ओम नीरव

मंगलवार, 3 मई 2016

पवित्र ग्रन्थ "गीता "के समकक्ष- गीतिकालोक

      समीक्ष्य कृति – गीतिकालोक, कृतिकार – ओम नीरव
(पृष्ठ – 280, पेपर कवर, मूल्य – 300 रूपये, संपर्क – 07526063802)

PRAMOD TIWARI HANS
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              दिनांक 7 अप्रैल 2016 को उ,प्र,के सुल्तानपुर जनपद के पं.रामनरेश त्रिपाठी सभागार में जनपद के ही सुप्रसिद्ध गीतकार स्व.पं.रामानुज त्रिपाठी की स्मृति में उनके सुयोग्य सुपुत्र एवं सुप्रसिद्ध कवि पं.अवनीश त्रिपाठी के संयोजन में तथा परमादरणीय ओम नीरव जी के संरक्षण में कवितालोक ई समूह द्वारा अखिल भारतीय गीतिका समारोह एवं कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें कवितालोक के संरक्षक -संस्थापक ,हिन्दी साहित्य के पुरोधा एवं हिन्दी भाषा एवं साहित्य को समर्पित परमादरणीय ओम नीरव जी द्वारा सम्पादित एवं रचित तथा पारस प्रकाशन द्वारा प्रकाशित "गीतिका विधा एवं गीतिका संकलन "का विमोचन किया गया 

             उपरोक्त पुस्तक दो भागों विभाजित में है प्रथम भाग गीतिका विधा का है जिसमें तकनीकी शब्दावली ,मात्रा भार ,तुकान्त विधान ,मापनी विज्ञान ,आधार छंद ,मापनीयुक्त और मापनीमुक्त छंदों के विषय में विस्तार से समझाया गया है.गीतिका क्या है ?गीतिका के लक्षण क्या हैं?गीतिका और उर्दू गजल में क्या समानतायें हैं और क्या भिन्नतायें हैं गजल को हिन्दी में लिखने पर गीतिका नाम ही क्यों उचित और सार्थक तथा तर्क संगत है इस तथ्य को प्रमाण सहित सिद्ध किया गया है 
            गीतिका के इस भाग में परमादरणीय नीरव जी का परिश्रम और समर्पण स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है यथार्थ में यह खंड वाणी पुत्रों के लिए हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थ "गीता "के समकक्ष ही है जिस प्रकार गीता के वचनों का पालन करके मनुष्य अपने प्रारब्ध को सुधार सकता है और भावीजीवन का निर्धारण कर सकता है उसी प्रकार इस पवित्र ग्रन्थ गीतिकालोक का अध्ययन करके अपना वर्तमान और भविष्य सुधारा जा सकता है .यह नवोदितों के लिए सम्पूर्ण विश्व विद्यालय है ऐसे पवित्र ग्रन्थ की रचना के लिए परमादरणीय नीरव जी को शत -शत नमन संकलन के द्वितीय भाग में सम्पूर्ण भारत के सुप्रसिद्ध रचनाकारों की श्रेष्ठ गीतिकायें और मुक्तक हैं जिन्हें पढ़कर ज्ञानवर्धन होगा और आनन्द की प्राप्ति भी होगी ऐसे पवित्र ग्रन्थ में मेरी भी रचनाओं को स्थान मिलना सौभाग्य की बात है
है कहां सामर्थ्य मुझ में लिख सकूं कुछ और भी 
मातु चरणौं में ठिकाना है न दूजा ठौर भी 


सूर्य उज्ज्वल किरण सी विधा गीतिका 
दौड़ती वन हिरण सी विधा गीतिका 
ये पताका बनी उड़ चली है गगन 
सुप्त के जागरण सी विधा गीतिका
  सादर आभार ,आदरणीय    .......   प्रमोद तिवारी हंस,इटावा उ प्र.

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