ओम नीरव

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

नवगीतकार मधुकर अस्थाना को कवितालोक द्वारा 'नवगीत शिरोमणि' सम्मान से किया गया सम्मानित

कवितालोक की 22 वीं काव्यशाला  छन्दाचार्य ओम नीरव जी के निवास पर प्रख्यात गीतकार मधुकर अष्ठाना जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ शिव भजन कमलेश जी और विशिष्ट अतिथि के रूप में कुमार तरल जी और सुनील कुमार वाजपेयी जी उपस्थित रहे। काव्यशाला का संयोजन और संचालन आपके अपने ओम नीरव ने किया। इस अवसर पर उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण से सम्मानित नवगीतकार मधुकर अष्ठाना जी का अभिनंदन किया गया और उन्हें कवितालोक की ओर से उत्तरीय और सम्मान पत्र भेंट कर 'नवगीत शिरोमणि' सम्मान से विभूषित किया गया। काव्यपाठ का प्रारम्भ कुमार तरल जी की वाणी वंदना से हुआ जिसे आगे बढ़ाते हुए बाराबंकी से पधारे सुरभि सौरभ ने इन पंक्तियों पर श्रोताओं की सराहना प्राप्त की- 
उसके लिए मैंने सबसे बैर कर लिया, 
न जाने कैसे उसने मुझे गैर कह दिया। 
लक्ष्मी शुक्ला जी बेरियों के गौरव को इस शब्दों में व्यक्त किया- 
बेटी घर की है खुशी, बेटी घर का मान, 
बेटी ईश्वर का दिया, प्यारा-सा वरदान। 
छंदकार मनोज शुक्ल मनुज जी समाज की विसंगति पर कटाक्ष करते हुए सुनाया तो श्रोता वाह-वाह कर उठे- 
दिखने और होने का अंतर अनुदिन बहुत बड़ा लगता है, 
यह समाज का तानाबाना भीतर बहुत सड़ा लगता है। 
सोनी मिश्रा जी की इन पंक्तियों को सराहा गया- 
नहीं दीवार वो रह जाती है मजबूत वहाँ, 
जहां दीवार का आधार बदल जाता है। 
गोबर गणेश जी ने अपनी व्यंग्य-प्रधान रचनाओं से श्रीताओं को वाह-वाह करने पर विवश कर दिया- 
बेटियों को संसार में मत आने दीजिए, 
लोग थूकेंगे तो थूकने दीजिए, 
क्योंकि थूकना हमारी संस्कृति है। 
शोभा दीक्षित भावना जी ने अपने मुक्तकों और ग़ज़ल से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। उनकी पंक्तियाँ - 
ग़ज़ल की तर्जुमानी और भी है, 
कहानी में कहानी और भी है। 
प्रख्यात कार्टूनिस्ट और समर्थ कवि हरिमोहन वाजपेयी माधव जी ने छुअन  पर अपनी विशेष रचना सुनाकर श्रोताओं का दिल जीत लिया- 
एक छुअन  हर्षित मन का कोना-कोना कर देती है, 
एक छुअन पारस लोहे का तन सोना कर देती है। 
माधवी मिश्रा जी ने अपना सामाजिक चिंतन कुछ इसप्रकार प्रस्तुत किया- 
बीच राह इतिहास खड़ा, बन गया हाशिया बंजारा, 
जन-जन के रोटी कपड़े पर, समतावाद गया मारा। 
कुमार तरल जी ने अवधि में बारहमासा सुनाकर श्रोताओं को रससिक्त कर दिया- 
जियरा कब से बा पियासा, हमहूँ लिखी बारह मासा, 
प्यारी अवधि हिन्दी भाषा, माँ बनी ई रचना। 
सुनील कुमार वाजपेयी जी के गीत का श्रोताओं ने भरपूर तालियों से स्वागत किया- 
इतना व्यतिक्रम आज अगर है, कैसा होगा कल, 
प्रश्न कई मानस में मेरे, ढूंढ रहा हूँ हल। 
शिवभजन कमलेश जी की समृद्ध लेखनी से प्रसूत गीत सुनकर सभी श्रोता भाव विभोर हो गए-
संघर्षों में प्राण घिरे हैं, मन चिंताओं बीच अकेला, 
ओ जीवन को देने वाले, बचपन को क्यों दूर धकेला। 
अध्यक्षीय उद्बोधन में नवगीत-विधा का परिचय देते हुए ख्यातिलब्ध नवगीतकार मधुकर अष्ठाना जी ने अपने नवगीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया- 
सभ्य हो नग्न वातावरण हो गया, 
नेह सद्भाव का अपहरण हो गया, 
इस तरह की प्रगति है मेरे देश की, 
लड़खड़ाता चरण आचरण हो गया। 
इस अवसर पर कुमार तरल जी ने अपना गीत-संग्रह 'छोड़उ अब नंगा बहुत किह्यो' ओम नीरव को भेंट की।

बुधवार, 13 दिसंबर 2017

कवितालोक की 20 वीं महोना काव्यशाला

       चंद्रवाटिका शिक्षा निकेतन महोना में कवितालोक की 20 वीं काव्यशाला का आयोजन डॉ सी के मिश्र के सौजन्य से राहुल द्विवेदी स्मित के संयोजन और संचालन में सम्पन्न हुआ। काव्यशाला की अध्यक्षता प्रख्यात कवि कुमार तरल जी ने की जभी मुख्य अतिथि के रूप में डॉ अशोक शर्मा और विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ सुभाष चंद्र गुरुदेव उपस्थित रहे। इस अवसर पर कवुतालोक के संरक्षक ओम नीरव ने बाराबंकी से पधारे कविवर राज कुमार सोनी जी को 'कवितालोक रत्न से सम्मानित किया। काव्यशाला नाम को सार्थक करते हुए विद्यालय के छत्रों ने हिन्दी कावता पर अनेक प्रश्न पूछे जिनका सटीक और रोचक उत्तर मंच से दिया गया। प्रश्नकर्ता छात्रों में आयाज़ बेग कक्षा नौ, गुफारान कक्षा नौ और अर्पित मौर्य कक्षा आठ मुख्य थे। काव्यपाठ का प्रारम्भ छात्राओं की वाणी वंदना से हुआ। इसी क्रम में काव्य पाठ करते हुए राजा भैया राजाभ जी ने अपने दोहों से मन मोह लिया-
कहीं अस्मिता प्रश्न है, कहीं तुष्टि का भाव,
यहीं द्वंद्व है दे रहा, राष्ट्रवाद को घाव।
मृगाङ्क श्रीवास्तव -
बापू तुम टेंशन न लेना,
कोई भी पार्टी है चल नहीं सकती तुम्हारे बिना।
सचिन महरोत्रा -
चरागे दिल जलाना चाहिए था,
कि मौसम फिर सुहाना चाहिए।
अनुज पाण्डेय-
सबको हैरत में डाल देती है।
माँ मेरी सब सँभाल लेती है।
गौरव पाण्डेय रुद्र -
मेरी माँ का ये चाँद सा चेहरा
मुश्किलों में भी रास्ता देगा।
राज कुमार सोनी-
जयचंदों का वंश न होता,
मुगलों का फिर अंश न होता,
भारत माता की छती पर,
बाबर जैसा दंश न होता।
मनीष सोनी -
खिलेंगे पुष्प वादी में जो इतना कर सकोगे तुम,
उठाएँ सर सपोले जो उन्हें फौरन कुचल डालो।
केवल प्रसाद सत्यम -
बच्चों की किलकारियाँ, हाव-भाव मुस्कान,
आकर्षित कर विश्व को, दिया प्रेम-विज्ञान।
मन मोहन बाराकोटी तमाचा लखनवी -
किसी की गणेश परिक्रमा कभी न कीजिए,
स्वाभिमान के लिए तज प्राण दीजिए।
संदीप अनुरागी जी -
उस परम शक्ति ने तुमको ताकत दी है,
अपनी मेहनत से माती को सोना करो।
गौरीशंकर वैश्य विनम्र जी-
काव्य के लोक से छंद खोने लगे,
चुट्कुले हंस पड़े गीत रोने लगे।
मुख्य अतिथि डॉ अशोक शर्मा जी -
आजतक बस मैं तुम्हें रखकर किनारे ही जिया हूँ,
किन्तु फिर भी चाहता हूँ हाथ मेरा थाम कर रखो सदा तुम।
अध्यक्ष कुमार तरल-
नमन करते शहीदों को जो पहरेदार सीमा के,
न मंदिर और न मस्जिद बस अमन की बात करते हैं।
काव्य पाठ को शिखर तक पाकुंचाने वाले अन्य कवियों में मुख्य थे -राहुल द्विवेदी स्मित जी, संपत्ति कुमार मिश्र भ्रमर बैसवारी जी, गोबर गणेश जी और डॉ. सुभाष चंद्र गुरुदेव जी और ओम नीरव।
काव्यशाला के समापन पर डॉ सी के मिश्र जी ने छात्रों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में कवितालोक की भूमिका अभिनंदन के योग्य है।

