ओम नीरव

मंगलवार, 17 जनवरी 2017

महोना में कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ की काव्यशाला का सफल आयोजन

       कवितालोक सृजन संस्थान के तत्वावधान में एक काव्यशाला का आयोजन महोना के चन्द्र वाटिका शिक्षा निकेतन में व्यवस्थापक डॉ० सी.के. मिश्र जी के सौजन्य से किया गया। आयोजन की अध्यक्षता नरेंद्र भूषण जी ने की तथा संयोजन और संचालन युवा कवि राहुल द्विवेदी स्मित ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ अजय प्रसून जी और विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री केदार नाथ शुक्ल जी व श्री श्याम फतनपुरी जी उपस्थित रहे। 

         काव्यशाला का प्रारम्भ मंजुल मंज़र लखनवी जी की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ । इस अवसर पर अनेक कवियों ने छंद, मुक्तक, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, व्यंग्य आदि के द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर लिया । कार्यक्रम का महत्व तब और बढ़ गया जब विद्यालय के बच्चों ने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के आधार पर मंचासीन अतिथि व विशेषज्ञों से साहित्य व कविता के सन्दर्भ में अपने प्रश्न पूछे और उनका संतुष्टि पूर्ण उत्तर प्राप्त किया । प्रश्न पूछने वाले बच्चों में सूरज कुमार (कक्षा-१०), आकृति मौर्या (कक्षा-९), बुशरा फातिमा (कक्षा-९) आदि प्रमुख रहे ।
           कार्यक्रम में कवितालोक सृजन संस्थान के संरक्षक ओम नीरव जी ने 'विश्व विधायक' साप्ताहिक समाचार पत्र के सम्पादक व कवि श्री मृत्युंजय प्रसाद गुप्त जी को 'कविता लोक रत्न' सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया ।
          इस अवसर पर अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए नरेंद्र भूषण जी ने:----
' है अधिक ऊँचा नहीं ये आसमाँ,
सिर जरा ऊँचा उठाकर देखिये ।
आईने में खुद दिखेंगे अजनबी,
आप यदि आँखें मिलाकर देखिये ।।'
सुनाकर कार्यक्रम को उत्कृष्टता प्रदान की ।
         कविता लोक के संरक्षक ओम नीरव जी ने:---
'ओ शमा, छंद हूँ मैं पतंगा नहीं,
ख्याति की ज्योति में मैं जलूँगा नहीं ।'
पंक्तियों में एक सच्चे कवि के हृदय की भावनाओं को स्वर दिए ।
         कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व देश के प्रसिद्ध गीतकार डॉ. अजय प्रसून जी ने:---
'एक बून्द तो क्या ये,
मरु का सागर पचा रही है ।
मृगतृष्णा हमको दलदल में,
कब से नचा रही है ।'
सुनाकर श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया ।
