नीरव निकेत पर आयोजित कवितालोक की 21 वीं काव्यशाला में साहित्यिक संस्था प्राची के संस्थापक प्रख्यात कवि डॉ सुरेश प्रकाश शुक्ल और वरिष्ठ गीतकार श्री घनानन्द पाण्डेय 'मेघ' को 'कवितालोक रत्न से सम्मानित किया गया। अपने ढंग के इस अनोखे काव्य समारोह में पढ़ी गयी सभी रचनाओं की छांदस समीक्षा की गयी जिसका उपस्थित सुधिजनों ने भरपूर आनंद लिया। ओम नीरव के संयोजन-संचालन और डॉ सुरेश प्रकाश शुक्ल की अध्यक्षता में सम्पन्न इस काव्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में घनानन्द पाण्डेय जी और विशिष्ट अतिथि के रूप में गौरीशंकर वैश्य विनम्र जी उपस्थित रहे।  प्रवहमान मनहर घनाक्षरी छंदों से वाणी वंदना करने वाले अशोक शुक्ल अनजान ने नेताओं के चुनावी नाटक पर कटाक्ष करते हुए सुनाया- 
वोट माँगने के हेतु नेता जी पधारे जब, 
बोली बोलें ऐसी जैसे मिसरी घुली हुई। 
रेनू द्विवेदी ने सरसी छंद में निबद्ध गीत सुनाकर सबका मन मुग्ध कर लिया - 
जीवन सरिता की धारा है, कब इसमें ठहराव, 
किन शब्दों में ढालूँ मैं अब, अन्तर्मन के भाव। 
संपत्ति कुमार मिश्र भ्रमर बैसवारी जी राष्ट्रीय गौरव के भाव भरे मनहर घनाक्षरी छंद  सुनाते हुए कहा- 
जन्मभूमि भारत है यही है हमारा देश, 
पग-पग चूम रही हिन्दी-हिन्द वाणी है। 
लावणी छंद में निबद्ध मुक्तक सुनाते हुए सौरभ शशि टंडन ने अपनी बिम्ब योजना कुछ इसप्रकार प्रस्तुत की- 
चुप्पी ने दरवाजा खोला सुर ने सांकल खड़काई, 
सावन में आँखों ने देखी आशाओं की परछाई। 
विपिन मलिहाबादी ने अपनी हास्य प्रधान रचनाओं से लोगों को लोटपोट कर दिया। दोहा छंद के माध्यम से वे कहते सुने गए- 
वही बात फिर से हुई साथ हमारे आज, 
बिगड़े सारे बन गए मेरे देखो काज। 
बचपन का सजीव सरस चित्रण करते हुए उमाकांत पाण्डेय ने गागाल गालगाल गालगाल गालगा मापनी पर आधारित गीत सुनाकर खूब तालियाँ बटोरी- 
पलकों मे मैं समेट लूँ वो बीते हुए पल, 
वो ज़िंदगी के पल वो मेरी ज़िंदगी के पल। 
वाचिक अनंगशेखर छंद का सुरुचिपूर्ण प्रयोग करते हुए मंजुल मंज़र लखनवी ने इस पंक्तियों पर श्रोताओं का भरपूर स्नेह प्राप्त किया- 
ये सच है माता पिता गुरू से कभी उऋण हो नहीं सकोगे, 
परंतु इस जन्मभूमि का ऋण चुकाए बिन यों ही मर न जाना। 
राहुल द्विवेदी स्मित के सरसी छंद में निबद्ध गीत में शब्द शिल्प का सौष्ठव देखने को मिला - 
अक्सर मुझको दुलराती है इस बरगद की छाँव, 
सारे जग में सबसे सुंदर एक हमारा गाँव। 
राजा भैया गुप्त राजाभ के भावप्रवण दोहे सराहे गए- 
इतना डूबे अहं में रहा न कल का ध्यान, 
घोटाले हैरान हैं आज मगन ईमान। 
मनहर घनाक्षरी छंदों की छटा बिखेरते हुए दिनेश सोनी की कविकर्म पर सार्थक टिप्पणी सराही गयी - 
कवि ही तो कविता के लिए करो प्राण एक, 
प्राण को जलाओ किन्तु काव्य में उजाला हो। 
रूपमाला और गीतिका छंदों के सम्मिश्रण से सृजित चुटीली रचना प्रस्तुत करते हुए गौरीशंकर वैश्य विनम्र को ध्यान से सुना गया- 
मान है सम्मान है बस एक प्याली चाय, 
सूक्ष्मतम जलपान है बस एक प्याली चाय, 
आ गया घर पर अतिथि तो प्रेम से स्वागत करो, 
शिष्टता का दान है बस एक प्याली चाय। 
घनानन्द पाण्डेय मेघ ने गंगोदक छंद में निबद्ध गीत सुनाकर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया- 
भारती के लिए आरती के लिए, गीत लिखता रहूँ गुनगुनाता रहूँ, 
देशहित लोकहित के लिए जो जिये, बस उन्हीं की कहानी सुनाता रहूँ। 
अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए डॉ सुरेश प्रकाश शुक्ल ने विष्णुपद छंद में निबद्ध अवधी गीत सुनाकार  श्रोताओं को रस-विभोर कर दिया- 
आजु सुखी हौ काल्हि न जानै कइसन दुख आवै, 
माया नागरी जीवन कइहाँ अइसै सरसावै। 
संचालक ओम नीरव ने इस अवसर पर एक नयी विधा अनुगीतिका की घोषणा करते हुए बताया कि यह एक ऐसी धारावाही गीतिका या मुसलसल ग़ज़ल है जिसके युग्म भवाभिव्यक्ति के लिए गीत की भांति मुखड़े या मतले के मुखापेक्षी होते हैं। इस विधा के उदाहरणस्वरूप लावणी छंद में निबद्ध एक अनुगीतिका उनहोंने प्रस्तुत की जिसका मुखड़ा और एक युग्म कुछ इसप्रकार रहा- 
मीरा ने प्याले से पहले कितना गरल पिया होगा, 
तब प्याले ने गरल-सिंधु के आगे नमन किया होगा। 
अंतर से अंबर तक बजते घुंघुरू वाले पाँवों में, 
कितने घाव कर गया परिणय का बौना बिछिया होगा।
बुधवार, 13 दिसंबर 2017
सम्मानित हुए डॉ सुरेश शुक्ल और गीतकार मेघ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
 
 
 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें