ओम नीरव

सोमवार, 21 मार्च 2016

शिव नारायण यादव की गीतिका

समीक्षा-समारोह-102
विधा-गीतिका
मापनी-22,22,22,22..!
समांत-आना ।
पदांत-चाहूँ ।

----------------
आँसू को सुलगाना चाहूँ ।
जीवन में मुस्काना चाहूँ ।
अपनी दुनिया आप जला के,
तुम सँग नेह लगाना चाहूँ ।
मोह महा तम काली रातें,
जुगनू को चमकाना चाहूँ ।
हर कण-कण है पोषित तुमसे,
जीवन को विखराना चाहूँ ।
दुख की बदली घिर आयी है,
बादल-राग सुनाना चाहूँ ।
रोते-रोते जीवन बीता,
हे प्रभु अब तो गाना चाहूँ ।
----------------
      ------शिव नारायण यादव

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें