ओम नीरव

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

कवितालोक काव्यशाला में प्रेमलता त्रिपाठी व गौरीशंकर विनम्र को कवितालोक रत्न एवं कुमार तरल को गीतिका रत्न

           कवितालोक सृजन संस्थान के तत्वावधान में मुंशी प्रेमचंद के जन्मदिन के अवसर पर एक काव्यशाला का आयोजन महोना के चन्द्र वाटिका शिक्षा निकेतन में व्यवस्थापक डॉ० सी.के. मिश्र जी के सौजन्य से किया गया। आयोजन की अध्यक्षता अनागत संस्था के संरक्षक डॉ० अजय प्रसून जी ने की तथा संयोजन और संचालन युवा कवि राहुल द्विवेदी स्मित ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में सुश्री प्रेमलता त्रिपाठी जी और विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री कुमार तरल जी, श्री कमलेश मौर्य 'मृदु' जी व श्री गौरी शंकर वैश्य 'विनम्र' जी उपस्थित रहे।  काव्यशाला का प्रारम्भ केदार नाथ शुक्ल जी की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ । इस अवसर पर अनेक कवियों ने छंद, मुक्तक, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, व्यंग्य आदि के द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर लिया । साथ ही विद्यालय के बच्चों ने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के आधार पर मंचासीन अतिथि व विशेषज्ञों से साहित्य व कविता के सन्दर्भ में अपने प्रश्न पूछे और उनका संतुष्टि पूर्ण उत्तर प्राप्त किया । प्रश्न पूछने वाले बच्चों में कक्षा १० के छात्र गुफरान ने हिंदी भाषा में अन्य भाषाओं- अंग्रेजी, उर्दू आदि के बढ़ते प्रभाव पर चिंता दर्शाता हुआ प्रश्न रखा तो कक्षा- १० से ही आयुष ने कविता लिखने के लिए प्रारम्भिक शर्तों को जानने की उत्सुकता जताई , साथ ही कक्षा ९ की छात्रा सदफ ने अपने पाठ्यक्रम की पुस्तको में वर्णित  कविताओं और आधुनिक कविताओं के बीच के अंतर को जानना चाहा ।
     कार्यक्रम में कवितालोक सृजन संस्थान के संरक्षक ओम नीरव जी ने सुश्री प्रेमलता त्रिपाठी जी व श्री गौरीशंकर वैश्य 'विनम्र' जी को 'कविता लोक रत्न' व श्री कुमार तरल जी को 'गीतिका रत्न' के सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया ।
         इस अवसर पर अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए डॉ० अजय प्रसून जी ने 'एक तीखी कटार है यारों, ये ग़ज़ल धारदार है यारों ।' सुनाकर कार्यक्रम को उत्कृष्टता प्रदान की ।
कविता लोक के संरक्षक ओम नीरव जी ने 'जन-मन भाये, रच जाये, बस जाए उर, सुपथ दिखाये, काव्य वह मीत रचिये ।' पंक्तियों में एक सच्ची कविता के मूल तत्वों को स्वर दिए ।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रेमलता त्रिपाठी जी ने ' लाज से पलकें झुकाते रह गए, पाँव से नूपुर बजाते रह गए ।।'  सुनाकर श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया ।
कुमार तरल जी ने 'आन बान शान पे जो किये कुर्बान जान, ध्यान में शहीदों कई शहादत बनी रहे ।' पंक्तियों से दीश के शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए ।
सीतापुर से पधारे व मंचों के सशक्त हस्ताक्षर केदार नाथ शुक्ल जी ने 'इतिहास लगा रोने जिस दम, जिस समय सिसक भूगोल उठी । तुलसी के स्वर में सब जनता जय-जय सुरनायक बोल उठी ।। ' जैसी पंक्तियों से महाकवि तुलसी दासजी व उनके साहित्य व समाज मे योगदान को स्मरण किया ।
