ओम नीरव

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ की अष्टम काव्यशाला महोना लखनऊ

        कवितालोक सृजन संस्थान के तत्वावधान में अष्टम काव्यशाला का आयोजन चन्द्र वाटिका शिक्षा निकेतन, महोना, इटौंजा, लखनऊ में व्यवस्थापक डॉ. चन्द्र कुमार मिश्र के सौजन्य से कवितालोक अध्यक्ष ओम नीरव के संरक्षण में किया गया। आयोजन की अध्यक्षता अनागत कविता के प्रवर्तक डॉ. अजय प्रसून ने की तथा संयोजन और संचालन युवा कवि राहुल द्विवेदी स्मित ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ० शिव मंगल सिंह 'मंगल' और विशिष्ट अतिथि के रूप में कविवर कुमार तरल उपस्थित रहे।  इस अवसर कवितालोक सृजन संस्थान के अध्यक्ष ओम नीरव द्वारा डॉ. शिवमंगल सिंह 'मंगल' को 'कविता लोक रत्न' और डॉ० सर्मेश शर्मा व राजाभैया गुप्ता 'राजाभ' को 'गीतिका रत्न' सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया गया।
      काव्यशाला का प्रारम्भ गौरी शंकर वैश्य 'विनम्र' की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ। इस अवसर पर अनेक कवियों ने छंद, मुक्तक, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, व्यंग्य आदि के द्वारा श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। साथ ही विद्यालय के बच्चों ने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के आधार पर मंचासीन अतिथि व विशेषज्ञों से साहित्य व कविता के सन्दर्भ में अपने प्रश्न पूछे और उनका संतुष्टि पूर्ण उत्तर प्राप्त किया ।
काव्यपाठ करने वाले कवियों में डॉ० अजय प्रसून जी ने जीवन दर्शन को अपने गीत में कुछ यों उकेरा-
'पायलों से गीत अग्नि झील से दिखे, कौन जलतरंग धूप चांदनी लिखे? प्यास की गली गली उजाड़ हो चली, चार दिन की जिंदगी पहाड़ हो चली ।'
शिव मंगल सिंह मंगल जी ने आधुनिक परिवेश में एक कवि की वेदना को स्वर दिए- 'भाषा जाति क्षेत्र के झगड़े, जगह-जगह पर ठने हुए हैं । गीत प्यार के कैसे गाऊँ, हाथ खून से सने हुए हैं ।'
कुमार तरल ने वर्तमान परिस्थितियों पर व्यंग कसते हुए कहा- 'आशाराम रामपालौ सँग तुहूँ बिछाओ खाट । राधे माँ जल्दी अइहैं तीनिउ मिलि जोहउ बाट । सबै पुरिखा तरि जइहैं ।।'
हास्य कवि चेतराम अज्ञानी ने ठेठ अवधी कविता से श्रोताओं को ठहाके लगाने पर विवश कर दिया-
'समझि न पायेन नाम ते, आम आय की नीम । हिन्दू है या मुसलमाँ, बाबा राम रहीम ।।'
सुनील त्रिपाठी ने वर्तमान मानवीय स्वभाव को कुछ यों अभिव्यक्त किया- 'हीन है जो कर्म से कर्तव्य से लाचार है । मांगता वह आदमी भी आजकल अधिकार है ।।'
मिज़ाज लखनवी ने  तरन्नुम में पढ़ते हुए इस ग़ज़ल से खूब वाहवाही लूटी-
'खुद को ही वो तबाह कर लेंगे । गर अदावत की चाह कर लेंगे ।'
कार्यक्रम के संयोजक एवं संचालक राहुल द्विवेदी स्मित ने गीत के माध्यम से एक कवि के व्यक्तित्व को स्वर देते  हुए कहा- 
'एक कलम के बूते पर मैं दुनिया रोज बदलता हूँ ।
ये मत सोंचो कवि हूँ तो मैं बस कविता कर सकता हूँ ।।'
सुन्दर लाल सुन्दर ने अपने सधे हुए स्वर में जब सुनाया-
'दिखाता पाक जब आंखें तो मैं अंगार लिखता हूँ ।' तो वाह वाह से सदन गूँज उठा।
मनु बाजपेई बौछार ने आत्मविश्वास की शक्ति को स्वर देते हुए कहा- 'जिन्दगी के इस हवन में हव्य खुद बन जाऊंगा ।'
युवा कवियत्री शिवांगी दीक्षित ने देश के सहीदों को याद करते हुए कहा- 'याद करो उन वीरों को जिनके हम हैं आभारी ।' और श्रोताओं की भरपूर सराहना प्राप्त ही।
डॉ० सर्मेश शर्मा ने अपने ही अंदाज में काव्यपाठ कर श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया- 'जमाना लाख दुश्मन हो हमारा कुछ न बिगड़ेगा, हम अपने बाप, माँ गुरु की दुआएं लेके चलते हैं ।'
दिनेश सोनी ने 'एक डाल पर बैठे पर अहसान नहीं है डाल का' जैसी पंक्तियाँ पढ़कर खूब वाहवाही बटोरी ।
गौरव पांडे रुद्र ने ग़ज़ल में कुछ यों अंदाज में कहा- 'इस अकीदत से तू पिला साकी, मैं रहूँ, मैं न अब किसी हद तक ।'
युवा ओज कवि अखिल तिवारी 'समग्र' ने शब्दों के तीखे तीर छोड़ते हुए सम्पूर्ण देश का आह्वान किया- 'तलवार उठाओ गर्दन काटो, गद्दारों का अंत करो ।'
सचिन मेहरोत्रा ने 'प्यार की डोर से बंध जाते हैं, इक जरा जोर से बंध जाते हैं ' ग़ज़ल पढ़कर खूब तालियाँ बटोरीं ।
सम्पत्ति कुमार मिश्र ' भृमर बैसवारी' ने 'पात्र श्रद्धा के हुए भाग, कहो क्या होगा' जैसी पंक्तियाँ पढ़कर सभी की सराहना प्राप्त की ।
मनमोहन बराकोटी 'तमाचा लखनवी' ने कुछ यों अपनी भावनाओं को स्वर दिए- 'भरा न हो जिसमें जोश वो रवानी कैसी..? मिले न जिससे ज्ञान वो कहानी कैसी ?'
काव्य पाठ करने वाले अन्य कवियों में सबिहा परवीन, गौरी शंकर वैश्य 'विनम्र', राजा भैया गुप्ता 'राजाभ', योगेश चौहान, आशुतोष आशु प्रमुख रहे ।
अंत में कवितालोक के संरक्षक आचार्य ओम् नीरव ने काव्यशाला में पधारे सभीअतिथियों का आभार व्यक्त कर कार्यक्रम का समापन किया।

रिपोर्ट-राहुल द्विवेदी स्मित

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