           सीतापुर से पधारे व मंचों के सशक्त हस्ताक्षर केदार नाथ शुक्ल जी ने:-----
'गांधी के तन पर भले अभी
दिखलाती एक लँगोटी है ।
पर उनके चेलों ने तिकड़म
से रकम पीट ली मोटी है । '
जैसी पंक्तियों से वर्तमान भ्रष्ट व्यवस्था पर जोरदार तमाचा जड़ा और जनमानस को सोंचने पर विवश किया ।
       श्याम फतनपुरी जी ने:---
'सारे तीरथ आ जाते हैं,
उन चरणों की सेवा में ।
माई- बाबू की सेवा में
चारो धाम हमारा हो ।'
सुनाकर सभी को भारतीय संस्कृति में संस्कारों की महत्ता का स्मरण करा दिया ।
       उमाकान्त पांडे जी ने:----
''हमारे देश की सरहद को
दुश्मन छू नहीं सकता,
तिरंगा हाथ में है दिल में
हिंदुस्तान जिन्दा है ।''
सुनाकर देश के हर नागरिक के देश के प्रति उद्गारों को आवाज दी ।
       शशि सौरभ जी ने दोहा छंद में:---
'बैल खड़े हैं खेत में, रोता रहा किसान । हरियाली को काट के पछताए इंसान ।।'
दोहा पढ़कर तालियां बटोरीं ।
        मुकेश कुमार मिश्र ने:/----
' जो चाहते हो राम राज लाना उठो
आज ही राम का रूप धारो ।'
पढ़कर आज के सामजिक परिवेश में एक महत्वपूर्ण आवश्यकता को स्वर दिया ।
       परमहंस मिश्र 'प्रचंड' जी ने
'अभी भंग कितनी घुलेगी,
पूछती टूटकर चूड़ियाँ ।'
पंक्तियाँ पढ़कर खूब तालियाँ बटोरीं ।
       मन्जुल मन्ज़र लखनवी जी ने
'चाह मरती ही नहीं जिस्म ये मर जायेगा ।
प्राण खुशबू है हवाओ में बिखर जायेगा ।'
गीतिका को अपनी जादुई आवाज में सुनाकर शमा बाँध दिया और भरपूर तालियां बटोरीं ।
         गौरव पांडे रूद्र ने
'साये मायूसी चारों तरफ ही,
आस का दीपक जलाओ तुम जरा ।'
सुनाकर खूब वाहवाही प्राप्त की ।
         आलमबाग से पधारे मनमोहन सिंह भाटिया 'दर्द लखनवी' जी ने '
इक नज़र देख लो हम सँवर जायेंगे,
बिगड़े हालात सारे सुधर जायेंगे ।'
ग़ज़ल पढ़ी तो श्रोता झूम उठे और वाह वाह और तालियों से सदन गूँज उठा ।
         विश्व विधायक साप्ताहिक समाचार पत्र के सम्पादक मृत्युंजय प्रसाद गुप्त जी ने
'अपनी सेवा है प्रकाश
करना जग सद्गुण फैले,
रंच मात्र भी रहे न रीता
समय जो अवगुण परखे ।'
पंक्तियों के माध्यम से जन मन को जाग्रत करने का प्रयास किया ।
       डॉ. शर्मेश शर्मा जी ने '
सदा सौहार्द की संवेदनाएं लेके चलते हैं ।
प्रफुल्लित हों सभी ऐसी फिजायें लेके चलते हैं ।'
जैसी उत्कृष्ट मंचीय व साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से श्रोताओं को भरपूर रसपान कराया ।
       राजेंद्र द्विवेदी जी ने
'इकरार पा गया हूँ इंकार करते-करते ।
मैं मैं नहीं रहा हूँ दीदार करते करते ।'
रचना सुनाई ।