सम्मानित हुए डॉ सुरेश शुक्ल और गीतकार मेघ

        नीरव निकेत पर आयोजित कवितालोक की 21 वीं काव्यशाला में साहित्यिक संस्था प्राची के संस्थापक प्रख्यात कवि डॉ सुरेश प्रकाश शुक्ल और वरिष्ठ गीतकार श्री घनानन्द पाण्डेय 'मेघ' को 'कवितालोक रत्न से सम्मानित किया गया। अपने ढंग के इस अनोखे काव्य समारोह में पढ़ी गयी सभी रचनाओं की छांदस समीक्षा की गयी जिसका उपस्थित सुधिजनों ने भरपूर आनंद लिया। ओम नीरव के संयोजन-संचालन और डॉ सुरेश प्रकाश शुक्ल की अध्यक्षता में सम्पन्न इस काव्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में घनानन्द पाण्डेय जी और विशिष्ट अतिथि के रूप में गौरीशंकर वैश्य विनम्र जी उपस्थित रहे।  प्रवहमान मनहर घनाक्षरी छंदों से वाणी वंदना करने वाले अशोक शुक्ल अनजान ने नेताओं के चुनावी नाटक पर कटाक्ष करते हुए सुनाया-
वोट माँगने के हेतु नेता जी पधारे जब,
बोली बोलें ऐसी जैसे मिसरी घुली हुई।
रेनू द्विवेदी ने सरसी छंद में निबद्ध गीत सुनाकर सबका मन मुग्ध कर लिया -
जीवन सरिता की धारा है, कब इसमें ठहराव,
किन शब्दों में ढालूँ मैं अब, अन्तर्मन के भाव।
संपत्ति कुमार मिश्र भ्रमर बैसवारी जी राष्ट्रीय गौरव के भाव भरे मनहर घनाक्षरी छंद  सुनाते हुए कहा-
जन्मभूमि भारत है यही है हमारा देश,
पग-पग चूम रही हिन्दी-हिन्द वाणी है।
लावणी छंद में निबद्ध मुक्तक सुनाते हुए सौरभ शशि टंडन ने अपनी बिम्ब योजना कुछ इसप्रकार प्रस्तुत की-
चुप्पी ने दरवाजा खोला सुर ने सांकल खड़काई,
सावन में आँखों ने देखी आशाओं की परछाई।
विपिन मलिहाबादी ने अपनी हास्य प्रधान रचनाओं से लोगों को लोटपोट कर दिया। दोहा छंद के माध्यम से वे कहते सुने गए-
वही बात फिर से हुई साथ हमारे आज,
बिगड़े सारे बन गए मेरे देखो काज।
बचपन का सजीव सरस चित्रण करते हुए उमाकांत पाण्डेय ने गागाल गालगाल गालगाल गालगा मापनी पर आधारित गीत सुनाकर खूब तालियाँ बटोरी-
पलकों मे मैं समेट लूँ वो बीते हुए पल,
वो ज़िंदगी के पल वो मेरी ज़िंदगी के पल।
वाचिक अनंगशेखर छंद का सुरुचिपूर्ण प्रयोग करते हुए मंजुल मंज़र लखनवी ने इस पंक्तियों पर श्रोताओं का भरपूर स्नेह प्राप्त किया-
ये सच है माता पिता गुरू से कभी उऋण हो नहीं सकोगे,
परंतु इस जन्मभूमि का ऋण चुकाए बिन यों ही मर न जाना।
राहुल द्विवेदी स्मित के सरसी छंद में निबद्ध गीत में शब्द शिल्प का सौष्ठव देखने को मिला -
अक्सर मुझको दुलराती है इस बरगद की छाँव,
सारे जग में सबसे सुंदर एक हमारा गाँव।
राजा भैया गुप्त राजाभ के भावप्रवण दोहे सराहे गए-
इतना डूबे अहं में रहा न कल का ध्यान,
घोटाले हैरान हैं आज मगन ईमान।
मनहर घनाक्षरी छंदों की छटा बिखेरते हुए दिनेश सोनी की कविकर्म पर सार्थक टिप्पणी सराही गयी -
कवि ही तो कविता के लिए करो प्राण एक,
प्राण को जलाओ किन्तु काव्य में उजाला हो।
रूपमाला और गीतिका छंदों के सम्मिश्रण से सृजित चुटीली रचना प्रस्तुत करते हुए गौरीशंकर वैश्य विनम्र को ध्यान से सुना गया-
मान है सम्मान है बस एक प्याली चाय,
सूक्ष्मतम जलपान है बस एक प्याली चाय,
आ गया घर पर अतिथि तो प्रेम से स्वागत करो,
शिष्टता का दान है बस एक प्याली चाय।
घनानन्द पाण्डेय मेघ ने गंगोदक छंद में निबद्ध गीत सुनाकर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया-
भारती के लिए आरती के लिए, गीत लिखता रहूँ गुनगुनाता रहूँ,
देशहित लोकहित के लिए जो जिये, बस उन्हीं की कहानी सुनाता रहूँ।
अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए डॉ सुरेश प्रकाश शुक्ल ने विष्णुपद छंद में निबद्ध अवधी गीत सुनाकार  श्रोताओं को रस-विभोर कर दिया-
आजु सुखी हौ काल्हि न जानै कइसन दुख आवै,
माया नागरी जीवन कइहाँ अइसै सरसावै।
संचालक ओम नीरव ने इस अवसर पर एक नयी विधा अनुगीतिका की घोषणा करते हुए बताया कि यह एक ऐसी धारावाही गीतिका या मुसलसल ग़ज़ल है जिसके युग्म भवाभिव्यक्ति के लिए गीत की भांति मुखड़े या मतले के मुखापेक्षी होते हैं। इस विधा के उदाहरणस्वरूप लावणी छंद में निबद्ध एक अनुगीतिका उनहोंने प्रस्तुत की जिसका मुखड़ा और एक युग्म कुछ इसप्रकार रहा-
मीरा ने प्याले से पहले कितना गरल पिया होगा,
तब प्याले ने गरल-सिंधु के आगे नमन किया होगा।
अंतर से अंबर तक बजते घुंघुरू वाले पाँवों में,
कितने घाव कर गया परिणय का बौना बिछिया होगा।

