ओम नीरव

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

नवगीतकार मधुकर अस्थाना को कवितालोक द्वारा 'नवगीत शिरोमणि' सम्मान से किया गया सम्मानित

कवितालोक की 22 वीं काव्यशाला  छन्दाचार्य ओम नीरव जी के निवास पर प्रख्यात गीतकार मधुकर अष्ठाना जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ शिव भजन कमलेश जी और विशिष्ट अतिथि के रूप में कुमार तरल जी और सुनील कुमार वाजपेयी जी उपस्थित रहे। काव्यशाला का संयोजन और संचालन आपके अपने ओम नीरव ने किया। इस अवसर पर उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण से सम्मानित नवगीतकार मधुकर अष्ठाना जी का अभिनंदन किया गया और उन्हें कवितालोक की ओर से उत्तरीय और सम्मान पत्र भेंट कर 'नवगीत शिरोमणि' सम्मान से विभूषित किया गया। काव्यपाठ का प्रारम्भ कुमार तरल जी की वाणी वंदना से हुआ जिसे आगे बढ़ाते हुए बाराबंकी से पधारे सुरभि सौरभ ने इन पंक्तियों पर श्रोताओं की सराहना प्राप्त की- 
उसके लिए मैंने सबसे बैर कर लिया, 
न जाने कैसे उसने मुझे गैर कह दिया। 
लक्ष्मी शुक्ला जी बेरियों के गौरव को इस शब्दों में व्यक्त किया- 
बेटी घर की है खुशी, बेटी घर का मान, 
बेटी ईश्वर का दिया, प्यारा-सा वरदान। 
छंदकार मनोज शुक्ल मनुज जी समाज की विसंगति पर कटाक्ष करते हुए सुनाया तो श्रोता वाह-वाह कर उठे- 
दिखने और होने का अंतर अनुदिन बहुत बड़ा लगता है, 
यह समाज का तानाबाना भीतर बहुत सड़ा लगता है। 
सोनी मिश्रा जी की इन पंक्तियों को सराहा गया- 
नहीं दीवार वो रह जाती है मजबूत वहाँ, 
जहां दीवार का आधार बदल जाता है। 
गोबर गणेश जी ने अपनी व्यंग्य-प्रधान रचनाओं से श्रीताओं को वाह-वाह करने पर विवश कर दिया- 
बेटियों को संसार में मत आने दीजिए, 
लोग थूकेंगे तो थूकने दीजिए, 
क्योंकि थूकना हमारी संस्कृति है। 
शोभा दीक्षित भावना जी ने अपने मुक्तकों और ग़ज़ल से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। उनकी पंक्तियाँ - 
ग़ज़ल की तर्जुमानी और भी है, 
कहानी में कहानी और भी है। 
प्रख्यात कार्टूनिस्ट और समर्थ कवि हरिमोहन वाजपेयी माधव जी ने छुअन  पर अपनी विशेष रचना सुनाकर श्रोताओं का दिल जीत लिया- 
एक छुअन  हर्षित मन का कोना-कोना कर देती है, 
एक छुअन पारस लोहे का तन सोना कर देती है। 
माधवी मिश्रा जी ने अपना सामाजिक चिंतन कुछ इसप्रकार प्रस्तुत किया- 
बीच राह इतिहास खड़ा, बन गया हाशिया बंजारा, 
जन-जन के रोटी कपड़े पर, समतावाद गया मारा। 
कुमार तरल जी ने अवधि में बारहमासा सुनाकर श्रोताओं को रससिक्त कर दिया- 
जियरा कब से बा पियासा, हमहूँ लिखी बारह मासा, 
प्यारी अवधि हिन्दी भाषा, माँ बनी ई रचना। 
सुनील कुमार वाजपेयी जी के गीत का श्रोताओं ने भरपूर तालियों से स्वागत किया- 
इतना व्यतिक्रम आज अगर है, कैसा होगा कल, 
प्रश्न कई मानस में मेरे, ढूंढ रहा हूँ हल। 
शिवभजन कमलेश जी की समृद्ध लेखनी से प्रसूत गीत सुनकर सभी श्रोता भाव विभोर हो गए-
संघर्षों में प्राण घिरे हैं, मन चिंताओं बीच अकेला, 
ओ जीवन को देने वाले, बचपन को क्यों दूर धकेला। 
अध्यक्षीय उद्बोधन में नवगीत-विधा का परिचय देते हुए ख्यातिलब्ध नवगीतकार मधुकर अष्ठाना जी ने अपने नवगीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया- 
सभ्य हो नग्न वातावरण हो गया, 
नेह सद्भाव का अपहरण हो गया, 
इस तरह की प्रगति है मेरे देश की, 
लड़खड़ाता चरण आचरण हो गया। 
इस अवसर पर कुमार तरल जी ने अपना गीत-संग्रह 'छोड़उ अब नंगा बहुत किह्यो' ओम नीरव को भेंट की।

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