ओम नीरव

सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

युवा छन्दकार मुकेश मिश्र 'कवितालोक रत्न' से हुए सम्मानित

     कवितालोक सृजन संस्थान के तत्वावधान में  १० फरवरी २०१८ को एक काव्यशाला का आयोजन चन्द्र वाटिका शिक्षा निकेतन, महोना, इटौंजा, लखनऊ में व्यवस्थापक डॉ. चन्द्र कुमार मिश्र के सौजन्य से कवितालोक अध्यक्ष ओम नीरव के संरक्षण में किया गया। आयोजन की अध्यक्षता श्री सिद्धेश्वर शुक्ल 'क्रांति' जी ने की तथा संयोजन और संचालन युवा कवि राहुल द्विवेदी स्मित ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में श्री अनागत काव्य संस्थान के संरक्षक, प्रसिद्ध गीतकार डॉ० अजय प्रसून तथा विशिष्ठ अतिथि के रूप में श्री कुँवर कुसुमेश व डॉ० अशोक शर्मा जी उपस्थित रहे।
      काव्यशाला का प्रारम्भ विद्यालय की कक्षा ९ की छात्रा उन्नति मिश्रा व रिया मिश्रा की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ। इस अवसर पर अनेक कवियों ने छंद, मुक्तक, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, व्यंग्य आदि के द्वारा श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। साथ ही विद्यालय के बच्चों ने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के आधार पर मंचासीन अतिथि व विशेषज्ञों से साहित्य व कविता के सन्दर्भ में अपने प्रश्न पूछे और उनका संतुष्टि पूर्ण उत्तर प्राप्त किया । प्रश्न पूछने वाले बच्चों में जहाँ एक ओर कक्षा ९ के छात्र गुफरान ने प्रश्न किया "साहित्य क्या है ?", तो वहीं दूसरी ओर कक्षा ९ के ही छात्र गौरव चौरसिया ने "कविता लिखते समय मात्राओं की गणना क्यों कि जाती है?" पूछा; साथ ही कक्षा-८ की छात्रा शदब कुरैसी ने कविता लोक सृजन संस्थान के संरक्षक ओम नीरव से उनके द्वारा रचित कोई भी वर्णिक छंद सुनने की इच्छा प्रकट की, जिसको सहर्ष स्वीकारते हुए ओम नीरव ने स्वरचित वर्णिक छंदों को उनके शिल्प विधान सहित प्रस्तुत किया ।
कार्यक्रम के एक अन्य चरण में कविता लोक सृजन संस्थान के संरक्षक श्री ओम नीरव जी ने लखनऊ के युवा छंदकार मुकेश मिश्र को 'कवितालोक रत्न' सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया ।
काव्यपाठ करने वाले कवियों में कविता लोक सृजन संस्थान के संरक्षक ओम नीरव ने 'गुदगुदाए पवन फागुनी धूप में, खिलखिलाये बदन फागुनी धूप में । बाल-कोपल लिए गोद में डालियाँ, दादियों सी मगन फागुनी धूप में ।।' सुनाकर फाल्गुन के महीने का बहुत ही मर्मस्पर्शी विम्ब प्रस्तुत किया। अपने अध्यक्षीय काव्यपाठ में सिद्धेश्वर शुक्ल 'क्रांति' ने इन पंक्तियों में वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को दर्पण दिखाने का प्रयास किया- 'आज शिष्टाचार-भ्रष्टाचार का है अर्दली, अब मनुजता ही दनुज के हाथ से जाती छली ।' लखनऊ से पधारे व कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ० अजय प्रसून ने - 'वक़्त की अपनी मुँह जबानी है, ये ग़ज़ल आज की कहानी है । ये ग़ज़ल यूँ ही कह नहीं दी है, बस्ती-बस्ती की खाक छानी है ।।' पढ़कर अपने जीवन सफर के अनुभवों को कविता के बाने में सबके सामने रखा । इसी क्रम में लखनऊ से पधारे जाने माने शायर कुँवर कुसुमेश ने "मुहब्बत से बुलाया जा रहा है, हमें फिर आजमाया जा रहा है ।" जैसे खूबसूरत व गहरे शेर पढ़कर सभी की जोरदार तालियाँ बटोरीं । प्रसिद्ध लेखक व कवि डॉ० अशोक शर्मा ने 'रास्ते भी आप भी हम भी वहीं हैं, सब वहीं केवल समय बदला हुआ है ।' जैसी पंक्तियाँ पढ़कर सभी को आत्मचिंतन पर विवश कर दिया । वरिष्ठ कवि सम्पत्ति कुमार मिश्र 'भ्रमर बैसवारी' ने अपनी छाँदिक प्रस्तुति में सभी को आनन्दित कर दिया- 'गेट झकझोर दीन, कह बरजोर दीन, छाड़िहौं न राह तोरी, सच कहौं बावरी ।' उभरते हुए शायर सचिन मेहरोत्रा ने 'खूब सुनते हैं कम ही कहते हैं, दर्द इस दिल का गम ही कहते हैं ।' जैसे गहरे शेर व ग़ज़लें पढ़कर सभी को वाह-वाह करने पर मजबूर कर दिया । इसी क्रम में युवा शायर गौरव पाण्डे ने  'सभी के दिल मे ये मासूम ख्वाहिस पहली रहती है, जियूँ ये जिंदगी ताउम्र माँ का लाडला होकर ।' जैसे शेर पढ़कर जिंदगी के कई विषयों को शायरी में अपने ही अंदाज में सबके सामने खोल कर रख दिया । युवा छंदकार मुकेश मिश्र ने जब इन पंक्तियों में एक कडुई सच्चाई को सबने सामने पेश किया तो सदन में मौजूद सभी लोग गहन चिंतन में डूबते दिखे - 'उन्नति हमारे देश की है प्रेम के विस्तार में, तेजाब के तालाब में पंकज नहीं खिलते कभी ।'
हास्य कवि चेतराम अज्ञानी ने फागुन को अपने ही अंदाज में कुछ यों प्रस्तुत किया- 'गर्दा भरी बयार यू फागुन का असर है, मनमा उठै खुमार यू फागुन का असर है ।' इसी क्रम में उभरते हुए हास्य कवि विपिन मलीहाबादी इन पंक्तियों के माध्यम से सभी कवि पतियों को खुशहाल जीवन के कुछ टिप्स देते नजर आए- 'पत्नी पर कविता लिखो, होगी पूरी आस । वरना कोई और लिख, हो जाएगा खास ।।'  उभरते हुए गीतिकाकार मंजुल मंजर लखनवी ने 'आप शतरंज के कितने भी बिछा लो मोहरे, सारी बाजी को किसी वक़्त पलट सकता हूँ ।' पढ़कर खूब तालियाँ बटोरीं ।  इसी क्रम में युवा कवि नीरव द्विवेदी ने इन पंक्तियों में वर्तमान राजनैतिक परिवेश पर व्यंग कसा- 'घात लगाता ऊँट है, हाथी घोड़े चाल । राजनीति के खेल में, प्यादा है बेहाल ।।'
कार्यक्रम के संयोजक व संचालक राहुल द्विवेदी 'स्मित' ने टूटती सामाजिक व्यवस्था व बिखरते हुए रिश्तों पर चिंता जताते हुए जब ये पंक्तियाँ पढ़ीं तो वहाँ उपस्थित सभी की आँखें नम हो उठीं- 'अम्मा-बाबू जी के सपने अब ठोकर खाते हैं, चार कदम चलते ही बच्चे दूर चले जाते हैं । भूल चुके हैं बच्चे अम्मा-बापू के उपकार, जाने किसने बना दिया है रिश्तो को ब्यापार ।'

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