शनिवार, 18 नवंबर 2017

कवितालोक विराट कवि सम्मेलन पीरनगर कमलापुर सीतापुर

          कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ उ०प्र० के तत्वाधान में आज एक विराट कवि सम्मेलन श्री शतचंडी महा यज्ञ के अवसर पर श्री साठिका देवी मंदिर के परिसर में पीरनगर, कमलापुर, सीतापुर में आयोजित हुआ I वरिष्ठ मीडिया कर्मी एवं समाज सेविका प्रीति मिश्रा शाह मुख्य अतिथि के रूप में इस आयोजन में उपस्थित रहीं Iविशिष्ट अतिथि कवि घनानंद पाण्डेय “मेघ”जी रहे एवम कार्यक्रम की अध्यक्षता कवितालोक के संरक्षक वरिष्ठ कवि आचार्य ओम “नीरव” ने की I
         इस अवसर पर यज्ञ संचालक सेवा समिति के प्रबंधक अनिल त्रिपाठी व कार्यक्रम के संयोजक सुनील त्रिपाठी के द्वारा अपने पूज्य पितामह स्व० मथुरा दत्त त्रिपाठी “शास्त्री” की स्मृति में “काव्य कौस्तुभ”- 2017 सारस्वत सम्मान के लिये वयोवृद्ध कवि भीषम लाल पाण्डेय के नाम की घोषणा की गई और उन्हें अंगवस्त्र डाल कर व सम्मानपत्र दे कर मुख्य अतिथि और अध्यक्ष द्वारा सम्मानित किया गया कार्यक्रम में पधारे अन्य कविगणों को प० चन्द्र दत्त त्रिपाठी स्मृति काव्य भारती-2017 सारस्वत सम्मान से अलंकृत किया गया I
       इसके उपरांत कवि सम्मलेन का प्रारंभ कवि घनानंद पाण्डेय “मेघ” की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ I
माँ मुझमें कुछ तो ऐसा हो
जो कहलाये मेरा परिचय
खिल जाये माँ मन मधुवन में
काव्य कला का कोई किसलय
कवि सम्मेलन का संचालन राष्ट्रीय मंचो के जाने माने संचालक आशु कवि कमलेश मौर्य “मृदु” ने किया I केदार नाथ शुक्ल की इन पंक्तियों ने खूब तालियाँ बटोरीं क्योकिं हमे डर है हिन्दू की दृष्टि न तन जाये, पूरा हिंदुस्तान कहीं गुजरात न बन जाये 
         बस्ती से पधारी कवयित्री डा० शिवा त्रिपाठी “सरस” ने जब पढ़ा दुराचारियों के पापों  का  अंत हमें ही करना है, चूड़ी वाले कोमल हाथों में तलवार जरुरी है तो लोग वाह वाह कर उठे I
        मंजुल मंज़र “लखनवी” का कलाम भी बहुत जोरदार रहा , निभा सके न जो किरदार वो कहानी क्या , हो सर्द जिस्म तो फिर खून की रवानी क्या I
         पद्मकांत शर्मा  प्रभात ने पढ़ा “परपीड़ा है पाप जगत में वेदों का बेजोड़ कथन है , पर उपकार किये से ज्यादा उत्तम कोई और न धन है I
        कवि कुमार तरल की इन लाइनों पर पंडाल झूम उठा “भगत सुभाष राणा और शिवा बार बार, किंतु जयचंद एक बार नही चाहिए I
         ओज कवि उमाकांत पाण्डेय ने अपनी इन पंक्तियों के साथ उपस्थिति दर्ज कराई , भरी तेज तप और शौर्य से राजस्थानी माटी है , किसी तीर्थ से पुण्य यहाँ पर पावन हल्दी घाटी है I
     कार्यक्रम का संयोजन कर रहे सुनील त्रिपाठी ने अपनी बात कुछ इस तरह रखी
दिखा कर आय तिल सी , ताड़ सी दौलत बढ़ा ली है
लिया धन घोंट , घोटाला किया खाई दलाली है I
निरीक्षण वे चले करने परायी दाल का काला
जिन्होंने सात दशकों तक खिलाई दाल काली है I
                             मिज़ाज लखनवी ने अपनी पेशकश में कुछ यूँ कहा
जब तक रहेगा चाँद ये छुपकर हिजाब में I
वो रौशनी  न होगी शबे माहताब  में I
परदा कहीं जो उठ गया शर्मों लिहाज़ का I
चाहे गा कौन फिर यहाँ रहना नकाब में I
                  राहुल द्विवेदी “स्मित” ने अवधी में कुछ इस प्रकार जोर बांधा कि
सारे मिलिकै जश्न मनावत हैं अपनी बेकारी मा ,
ऐसा झोलाम्झोल होति है , हमरे गाँव जवारी मा
अपने अध्यक्षीय काव्य पाठ में आचार्य ओम नीरव ने श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया उन्होंने पढ़ा ,
कीजिये जो निर्माण तो पत्थरों को पाटने में हृदयों के बीच कहीं खाई गहराए न
डॉ शोभा दीक्षित भावना, अशोक अग्निपथी ,अनिल बांके,संजय सांवरा,संदीप अनुरागी,मनोज अवस्थी शुकदेव,अवनीश त्रिपाठी,धीरज श्रीवास्तव,चेतराम अज्ञानी,डॉ सुभाष चन्द्रा पारस नाथ श्रीवास्तव आदि देश के कोने कोने से आये लगभग 25 कवि एवम कवयित्रियों ने अपने काव्य पाठ से इस आयोजन को शिखर तक पहुचाया देर रात तक चले कवि सम्मलेन में भारी संख्या में लोग उत्साहवर्धन के लिये पंडाल में उपस्थित रहे , अंत में कवितालोक के संरक्षक ओम नीरव और संयोजक सुनील त्रिपाठी ने सभी श्रोताओं का आभार व्यक्त किया I

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ की अष्टम काव्यशाला महोना लखनऊ