गौरी शंकर वैश्य विनम्र जी ने 'भूख का मंत्र रट गया है अब, खेत टुकड़ों में बंट गया है अब' सुनाकर सभी को भारतीय संस्कृति में संस्कारों की महत्ता का स्मरण कराते हुए संस्कारो के ह्रास पर चिंता व्यक्त की ।
कमलेश मौर्य 'मृदु' जी ने अपनी रचनाओं से आतंकवाद और देश की वर्तमान स्थित पर जोरदार व्यंगात्मक प्रहार किए ।
उमाकान्त पांडे जी ने ''हमारे देश की सरहद को दुश्मन छू नहीं सकता, तिरंगा हाथ में है दिल में हिंदुस्तान जिन्दा है ।'' सुनाकर देश के हर नागरिक के देश के प्रति उद्गारों को आवाज दी ।
युवा रचनाकार संदीप अनुरागी ने 'अतना ज्यादा चोटान छोटे सब खाना पानी भूला है । भोरहे सीसा मा मुंह देखिन, तौ हनूमान कस फूला है ।।' पढ़कर सबको ठहाके लगाने पर विवश कर दिया ।
युवा कवि मनु बाजपेई 'बौछार' ने आत्मविश्वास की ताकत को स्वर देते हुए कहा- 'लाख दलदल थी जमीं पर, शान से चलता रहा ।'
सचिन मेहरोत्रा ने 'कहीं पे सर उठाकर जब निकलने लगते हैं' पंक्तियाँ पढ़कर खूब तालियाँ बटोरीं ।
मन्जुल मन्ज़र लखनवी जी ने 'मुईबाइल से सीखि सीखि कै ज्ञानी गुनी महान हुई गये ।' गीत को अपनी जादुई आवाज में सुनाकर शमा बाँध दिया और भरपूर तालियां बटोरीं ।
गौरव पांडे रूद्र ने अपनी गज़लों में आधुनिक समस्याओं पर बिम्बात्मक कटाक्ष किये ।
विपिन मलीहाबादी जी ने 'दिन तुम्हारे हुए रात मेरी हुई ' सुनाकर खूब वाहवाही प्राप्त की ।
सुन्दर लाल सुन्दर जी ने 'तुम अपने प्यार की गागर से कुछ बूंदे जो छलका दो, हम अपने प्यार का सागर बहाने तुमपे आये हैं ।' रचना पढ़ी तो श्रोता झूम उठे और वाह वाह और तालियों से सदन गूँज उठा ।
वरिष्ठ कवि डॉ० अशोक शर्मा जी ने 'एक दिवस केवल कविता के नाम लिखा जाये, एक दिवस सौंदर्य प्रेम के नाम लिखा जाये ।' पंक्तियों के माध्यम से कवि मन को जाग्रत करने का प्रयास किया ।
कुँवर कुसुमेश जी ने 'बहुत अच्छी इबारत लिख गया है, मुहब्बत ही मुहब्बत लिख गया है ।' जैसी उत्कृष्ट ग़जलो माध्यम से श्रोताओं को भरपूर रसपान कराया ।
मिज़ाज लखनवी ने 'किसी से भी दिल ये लगाने से पहले, जरा पूछ लेना जमाने से पहले ' सुनकर श्रोताओं को सोंचने पर विवश कर दिया ।
भारती अग्रवाल जी ने 'पत्थरो पर खड़ी मैं सोंचती हूँ ।' सुनाकर अपना जीवन के प्रति दार्शनिक द्रष्टिकोण प्रस्तुत किया ।
कार्यक्रम के संयोजक व संचालक राहुल द्विवेदी 'स्मित' ने ' जिन आँखों में बंजर दुनिया, उनकी खातिर पत्थर दुनिया ।' पंक्तियों को प्रवाह देते हुए गीत के माध्यम से मानवीय सम्वेदनाओं का दार्शनिक स्वरूप प्रस्तुत किया ।
इसके अतिरिक्त युवा कवि कृष्ण गोपाल शुक्ला, हास्य कवि अनिल बाँके ने भी काव्यपाठ कर श्रोताओं की सराहना प्राप्त की ।
कार्यक्रम के अंतर्गत श्री गौरी शंकर वैश्य 'विनम्र' जी की बाल कविताओं पर आधारित पुस्तको 'बाल विज्ञान कविताएं' और 'पर्यावरणीय बाल कविताएं' का विमोचन किया गया। रचनाकार विनम्र जी के अरिरिक्त डॉ. सी के मिश्र जी और ओम नीरव जी ने पुस्तकों की विशिष्टता और उपादेयता पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर डॉ मिश्र ने 10 पुस्तकें विद्यालय-पुस्तकालय के लिए क्रय कीं।
प्रस्तुति : राहुल द्विवेदी 'स्मित'

1 टिप्पणी:

  1. बेनामी30/1/22, 8:54 pm

    Can I make money from poker, casino games?
    Poker games are a หารายได้เสริม great opportunity for punters to make money at various and a lot of online poker sites are free to play but you 샌즈카지노 can always 제왕카지노 find

    जवाब देंहटाएं