ओम नीरव

बुधवार, 4 मई 2016

एक अभिनव प्रयोग, एक सार्थक प्रयास एवं मातृभाषा का गौरव ( गीतिकालोक )

गीतिकालोक- गीतिका विधा एवं गीतिका संकलन ( शिल्प विधान सहित )
लेखक एवं सम्पादक-ओम नीरव
प्रकाशक-पारस प्रकाशन-एन-81, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032           
पृष्ठ--280 पेपरबैक                    मूल्य-300 रुपये । 

Dr. Sadhana Pradhan
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            प्रख्यात हिन्दी-साहित्य-सेवी एवं कविता-लोक के पुरोधा श्री ओम नीरव जी द्वारा संकलित व संपादित "गीतिकालोक" हिन्दी काव्य प्रेमियों के लिए एक प्रेरक, अमूल्य एवं संग्रहणीय पुस्तक है। विवेच्य पुस्तक की सम्पूर्ण विषय सामग्री दो भागों में विभक्त हैं- प्रथम भाग में आ. नीरव जी ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा, स्वाध्याय एवं अथक श्रम से गीतिका विधा की रचना-प्रक्रिया-यथा-मात्राभार, तुकान्त-विधान, प्रचलित मापनियों का विविध हिन्दी छंदों से सम्बन्ध, मापनी विज्ञान का विस्तृत वैज्ञानिक निरुपण इतनी कुशलता से किया है कि नवांकुरों के लिए यह पुस्तक किसी वरदान से कम नहीं होगी । उर्दू बहर से पृथक, मापनियों को हिन्दी छंदों से जोड़कर जो सांगोपांग विवेचन किया गया है, अपने आप में बेजोड़ है, हिन्दी-व्याकरण एवं हिन्दी- साहित्य की एक अनुपम उपलब्धि है । इस सुन्दर आलेख में नीरव जी ने न केवल हिन्दी गीतिका विधा की सुघड़ देह का ताना-बाना रचा है अपितु इसकी आत्मा के सौंदर्य की कलात्मक व्याख्या करके एक अनुपम देशी विधा से हमारा साक्षात्कार भी करवाया है । मातृभाषा के ओज से आप्लावित, हिन्दी व्याकरण एवं हिन्दी के नाना छंदों से सुसज्जित गीतिका का यह रचना संसार, प्रौढ़ काव्य-धर्मियों के लिए भी अनुकरणीय है, स्तुत्य है-जिसके माध्यम से गीतिका विधा के शिल्प को समझना अत्यन्त सुगम हो गया है।

  छंद को सहेजती, विधा रसाल गीतिका
काव्य-कुँज में खिली, करे कमाल गीतिका
               --- ओम नीरव --

                वास्तव में इस गीतिका-विधा ने तो कमाल ही कर दिखाया....मापनीयुक्त मात्रिक व वर्णिक छंदों को आधार बनाकर, लेखक ने गीतिका-विधा की रचना-धर्मिता को समझाने का जो प्रयास किया है वह तो प्रसंशनीय है ही किन्तु मापनीमुक्त मात्रिक व वर्णिक छंदों पर गीतिका रचने का प्रयोग तो अपने आप में अनूठा है, वंदनीय है क्योंकि ऐसे छंदों में लय को साधना अपेक्षाकृत कठिन होता है लेकिन नीरव जी ने बहुत ही सुन्दर ढंग से इस दुष्कर कार्य को भी सहज और सुगम बनाकर सुधी-समाज को अचम्भित कर दिया है। यद्यपि यह सत्य ही होगा कि इस कार्य को यहाँ तक संपादित करनें में लेखक को बहुत उद्यम और लगन की आवश्यकता रही होगी जैसा कि स्वयं लेखक की कलम से यह तथ्य अनायास ही स्पष्ट हो जाता है -
    नहीं दिमाग़ से' कविता लिखी कभी  'नीरव'
      निचोड़ दिल को' भरे हमने' छंद के प्याले.
                 ------ओम नीरव -----

             मैं तो यही कहूँगी कि जिस समर्पण भाव से, जिस गहराई व मनोयोग से, लेखक ने इस विधा को सजाया है, सँवारा है और सुधी-समाज के समक्ष एक प्व्यवस्थित 'गीतिका-विधा' के रूप में प्रस्तुत किया है उसके  लिए वे निश्चित ही बधाई के पात्र हैं । उनके इस महायज्ञ में उनके शिष्य,  साथी व सहयोगी कविमित्रों ने अनेक आहुतियाँ दी हैं, जिसे द्वितीय भाग में कवि नीरव जी ने संकलित किया है। इस भाग में कवि-परिचय के साथ साथ समस्त कवियों द्वारा रचित गीतिकाओं को शिल्प-विधान सहित संजोया गया है जो अपने आप में एक अभिनव प्रयोग है। इस पुस्तक के माध्यम से कवि एवं लेखक नीरव जी व उनके सभी सहयोगी कवियों ने यह सिद्ध कर दिया कि-

      काव्य रचे मीत सरस शिल्प सधा भाव भरा
        धार लिए बात कहें, मर्म भरा व्यंग्य खरा.
                    ------ओम नीरव ------
सभी कवियों ने हिन्दी छंदों एवं छंद आधारित मापनियों पर एक से बढ़कर एक सुन्दर गीतिकाओं का सृजन किया हैं जिसे पढ़कर पाठक आत्मविभोर हो उठेगा। इस सरस सुन्दर और रससिक्त संग्रह के लिए मैं दिल से समस्त रचनाकारों को नमन करती हूँ और ह्रदय से शुभकामनाएँ देती हूँ ।
               मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि यह ' गीतिकालोक' पुस्तक साहित्य-समाज के लिए एक अनुपम उपलब्धि सिद्ध होगी । आ. लेखक व संपादक ओम नीरव जी व समस्त कवि-समुदाय को उनके उज्ज्वल भविष्य हेतु कोटिश : मंगलकामनाएँ प्रेषित करते हुए अपनी बात इन्हीं दो पंक्तियों के साथ समाप्त करती हूँ----

         'कलम' तो वह अमर होगी ।
         'कहन' जिसकी प्रखर होगी ।।
       
           ------डॉ. साधना प्रधान ( जयपुर, राजस्थान )

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