        कवितालोक सृजन संस्थान के तत्वावधान में अष्टम काव्यशाला का आयोजन चन्द्र वाटिका शिक्षा निकेतन, महोना, इटौंजा, लखनऊ में व्यवस्थापक डॉ. चन्द्र कुमार मिश्र के सौजन्य से कवितालोक अध्यक्ष ओम नीरव के संरक्षण में किया गया। आयोजन की अध्यक्षता अनागत कविता के प्रवर्तक डॉ. अजय प्रसून ने की तथा संयोजन और संचालन युवा कवि राहुल द्विवेदी स्मित ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ० शिव मंगल सिंह 'मंगल' और विशिष्ट अतिथि के रूप में कविवर कुमार तरल उपस्थित रहे।  इस अवसर कवितालोक सृजन संस्थान के अध्यक्ष ओम नीरव द्वारा डॉ. शिवमंगल सिंह 'मंगल' को 'कविता लोक रत्न' और डॉ० सर्मेश शर्मा व राजाभैया गुप्ता 'राजाभ' को 'गीतिका रत्न' सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया गया।
      काव्यशाला का प्रारम्भ गौरी शंकर वैश्य 'विनम्र' की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ। इस अवसर पर अनेक कवियों ने छंद, मुक्तक, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, व्यंग्य आदि के द्वारा श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। साथ ही विद्यालय के बच्चों ने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के आधार पर मंचासीन अतिथि व विशेषज्ञों से साहित्य व कविता के सन्दर्भ में अपने प्रश्न पूछे और उनका संतुष्टि पूर्ण उत्तर प्राप्त किया ।
काव्यपाठ करने वाले कवियों में डॉ० अजय प्रसून जी ने जीवन दर्शन को अपने गीत में कुछ यों उकेरा-
'पायलों से गीत अग्नि झील से दिखे, कौन जलतरंग धूप चांदनी लिखे? प्यास की गली गली उजाड़ हो चली, चार दिन की जिंदगी पहाड़ हो चली ।'
शिव मंगल सिंह मंगल जी ने आधुनिक परिवेश में एक कवि की वेदना को स्वर दिए- 'भाषा जाति क्षेत्र के झगड़े, जगह-जगह पर ठने हुए हैं । गीत प्यार के कैसे गाऊँ, हाथ खून से सने हुए हैं ।'
कुमार तरल ने वर्तमान परिस्थितियों पर व्यंग कसते हुए कहा- 'आशाराम रामपालौ सँग तुहूँ बिछाओ खाट । राधे माँ जल्दी अइहैं तीनिउ मिलि जोहउ बाट । सबै पुरिखा तरि जइहैं ।।'
हास्य कवि चेतराम अज्ञानी ने ठेठ अवधी कविता से श्रोताओं को ठहाके लगाने पर विवश कर दिया-
'समझि न पायेन नाम ते, आम आय की नीम । हिन्दू है या मुसलमाँ, बाबा राम रहीम ।।'
सुनील त्रिपाठी ने वर्तमान मानवीय स्वभाव को कुछ यों अभिव्यक्त किया- 'हीन है जो कर्म से कर्तव्य से लाचार है । मांगता वह आदमी भी आजकल अधिकार है ।।'
