएँगे और हम पावन प्रीति समीप।
संचालक ओम नीरव ने उनकी काव्य साधना का अभिनंदन करते हुए कहा कि अशोक जी के छंदों से काव्य साधकों को बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।

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