ओम नीरव

सोमवार, 21 मार्च 2016

गुरचरन मेहता 'रजत' की गीतिका

समीक्षा समारोह - 101
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विधा - गीतिका 
मापनी ~ 212 212 212 212
समान्त ~ ई
पदान्त ~ को नमन
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दोस्तों को नमन दोस्ती को नमन ।
ज़िंदगी से मिली हर खुशी को नमन ।
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राज़ दिल के सुने आँख में भर नमी,
दोस्ती में छिपी बंदगी को नमन ।
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कड़वे जीवन में भी शर्करा घुल गई,
प्रेम रस से बनी चाशनी को नमन ।
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जगमगाते सितारे भी कहते यही,
चाँद से जो खिली चाँदनी को नमन ।
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हम हँसे साथ में साथ रोए भी थे,
आँसुओं को नमन उस हँसी को नमन ।
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मिल रही जो 'रजत' को मुहब्बत यहाँ,
आज मन की उसी ताज़गी को नमन ।।
            --- गुरचरन मेहता 'रजत'

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