ओम नीरव

शनिवार, 21 मई 2016

विधा- 'मुक्तक' का तानाबाना

By Om Neerav on Thursday, June 6, 2013 at 11:28am

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मुक्तक क्या है ?
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मुक्तक एक सामान मात्राभार और समान लय (या समान बहर) वाले चार पदों की रचना है जिसका पहला , दूसरा और चौथा पद तुकान्त तथा तीसरा पद अतुकान्त होता है और जिसकी अभिव्यक्ति का केंद्र अंतिम दो पंक्तियों में होता है ! समग्रतः मुक्तक के लक्षण निम्न प्रकार हैं -
१. इसमें चार पद होते हैं
२. चारों पदों के मात्राभार और लय (या बहर) समान होते हैं
३. पहला , दूसरा और चौथा पद तुकान्त होता हैं जबकि तीसरा पद अनिवार्य रूप से अतुकान्त होता है
४. कथ्य कुछ इस प्रकार होता है कि उसका केंद्र विन्दु अंतिम दो पंक्तियों में रहता है , जिनके पूर्ण होते ही पाठक/श्रोता 'वाह' करने पर बाध्य हो जाता है !
५. मुक्तक की कहन कुछ-कुछ  ग़ज़ल के शेर जैसी होती है , इसे वक्रोक्ति , व्यंग्य या अंदाज़-ए-बयाँ के रूप में देख सकते हैं !
उदाहरण :-

आँसुओं का समंदर सुखाया गया ,
अन्त में बूँद भर ही बचाया गया ,
बूँद वह गुनगुनाने लगी ताल पर -
तो उसे गीत में ला छुपाया गया !
................. ओम नीरव. 

विशेष : यह चर्चा लोक प्रचलित मुक्तक की है , काव्य शास्त्रीय परिभषा के अनुसार मुक्तक का अर्थ है - कोई काव्य रचना जो अपने अर्थ को स्पष्ट करने के लिये आत्म निर्भर हो अर्थात किसी दूसरी रचना पर निर्भर न् हो !इस परिभषा के अनुसार प्रबंध काव्यों से इतर प्रायः सभी रचनाएँ "मुक्तक" के अंतर्गत आ जाती है ! छंद शस्त्र मे उन वर्णिक छंदों को भी मुक्तक कहा गया है जिनमे वर्णों की संख्या तो निश्चित होती है किन्तु उनका मात्राभार निश्चित नहीं होता है अर्थात मुक्त होता है जैसे मनहर घनाक्षरी, रूप घनाक्षरी आदि। ...... किन्तु लोक प्रचलित मुक्तक का अभिप्राय वही है जो ऊपर दिया गया है !आपके विचारों का स्वागत है !

ओम नीरव,कवितालोक
लखनऊ 

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