मिज़ाज लखनवी ने  तरन्नुम में पढ़ते हुए इस ग़ज़ल से खूब वाहवाही लूटी-
'खुद को ही वो तबाह कर लेंगे । गर अदावत की चाह कर लेंगे ।'
कार्यक्रम के संयोजक एवं संचालक राहुल द्विवेदी स्मित ने गीत के माध्यम से एक कवि के व्यक्तित्व को स्वर देते  हुए कहा- 
'एक कलम के बूते पर मैं दुनिया रोज बदलता हूँ ।
ये मत सोंचो कवि हूँ तो मैं बस कविता कर सकता हूँ ।।'
सुन्दर लाल सुन्दर ने अपने सधे हुए स्वर में जब सुनाया-
'दिखाता पाक जब आंखें तो मैं अंगार लिखता हूँ ।' तो वाह वाह से सदन गूँज उठा।
मनु बाजपेई बौछार ने आत्मविश्वास की शक्ति को स्वर देते हुए कहा- 'जिन्दगी के इस हवन में हव्य खुद बन जाऊंगा ।'
युवा कवियत्री शिवांगी दीक्षित ने देश के सहीदों को याद करते हुए कहा- 'याद करो उन वीरों को जिनके हम हैं आभारी ।' और श्रोताओं की भरपूर सराहना प्राप्त ही।
डॉ० सर्मेश शर्मा ने अपने ही अंदाज में काव्यपाठ कर श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया- 'जमाना लाख दुश्मन हो हमारा कुछ न बिगड़ेगा, हम अपने बाप, माँ गुरु की दुआएं लेके चलते हैं ।'
दिनेश सोनी ने 'एक डाल पर बैठे पर अहसान नहीं है डाल का' जैसी पंक्तियाँ पढ़कर खूब वाहवाही बटोरी ।
गौरव पांडे रुद्र ने ग़ज़ल में कुछ यों अंदाज में कहा- 'इस अकीदत से तू पिला साकी, मैं रहूँ, मैं न अब किसी हद तक ।'
युवा ओज कवि अखिल तिवारी 'समग्र' ने शब्दों के तीखे तीर छोड़ते हुए सम्पूर्ण देश का आह्वान किया- 'तलवार उठाओ गर्दन काटो, गद्दारों का अंत करो ।'
सचिन मेहरोत्रा ने 'प्यार की डोर से बंध जाते हैं, इक जरा जोर से बंध जाते हैं ' ग़ज़ल पढ़कर खूब तालियाँ बटोरीं ।
सम्पत्ति कुमार मिश्र ' भृमर बैसवारी' ने 'पात्र श्रद्धा के हुए भाग, कहो क्या होगा' जैसी पंक्तियाँ पढ़कर सभी की सराहना प्राप्त की ।
मनमोहन बराकोटी 'तमाचा लखनवी' ने कुछ यों अपनी भावनाओं को स्वर दिए- 'भरा न हो जिसमें जोश वो रवानी कैसी..? मिले न जिससे ज्ञान वो कहानी कैसी ?'
काव्य पाठ करने वाले अन्य कवियों में सबिहा परवीन, गौरी शंकर वैश्य 'विनम्र', राजा भैया गुप्ता 'राजाभ', योगेश चौहान, आशुतोष आशु प्रमुख रहे ।
अंत में कवितालोक के संरक्षक आचार्य ओम् नीरव ने काव्यशाला में पधारे सभीअतिथियों का आभार व्यक्त कर कार्यक्रम का समापन किया।