        लखनऊ के जाने माने हास्य कवि चेतराम अज्ञानी जी ने '
आपन चाहति हौ गान अगर,
करौ सिखव सम्मान ।
दुस्मनहु का द्वार पर,
करौ न तुम अपमान ।'
जैसी व्यंगात्मक व प्रेरणाप्रद रचनाएँ सुनाकर श्रोताओं को ठहाके लगाने व चिंतन करने हेतु विवश कर दिया ।
      आभा चंद्रा जी ने '
ये जो दुनिया है दायिमी कम है,
गम बहोत है ख़ुशी कम है ।'
सुनाकर जीवन का दार्शनिक स्वरूप प्रस्तुत किया ।
      भैरोनाथ पांडेय ने
' छेड़कर कल्पनाओं में तुमको,
मन ही मन खुश हो रहे हैं ।'
जैसी श्रृंगार रस से सराबोर रचनाएँ सुनकर खूब तालियां बटोरीं ।
       विपिन मलीहाबादी जी ने
'वे प्यार देखो कर रहे हैं गुठली मार के,
कैसे वफ़ा निभा रहे हैं गुठली मार के ।'
अपने ही अनोखे अंदाज में सुनाकर सभी को अपना मुरीद बना लिया ।
       नीरज द्विवेदी ने '
गलत पिता को ही करे, साबित पुत्र महान ।
मन मसोसता है पिता, दोष स्वयं का मान ।।'
दोहे के माध्यम से आज की पीढ़ी पर जमकर तीखे व्यंग किये ।
      सुरेखा अग्रवाल जी ने '
कितनी लफ्जों में सिमटती ये औरतें....
आबो हवा का असर यूँ हुआ .....'
जैसी पंक्तियों से न सिर्फ राजनीति पर जमकर प्रहार किए साथ ही आज की नारी की व्यथा को भी सबके सामने रखा और खूब सराहना बटोरी ।
      महेश अष्ठाना जी ने
'राजनीति ने बेड़ा गर्त कर दिया यारों,
बाप बाप न रहा बेटा बाप हुआ यारों ।'
पंक्तियों के माध्यम से वर्तमान उत्तर प्रदेश की राजनीति पर तीखे व्यंग किये और सराहना प्राप्त की ।
     सीमा मधुरिमा जी ने
' तुमने पूछा मैं कौन हूँ...
तो सुनो मैं हूँ तथाकथित नारी शक्ति...'
जैसी पंक्तियों से इस पुरुष प्रधान समाज को मुंहतोड़ जवाब देते हुए उन्हें सोंचने पर विवश कर दिया ।
          आज कवि योगेश चौहान ने
'वीर गति से पूर्व कहा होगा दुश्मन को भून दिया,
पत्नी को सिंदूर दिया माता को हमने खून दिया ।'
पंक्तियों में ओजपूर्ण काव्य पाठ प्रस्तुत किया ।
         प्रतापगढ़ से आये आशुतोष 'आशु' जी ने
'खेत खलिहान हो या ढाबा व दुकान कोई,
करने में काम तन काला फिर हो गया ।'
सुनाकर कर्म का सन्देश देते हुए खून तालियाँ बटोरीं ।
        कार्यक्रम के संयोजक व संचालक राहुल द्विवेदी 'स्मित' ने '
जिन आँखों में बंजर दुनिया,
उनकी खातिर पत्थर दुनिया ।'
पंक्तियों को प्रवाह देते हुए गीत के माध्यम से मानवीय सम्वेदनाओं का दार्शनिक स्वरूप प्रस्तुत किया ।
अंत में कविता लोक व काव्यशाला के संरक्षक ओम नीरव जी ने सभी रचनाकारों द्वारा प्रस्तुत रचनाओं की छंद व काव्य के तत्वों के आधार पर संक्षिप्त समीक्षा की व छंद व काव्य की बारीकियों से सभी को अवगत कराया ।