रिपोर्ट-राहुल द्विवेदी स्मित

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

कवितालोक द्वारा 'गीतिका गंगोत्री' का सफल आयोजन,मोतीमहल वाटिका,लखनऊ

गीतिका गंगोत्री

      कवितालोक सृजन संस्थान के सौजन्य से हिन्दी गीतिका को समर्पित ‘गीतिका गंगोत्री’ और सम्मान समारोह ‘गागर में सागर’ राष्ट्रीय पुस्तक मेला मोतीमहल वाटिका हजरतगंज लखनऊ मे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अनिल मिश्र की अध्यक्षता और गीतिकाकार सुनील त्रिपाठी के संयोजन में सम्पन्न हुआ। समारोह में साहित्यगंधा के संपादक यशभारती सर्वेश अस्थाना मुख्य अतिथि और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की संपादक डॉ. अमिता दुबे विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। समारोह के प्रथम चरण में संरक्षक ओम नीरव ने उत्तरीय और सम्मान पत्र भेंटकर तीस गीतिकाकारों को गीतिका गंगोत्री, तीन काव्य साधकों को ‘काव्य गंगोत्री’, साहित्यसेवी प्रकाशक सुभाष चंद्रा को ‘प्रकाशन गंगोत्री’ और राष्ट्रीय पुस्तक मेला के संयोजक देवराज अरोड़ा को ‘ग्रंथ गंगोत्री’ सम्मान से विभूषित किया। सम्मान समारोह का संचालन सुनील त्रिपाठी ने किया। दूसरे चरण ‘गीतिका गंगोत्री’ में गीतिकाकारों ने हिन्दी गीतिकाओं की सरस धारा प्रवाहित कर श्रोताओं को रस-विभोर कर दिया। गीतिका गंगोत्री की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि  इसका संचालन करते हुए गीतिका-विधा के प्रवर्तक ओम नीरव ने काव्य-पाठ के बीच-बीच पढ़ी गयी प्रत्येक गीतिका के आधारछंद, मापनी, समांत, पदांत आदि की रोचक व्याख्या कर श्रोताओं को आश्चर्य चकित कर दिया। मंजुल मंज़र लखनवी की वाणीवंदना से प्रारम्भ हुई गीतिका गंगोत्री में काव्य पाठ करते हुए उमाकांत पाण्डेय ने गीतिका का परिचय कराते हुए यह युग्म पढ़कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया-
यह छंद जिसपर मैं पढ़ रहा हूँ प्रसिद्ध वाचिक अनंगशेखर,
लगालगागा की मापनी पर यही तो नीरव की गीतिका है।
मनकापुर से पधारे धीरज श्रीवास्तव ने जीवन के कटु यथार्थ को अपनी गीतिका में कुछ इसप्रकार ढाला-
और भी पाना बहुत कुछ ज़िंदगी तुमसे हमें,
कब कटा जीवन किसी का चुंबनी उपहार पर।
वरिष्ठ कवि मधुकर अष्ठाना की गीतिका के इस युग्म पर श्रोता बरबस वाह-वाह कर उठे-
अर्थ की खोज में व्यर्थ से शब्द हैं,
कल्पना पांखुरी-सी झरी रह गयी।
छंदाचार्य रामदेव लाल विभोर ने अपनी गीतिका में युग को दर्पण दिखाते हुए कहा-  
कलयुग है रंग लाया कहते विभोर सच-सच,