कवितालोक

दिनांक:--- 17/01/2017

रविवार, 1 जनवरी 2017

कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ के षष्ठम गीतिका समारोह का आयोजन

संध्या जी को गीतिका रत्न व निवेदिता जी को कवितालोक रत्न
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कवितालोक सृजन संस्थान के छठे गीतिका समारोह का आयोजन ओम कुटीर
पर प्रख्यात नवगीतकार मधुकर अष्ठाना जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। ओम नीरव के संयोजन और राहुल द्विवेदी स्मित जी के संचालन में सम्पन्न इस समारोह में मुख्य अतिथि प्रख्यात गीतकार शिवभजन कमलेश जी और विशिष्ट अतिथि केदार नाथ शुक्ल जी ने मंच को गरिमा प्रदान की। इस अवसर पर हिन्दी भाषा का गौरव बढ़ाने वाली गीतिका-विधा के सृजन-संवर्धन के लिए कवयित्री संध्या सिंह जी को 'गीतिका रत्न' से और हिन्दी कविता के संवर्धन में विशिष्ट योगदान के लिए कवयित्री निवेदिता श्रीवास्तव जी को 'कवितालोक रत्न' से सम्मानित किया गया। शिवभजन  कमलेश जी की सुमधुर वाणी वंदना से प्रारम्भ हुए काव्य पाठ के क्रम में ब्रजेश नीरज जी ने सुमेरु छंद पर आधारित गीतिका के युग्मों पर श्रोताओं की भरपूर तालियाँ प्राप्त कीं -
खुशी है गाँव अपने जा रहा हूँ।
महक मिट्टी की सोंधी पा रहा हूँ।
मचानों पर जो मैंने चढ़ के देखा,
हिमालय को भी छोटा पा रहा हूँ।
संध्या सिंह जी ने मापनी गालगागा गालगागा गालगागा पर आधारित गीतिका  सुनाकर सभी को सम्मोहित कर दिया, उनकी गीतिका के मुखड़ा और युग्म -
छोड़ अपना घर सदा बाहर फिरा है।
मन भला कब देह के भीतर पला है।
तुम जिसे मंज़िल समझ कर जी रहे हो,
वह पड़ाओं का महज एक सिलसिला है।
राहुल द्विवेदी जी ने गीतिका छंद पर आधारित गीतिका में गीतिका विधा की विशिष्टता को व्यक्त कर श्रोताओं को मुग्ध कर लिया -
पुष्प सुरभित सुगंधित विधा गीतिका,
लो चली हो व्यवस्थित विधा गीतिका।
ओम नीरव जी ने नव वर्ष के स्वागत में लावणी छंद पर आधारित गीतिका सुनाते हुए कहा-
फसलें आज गयीं जो बोयी, वे कल को लहराएंगी।
सोलह की गदरायी कलियाँ, सत्रह में खिल जाएंगी।
घोर अभावों के घर पलकर, राजा रंक बना कोई, 
आँसू के घर-आँगन को अब, मुसकाने महकाएंगी।
इसी क्रम में मन मोहन बाराकोटी 'तमाचा लखनवी' जी ने अपनी पंक्तियों से ओज का संचार कर दिया -
निज पर सदा भरोसा रखना, अपने मन में धीर धर,
आगे बढ़ते रहो साथियों, तुम लहरों को चीर कर।
राम शंकर वर्मा जी ने गीत 'आ गए हैं ढोलकों की थाप वाले दिन' सुनाकर वाहवाही लूटी तो केदार नाथ शुक्ल जी ने सरसी छंद में ढली इन पंक्तियो पर भरपूर प्रशंसा प्राप्त की-
काशी की है सुबह सिसकती और अवध की शाम,
तम्बू नीचे खड़े विदाई देते हैं श्रीराम।
केवल प्रसाद सत्यम जी ने ग्राम्य जीवन की त्रासदी को कुछ इसप्रकार शब्दायित किया-
गावों की उस महक को, कैसे रखते साथ,
बिके बैल, वन, बाग सब, मिट्टी हुई अनाथ।
कवयित्री निवेदिता श्रीवास्तव जी ने स्वस्तिवाचन को सुंदरता से शब्दायित किय। प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी ने नव वर्ष की रहस्यात्मक अनुभूति को कुछ इसप्रकार शब्द दिये-
विगत आगत मध्य जीवन चक्र चल रहा,
खिले पुष्प से द्वार पर करते हम वंदन।
महेश प्रसाद अष्ठाना जी ने युग के पथिक को इन शब्दों में प्राण ऊर्जा प्रदान की-
कभी थको मत, कभी रुको मत, कभी न बैठो हार कर, 
लड़ना होगा, लड़ना होगा, तूफानों को पार कर।
शिवभजन कमलेश जी ने गीतों की सलिला प्रवाहित करने के साथ नए साल के स्वागत में प्रस्तुत मनहर घनाक्षरी छंद की इन पंक्तियों पर श्रोताओं को वाह-वाह करने को विवश कर दिया-
राम करे अन्न जल का कहीं न हो अभाव,
और कहीं भी अकाल मृत्यु का न फेरा हो।
प्रेम और ज्ञान का हो संचरण कमलेश,
नित्य नए रंग में उमंग का सवेरा हो।
अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए मधुकर अष्ठाना जी उत्कृष्ट बिम्ब यूजनाओं से युक्त नव गीतों के प्रस्तुतीकरण से सभी को भाव विभोर कर दिया, उनकी इन  पंक्तियों पर श्रोता झूम उठे-
सपने ही देखते रहे हम, और उमर आ गयी किनारे,
टूट गया जब अपनों का भ्रम, रहे भंवर में बिना सहारे।
अंत में समाजसेवी शिक्षक रवि कान्त मिश्र जी ने सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।
             -:कवितालोक:-