अब कृष्ण का न द्वापर, अब राम का न त्रेता।
कानपुर से आयीं डॉ. मंजु श्रीवास्तव ने दासता की वेदना को अपने युग्म में ढालते हुए कहा-
नापते पंछी रहे जो नित्य ही धरती-गगन
मुस्कराकर बंद पिंजड़े में भला कैसे रहें।
गोंडा से पधारे उमाशंकर शुक्ल की गीतिका में सामाजिक विकृति का प्रतिबिंब देखने को मिला-
दुर्व्यसनों में लिप्त और जो है व्यभिचारी,
नैतिकता का पाठ आजकल वहीं पढ़ाता।
बिजनौर से पधारे गीतिकाकार मनोज मानव ने मनहर घनाक्षरी पर आधारित गीतिका सुनाकर श्रोताओं को तालियाँ बजाने पर विवश कर दिया-
बढ़ रहे अपराध, सैकड़ों, न एक आध,
खतरे में घिरी हुई आन-बान शान है।
घर-घर की कहानी, नशे में लूटी जवानी,
झूम रहे युवकों को लठियाना चाहिए।
संयोजक सुनील त्रिपाठी ने लेखनी के धर्म को कुछ इसप्रकार उजागर किया-
सत्य लिखने का अगर साहस न हो तो,
व्यर्थ है इस लेखनी को फिर उठाना।
हरीश चन्द्र लोहुमी के इस युग्म पर बहुत वाहवाही मिली-
पथिक काव्य के भूल मत जाइयेगा,
सृजन से सजी वीथिका का निमंत्रण।
राहुल द्विवेदी स्मित ने गीतिका विधा पर गीतिका सुनाते हुए कहा-
छंद की शुद्धता सौम्यता के लिए,
अनवरत है समर्पित विधा गीतिका।
गोला गोकर्णनाथ से पधारे राम कुमार गुप्त ने कहा-
ज़िंदगी घन के लिए केवल घुटन है।
बूंद का हरबार ही जीवन पतन है।
वरिष्ठ गीतिकाकार श्याम फतनपुरी ने बेटियों को समर्पित युग्म पढ़कर तालियाँ बटोरी-
बेटियों को है बचाना अब हमें बढ़कर,
स्वप्न उनकी आँख नें भी खूब सजते हैं।
ओम नीरव ने सुनाया -
सत्य ने सिर उठाया तनिक जो कहीं,
झूठ की संगठित हो गईं टोलियाँ।
अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए डॉ अनिल मिश्र ने गीतिका का एक नए स्वरूप में प्रस्तुत करते हुए श्रोताओं को रस-विभोर कर दिया -
आओ यशुदा दुलारे हाँ हमारे अंगना।
आओ यमुना किनारे हाँ कामारे अंगना।
मुख्य अतिथि सर्वेश अस्थाना ने गीतिका गंगोत्री को एक अभूतपूर्व परिकल्पना बताते हुए हिन्दी-सेवा के लिए कवितालोक की सराहना की। विशिष्ट अतिथि डॉ. अमिता दुबे ने इस आयोजन को काव्यशिल्पियों के लिए उपयोगी बताते हुए कवितालोक का एक कार्यशाला के रूप में स्वागत किया। गीतिका गंगोत्री में गीतिका-गुंजन करने वाले अन्य कवियों में मुख्य थे- मंजुल मंजल लखनवी, सौरभ टंडन शशि, रेनू द्विवेदी, डॉ अजय प्रसून, कुमार तरल, आभा मिश्रा, विपिन मलिहाबादी, अशोक अवस्थी, चेतराम अज्ञानी, केवल प्रसाद सत्यम, नागेंद्र सोनी, गौरीशंकर वैश्य विनम्र, सुंदर लाल सुंदर, डॉ उमेश श्रीवास्तव, डॉ प्रेमलता त्रिपाठी,डॉ हरि फैजाबादी

रिपोर्ट- अवनीश त्रिपाठी